Matthew - मत्ती 5 | View All

1. वह इस भीड़ को देखकर, पहाड़ पर चढ़ गया; और जब बैठ गया तो उसके चेले उसके पास आए।

1. [1] তিনি বিস্তর লোক দেখিয়া পর্ব্বতে উঠিলেন; আর তিনি বসিলে পর তাঁহার শিষ্যেরা তাঁহার নিকটে আসিলেন।

2. और वह अपना मुंह खोलकर उन्हें यह उपदेश देने लगा,

2. তখন তিনি মুখ খুলিয়া তাঁহাদিগকে এই উপদেশ দিতে লাগিলেন—

3. धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
यशायाह 61:1

3. ধন্য যাহারা আত্মাতে দীনহীন, কারণ স্বর্গ-রাজ্য তাহাদেরই।

4. धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्योंकि वे शांति पाएंगे।
यशायाह 61:2

4. ধন্য যাহারা শোক করে, কারণ তাহারা সান্ত্বনা পাইবে।

5. धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।
भजन संहिता 37:11

5. ধন্য যাহারা মৃদুশীল, কারণ তাহারা দেশের অধিকারী হইবে।

6. धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी।

6. ধন্য যাহারা ধার্ম্মিকতার জন্য ক্ষুধিত ও তৃষিত, কারণ তাহারা পরিতৃপ্ত হইবে।

7. धन्य हैं वे, जिन के मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे।

7. ধন্য যাহারা দয়াশীল, কারণ তাহারা দয়া পাইবে।

8. धन्य हैं वे, जो मेल करवानेवाले हैं, क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्रा कहलाएंगे।
भजन संहिता 24:2

8. ধন্য যাহারা নির্ম্মলান্তঃকরণ, কারণ তাহারা ঈশ্বরের দর্শন পাইবে।

9. धन्य हैं वे, जो धर्म के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।

9. ধন্য যাহারা মিলন করিয়া দেয়, কারণ তাহারা ঈশ্বরের পুত্র বলিয়া আখ্যাত হইবে।

10. धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण झूठ बोल बोलकर तुम्हरो विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें।

10. ধন্য যাহারা ধার্ম্মিকতার জন্য তাড়িত হইয়াছে, কারণ স্বর্গ-রাজ্য তাহাদেরই।

11. आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा फल है इसलिये कि उन्हों ने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहिले थे इसी रीति से सताया था।।

11. ধন্য তোমরা, যখন লোকে আমার জন্য তোমাদিগকে নিন্দা ও তাড়না করে, এবং মিথ্যা করিয়া তোমাদের বিরুদ্ধে সর্ব্বপ্রকার মন্দ কথা বলে।

12. तुम पृथ्वी के नमक हो; परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा?
2 इतिहास 36:16

12. আনন্দ করিও, উল্লাসিত হইও, কেননা স্বর্গে তোমাদের পুরস্কার প্রচুর; কারণ তোমাদের পূর্ব্বে যে ভাববাদিগণ ছিলেন, তাঁহাদিগকে তাহারা সেই মত তাড়না করিত।

13. तुम पृथ्वी के नमक हो; परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा? फिर वह किसी काम का नहीं, केवल इस के कि बाहर फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंआ जाए।

13. তোমরা পৃথিবীর লবণ, কিন্তু লবণের স্বাদ যদি যায়, তবে তাহা কি প্রকারে লবণের গুণবিশিষ্ট করা যাইবে? তাহা আর কোন কার্য্যে লাগে না, কেবল বাহিরে ফেলিয়া দিবার ও লোকের পদতলে দলিত হইবার যোগ্য হয়।

14. तुम जगत की ज्योति हो; जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है वह छिप नहीं सकता।

14. তোমরা জগতের দীপ্তি; পর্ব্বতের উপরে স্থিত নগর গুপ্ত থাকিতে পারে না।

15. और लोग दिया जलाकर पैमाने के नीचे नहीं परन्तु दीवट पर रखते हैं, तब उस से घर के सब लोगों को प्रकाश पहुंचता है।

15. আর লোকে প্রদীপ জ্বালিয়া কাঠার নীচে রাখে না, কিন্তু দীপাধারের উপরেই রাখে, তাহাতে তাহা গৃহস্থিত সকল লোককে আলো দেয়।

16. उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के साम्हने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में हैं, बड़ाई करें।।

16. তদ্রূপ তোমাদের দীপ্তি মনুষ্যদের সাক্ষাতে উজ্জ্বল হউক, যেন তাহারা তোমাদের সৎক্রিয়া দেখিয়া তোমাদের স্বর্গস্থ পিতার গৌরব করে।

17. यह न समझो, कि मैं व्यवस्था या भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों को लोप करने आया हूं।
यशायाह 42:21

17. মনে করিও না যে, আমি ব্যবস্থা কি ভাববাদিগ্রন্থ লোপ করিতে আসিয়াছি; আমি লোপ করিতে আসি নাই, কিন্তু পূর্ণ করিতে আসিয়াছি।

18. लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूं, क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएं, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा।
यशायाह 42:21

18. কেননা আমি তোমাদিগকে সত্য কহিতেছি, যে পর্য্যন্ত আকাশ ও পৃথিবী লুপ্ত না হইবে, সে পর্য্যন্ত ব্যবস্থার এক মাত্রা কি এক বিন্দুও লুপ্ত হইবে না, সমস্তই সফল হইবে।

19. इसलिये जो कोई इन छोटी से छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़े, और वैसा ही लोगों को सिखाए, वह स्वर्ग के राज्य में सब से छोटा कहलाएगा; परन्तु जो कोई उन का पालन करेगा और उन्हें सिखाएगा, वही स्वर्ग के राज्य में महान कहलाएगा।

19. অতএব যে কেহ এই সকল ক্ষুদ্রতম আজ্ঞার মধ্যে কোন একটী আজ্ঞা লঙ্ঘন করে, ও লোকদিগকে সেইরূপ শিক্ষা দেয়, তাহাকে স্বর্গরাজ্যে অতি ক্ষুদ্র বলা যাইবে; কিন্তু যে কেহ সে সকল পালন করে ও শিক্ষা দেয়, তাহাকে স্বর্গ-রাজ্যে মহান্‌ বলা যাইবে।

20. क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फरीसियों की धार्मिकता से बढ़कर न हो, तो तुम स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश करने न पाओगे।।

20. কেননা আমি তোমাদিগকে কহিতেছি, অধ্যাপক ও ফরীশীদের অপেক্ষা তোমাদের ধার্ম্মিকতা যদি অধিক না হয়, তবে তোমরা কোন মতে স্বর্গ-রাজ্যে প্রবেশ করিতে পাইবে না।

21. तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि हत्या न करना, और जो कोई हत्या करेगा वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा।
निर्गमन 20:13, निर्गमन 21:12, लैव्यव्यवस्था 24:17, व्यवस्थाविवरण 5:17

21. তোমরা শুনিয়াছ, পূর্ব্বকালীয় লোকদের নিকটে উক্ত হইয়াছিল, “তুমি নরহত্যা করিও না,” আর ‘যে নরহত্যা করে, সে বিচারের দায়ে পড়িবে’।

22. परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा: और जो कोई अपने भाई को निकम्मा कहेगा वह महासभा में दण्ड के योग्य होगा; और जो कोई कहे 'अरे मूर्ख' वह नरक की आग के दण्ड के योग्य होगा।

22. কিন্তু আমি তোমাদিগকে কহিতেছি, যে কেহ আপন ভ্রাতার প্রতি ক্রোধ করে, সে বিচারের দায়ে পড়িবে; আর যে কেহ আপন ভ্রাতাকে বলে, ‘রে নির্ব্বোধ,’ সে মহাসভার দায়ে পড়িবে। আর যে কেহ বলে, ‘রে মূঢ়,’ সে অগ্নিময় নরকের দায়ে পড়িবে।

23. इसलिये यदि तू अपनी भेंट वेदी पर लाए, और वहां तू स्मरण करे, कि मेरे भाई के मन में मेरी ओर से कुछ विरोध है, तो अपनी भेंट वहीं वेदी के साम्हने छोड़ दे।

23. অতএব তুমি যখন যজ্ঞবেদির নিকটে আপন নৈবেদ্য উৎসর্গ করিতেছ, তখন সেই স্থানে যদি মনে পড়ে যে, তোমার বিরুদ্ধে তোমার ভ্রাতার কোন কথা আছে,

24. और जाकर पहिले अपने भाई से मेल मिलाप कर; तब आकर अपनी भेंट चढ़ा।

24. তবে সেই স্থানে বেদির সম্মুখে তোমার নৈবেদ্য রাখ, আর চলিয়া যাও, প্রথমে তোমার ভ্রাতার সহিত সম্মিলিত হও, পরে আসিয়া তোমার নৈবেদ্য উৎসর্গ করিও।

25. जब तक तू अपने मु ई के साथ मार्ग में हैं, उस से झटपट मेल मिलाप कर ले कहीं ऐसा न हो कि मु ई तुझे हाकिम को सौंपे, और हाकिम तुझे सिपाही को सौंप दे और तू बन्दीगृह में डाल दिया जाए।

25. তুমি যখন বিপক্ষের সঙ্গে পথে থাক, তখন তাহার সহিত শীঘ্র মিলন করিও, পাছে বিপক্ষ তোমাকে বিচারকর্ত্তার হস্তে সমর্পণ করে, ও বিচারকর্ত্তা তোমাকে পেয়াদার হস্তে সমর্পণ করে, আর তুমি কারাগারে নিক্ষিপ্ত হও।

26. मैं तुम से सच कहता हूं कि जब तक तू कौड़ी कौड़ी भर न दे तब तक वहां से छूटने न पाएगा।।

26. আমি তোমাকে সত্য কহিতেছি, যাবৎ শেষ কড়িটা পর্য্যন্ত পরিশোধ না করিবে, তাবৎ তুমি কোন মতে সেখান হইতে বাহিরে আসিতে পাইবে না।

27. तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, कि व्यभिचार न करना।
निर्गमन 20:14, व्यवस्थाविवरण 5:18

27. তোমরা শুনিয়াছ, উক্ত হইয়াছিল,

28. परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका।

28. “তুমি ব্যভিচার করিও না”। কিন্তু আমি তোমাদিগকে বলিতেছি, যে কেহ কোন স্ত্রীলোকের প্রতি কামভাবে দৃষ্টিপাত করে, সে তখনই মনে মনে তাহার সহিত ব্যভিচার করিল।

29. यदि तेरी दहिनी आंख तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे निकालकर अपने पास से फेंक दे; क्योंकि तेरे लिये यही भला है कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए।

29. আর তোমার দক্ষিণ চক্ষু যদি তোমার বিঘ্ন জন্মায়, তবে তাহা উপড়াইয়া দূরে ফেলিয়া দেও; কেননা তোমার সমস্ত শরীর নরকে নিক্ষিপ্ত হওয়া অপেক্ষা বরং এক অঙ্গের নাশ হওয়া তোমার পক্ষে ভাল।

30. और यदि तेरा दहिना हाथ तुझे ठोकर खिलाए, तो उस को काटकर अपने पास से फेंक दे, क्योंकि तेरे लिये यही भला है, कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए।।

30. আর তোমার দক্ষিণ হস্ত যদি তোমার বিঘ্ন জন্মায়, তবে তাহা কাটিয়া দূরে ফেলিয়া দেও; কেননা তোমার সমস্ত শরীর নরকে যাওয়া অপেক্ষা বরং এক অঙ্গের নাশ হওয়া তোমার পক্ষে ভাল।

31. यह भी कहा गया था, कि जो कोई अपनी पत्नी को त्याग दे तो उसे त्यागपत्रा दे।
व्यवस्थाविवरण 24:1-3

31. আর উক্ত হইয়াছিল, “যে কেহ আপন স্ত্রীকে পরিত্যাগ করে, সে তাহাকে ত্যাগপত্র দিউক” ।

32. परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं कि जो कोई अपनी पत्नी को व्यभिचार के सिवा किसी और कारण से छोड़ दे, तो वह उस से व्यभिचार करवाता है; और जो कोई उस त्यागी हुई से ब्याह करे, वह व्यभिचार करता है।।

32. কিন্তু আমি তোমাদিগকে বলিতেছি, যে কেহ ব্যভিচার ভিন্ন অন্য কারণে আপন স্ত্রীকে পরিত্যাগ করে, সে তাহাকে ব্যভিচারিণী করে; এবং যে ব্যক্তি সেই পরিত্যক্তা স্ত্রীকে বিবাহ করে, সে ব্যভিচার করে।

33. फिर तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि झूठी शपथ न खाना, परन्तु प्रभु के लिये अपनी शपथ को पूरी करना।
निर्गमन 20:7, लैव्यव्यवस्था 19:12, गिनती 30:2, व्यवस्थाविवरण 5:11, व्यवस्थाविवरण 23:21

33. আবার তোমরা শুনিয়াছ, পূর্ব্বকালীয় লোকদের নিকটে উক্ত হইয়াছিল, ‘তুমি মিথ্যা দিব্য করিও না, কিন্তু প্রভুর উদ্দেশে তোমার দিব্য সকল পালন করিও।’

34. परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि कभी शपथ न खाना; न तो स्वर्ग की, क्योंकि वह परमेश्वर का सिंहासन है।
यशायाह 66:1

34. কিন্তু আমি তোমাদিগকে বলিতেছি, কোন দিব্যই করিও না; স্বর্গের দিব্য করিও না, কেননা তাহা ঈশ্বরের সিংহাসন; এবং পৃথিবীর দিব্য করিও না, কেননা তাহা তাঁহার পাদপীঠ;

35. न धरती की, क्योंकि वह उसके पांवों की चौकी है; न यरूशलेम की, क्योंकि वह महाराजा का नगर है।
भजन संहिता 48:2, यशायाह 66:1

35. আর যিরূশালেমের দিব্য করিও না, কেননা তাহা মহান্‌ রাজার নগরী।

36. अपने सिर की भी शपथ न खाना क्योंकि तू एक बाल को भी न उजला, न काला कर सकता है।

36. আর তোমার মাথার দিব্য করিও না, কেননা একগাছি চুল সাদা কি কাল করিবার সাধ্য তোমার নাই।

37. परन्तु तुम्हारी बात हां की हां, या नहीं की नहीं हो; क्योंकि जो कुछ इस से अधिक होता है वह बुराई से होता है।।

37. কিন্তু তোমাদের কথা হাঁ, হাঁ, না, না, হউক; ইহার অতিরিক্ত যাহা, তাহা মন্দ হইতে জন্মে।

38. तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था, कि आंख के बदले आंख, और दांत के बदले दांत।
निर्गमन 21:24, लैव्यव्यवस्था 24:20, व्यवस्थाविवरण 19:21

38. তোমরা শুনিয়াছ, উক্ত হইয়াছিল, “চক্ষুর পরিশোধে চক্ষু ও দন্তের পরিশোধে দন্ত”।

39. परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि बुरे का सामना न करता; परन्तु जो कोई तेरे दहिने गाल पर थप्पड़ मारे, उस की ओर दूसरा भी फेर दे।

39. কিন্তু আমি তোমাদিগকে বলিতেছি, তোমরা দুষ্টের প্রতিরোধ করিও না; বরং যে কেহ তোমার দক্ষিণ গালে চড় মারে, অন্য গাল তাহার দিকে ফিরাইয়া দেও।

40. और यदि कोई तुझ पर नालिश करके तेरा कुरता लेना चाहे, तो उसे दोहर भी ले लेने दे।

40. আর যে তোমার সহিত বিচার-স্থানে বিবাদ করিয়া তোমার আঙ্‌রাখা লইতে চায়, তাহাকে চোগাও লইতে দেও।

41. और जो कोई तुझे कोस भर बेगार में ले जाए तो उसके साथ दो कोस चला जा।

41. আর যে কেহ এক ক্রোশ যাইতে তোমাকে পীড়াপীড়ি করে, তাহার সঙ্গে দুই ক্রোশ যাও।

42. जो कोई तुझ से मांगे, उसे दे; और जो तुझ से उधार लेना चाहे, उस से मुंह न मोड़।।

42. যে তোমার কাছে যাচ্ঞা করে, তাহাকে দেও; এবং যে তোমার নিকটে ধার চায়, তাহা হইতে বিমুখ হইও না।

43. तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर।
लैव्यव्यवस्था 19:18

43. তোমরা শুনিয়াছ, উক্ত হইয়াছিল, “তোমার প্রতিবাসীকে প্রেম করিবে,” এবং ‘তোমার শত্রুকে দ্বেষ করিবে’।

44. परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करो।
निर्गमन 23:4-5, नीतिवचन 25:21-22

44. কিন্তু আমি তোমাদিগকে বলিতেছি, তোমরা আপন আপন শত্রুদিগকে প্রেম করিও, এবং যাহারা তোমাদিগকে তাড়না করে, তাহাদের জন্য প্রার্থনা করিও;

45. जिस से तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनो पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेंह बरसाता है।

45. যেন তোমরা আপনাদের স্বর্গস্থ পিতার সন্তান হও, কারণ তিনি ভাল মন্দ লোকদের উপরে আপনার সূর্য্য উদিত করেন, এবং ধার্ম্মিক অধার্ম্মিকগণের উপরে জল বর্ষান।

46. क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिये क्या लाभ होगा? क्या महसूल लेनेवाले भी ऐसा ही नहीं करते?

46. কেননা যাহারা তোমাদিগকে প্রেম করে, তাহাদিগকেই প্রেম করিলে তোমাদের কি পুরস্কার হইবে? করগ্রাহীরাও কি সেই মত করে না?

47. और यदि तुम केवल अपने भाइयों की को नमस्कार करो, तो कौन सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा नहीं करते?

47. আর তোমরা যদি কেবল আপন আপন ভ্রাতৃগণকে মঙ্গলবাদ কর, তবে অধিক কি কর্ম্ম কর? পরজাতীয়েরাও কি সেইরূপ করে না?

48. इसलिये चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।।
लैव्यव्यवस्था 19:2, व्यवस्थाविवरण 18:13

48. অতএব তোমাদের স্বর্গীয় পিতা যেমন সিদ্ধ, তোমরাও তেমনি সিদ্ধ হও।



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