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1. हे मेरे लागो, मेरी शिक्षा सुनो; मेरे वचनों की ओर कान लगाओ!
1. An instruction. Of Asaph. Give ear, O my people, to my law; incline your ears to the words of my mouth.
2. मैं अपना मूंह नीतिवचन कहने के लिये खोलूंगा; मैं प्राचीकाल की गुप्त बातें कहूंगा,मत्ती 13:35
2. I will open my mouth in a parable; I will utter riddles from of old,
3. जिन बातों को हम ने सुना, ओर जान लिया, और हमारे बाप दादों ने हम से वर्णन किया है।
3. Which we have heard and known, and our fathers have told us:
4. उन्हे हम उनकी सन्तान से गुप्त न रखेंगें, परन्तु होनहार पीढ़ी के लोगों से, यहोवा का गुणानुवाद और उसकी सामर्थ और आश्चर्यकर्मों का वर्णन करेंगें।।इफिसियों 6:4
4. We will not hide [them] from their sons, shewing forth to the generation to come the praises of Jehovah, and his strength, and his marvellous works which he hath done.
5. उस ने तो याकूब में एक चितौनी ठहराई, और इस्त्राएल में एक व्यवस्था चलाई, जिसके विषय उस ने हमारे पितरों को आज्ञा दी, कि तुम इन्हे अपने अपने लड़केवालों को बताना;
5. For he established a testimony in Jacob, and appointed a law in Israel, which he commanded our fathers, that they should make them known to their children;
6. कि आनेवाली पीढ़ी के लोग, अर्थात जो लड़केवाले उत्पन्न होनेवाले हैं, वे इन्हे जानें; और अपने अपने लड़केवालों से इनका बखान करने में उद्यत हों, जिस से वे परमेश्वर का आस्त्रा रखें,
6. That the generation to come might know [them], the children that should be born; that they might rise up and tell [them] to their children,
7. और ईश्वर के बड़े कामों को भूल न जाएं, परन्तु उसकी आज्ञाओं का पालन करते रहें;
7. And that they might set their hope in God, and not forget the works of *God, but observe his commandments;
8. और अपने पितरों के समान न हों, क्योंकि उस पीढ़ी के लोग तो हठीले और झगड़ालू थे, और उन्हों ने अपना मन स्थिर न किया था, और न उनकी आत्मा ईश्वर की ओर सच्ची रही।।प्रेरितों के काम 2:40
8. And might not be as their fathers, a stubborn and rebellious generation, a generation that prepared not their heart, and whose spirit was not stedfast with *God.
9. एप्रेमयों ने तो शस्त्राधारी और धनुर्धारी होने पर भी, युठ्ठ के समय पीठ दिखा दी।
9. The sons of Ephraim, armed bowmen, turned back in the day of battle.
10. उन्हो ने परमेश्वर की वाचा पूरी नहीं की, और उसकी व्यवस्था पर चलने से इनकार किया।
10. They kept not the covenant of God, and refused to walk in his law;
11. उन्हो ने उसके बड़े कामों को और जो आश्चर्यकर्म उस ने उनके साम्हने किए थे, उनको भुला दिया।
11. And forgot his doings, and his marvellous works which he had shewn them.
12. उस ने तो उनके बापदादों के सम्मुख मिस्त्रा देश के सोअन के मैदान में अद्भुत कर्म किए थे।
12. In the sight of their fathers had he done wonders, in the land of Egypt, the field of Zoan.
13. उस ने समुद्र को दो भाग करके उन्हे पार कर दिया, और जल को ढ़ेर की नाई खड़ा कर दिया।
13. He clave the sea, and caused them e pass through; and made the waters to stand as a heap;
14. और उस ने दिन को बादल के खम्भों से और रात भर अग्नि के प्रकाश के द्धारा उनकी अगुवाई की।
14. And he led them with a cloud in the daytime, and all the night with the light of fire.
15. वह जंगल में चट्टानें फाड़कर, उनको मानो गहिरे जलाशयों से मनमाने पिलाता था।1 कुरिन्थियों 10:4
15. He clave rocks in the wilderness, and gave [them] drink as out of the depths, abundantly;
16. उस ने चट्टान से भी धाराएं निकालीं और नदियों का सा जल बहाया।।
16. And he brought streams out of the rock, and caused waters to run down like rivers.
17. तौभी वे फिर उसके विरूद्ध अघिक पाप करते गए, और निर्जल देश में परमप्रधान के विरूद्ध उठते रहे।
17. Yet they still went on sinning against him, provoking the Most High in the desert;
18. और अपनी चाह के अनुसार भोजन मांगकर मन ही मन ईश्वर की परीक्षा की।
18. And they tempted *God in their heart, by asking meat for their lust;
19. वे परमेश्वर के विरूद्ध बोले, और कहने लगे, क्या ईश्वर जंगल में मेज लगा सकता है?
19. And they spoke against God: they said, Is *God able to prepare a table in the wilderness?
20. उस ने चट्टान पर मारके जल बहा तो दिया, और धाराएं उमण्ड़ चली, परन्तु क्या वह रोटी भी दे सकता है? क्या वह अपनी प्रजा के लिये मांस भी तैयार कर सकता?
20. Behold, he smote the rock, and waters gushed out, and streams overflowed; is he able to give bread also, or provide flesh for his people?
21. यहोवा सुनकर क्रोध से भर गया, तब याकूब के बीच आग लगी, और इस्त्राएल के विरूद्ध क्रोध भड़का;
21. Therefore Jehovah heard, and was wroth; and fire was kindled against Jacob, and anger also went up against Israel:
22. इसलिए कि उन्हों ने परमेश्वर पर विश्वास नहीं रखा था, न उसकी उठ्ठार करने की शक्ति पर भरोसा किया।
22. Because they believed not in God, and confided not in his salvation;
23. तौभी उस ने आकाश को आज्ञा दी, और स्वर्ग के ठ्ठारों को खोला;
23. Though he had commanded the clouds from above, and had opened the doors of the heavens,
24. और उनके लिये खाने को मान बरसाया, और उन्हे स्वर्ग का अन्न दिया।यूहन्ना 6:31, प्रकाशितवाक्य 2:17, 1 कुरिन्थियों 10:3
24. And had rained down manna upon them to eat, and had given them the corn of the heavens.
25. उनको शूरवीरों की सी रोटी मिली; उस ने उनको मनमाना भोजन दिया।
25. Man did eat the bread of the mighty; he sent them provision to the full.
26. उस ने आकाश में पुरवाई को चलाया, और अपनी शक्ति से दक्खिनी बहाई;
26. He caused the east wind to rise in the heavens, and by his strength he brought the south wind;
27. और उनके लिये मांस धूलि की नाई बहुत बरसाया, और समुद्र के बालू के समान अनगिनित पक्षी भेजे;
27. And he rained flesh upon them as dust, and feathered fowl as the sand of the seas,
28. और उनकी छावनी के बीच में, उनके निवासों के चारों ओर गिराए।
28. And he let it fall in the midst of their camp, round about their habitations:
29. और वे खाकर अति तृप्त हुए, और उस ने उनकी कामना पूरी की।
29. And they did eat, and were well filled; for that they lusted after, he brought to them.
30. उनकी कामना बनी ही रही, उनका भोजन उनके मुंह ही में था,
30. They were not alienated from their lust, their meat was yet in their mouths,
31. कि परमेश्वर का क्रोध उन पर भड़का, और उस ने उनके हष्टपुष्टों को घात किया, और इस्त्राएल के जवानों को गिरा दिया।।1 कुरिन्थियों 10:5
31. When the anger of God went up against them; and he slew the fattest of them, and smote down the chosen men of Israel.
32. इतने पर भी वे और अधिक पाप करते गए; और परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों की प्रतीति न की।
32. For all this, they sinned still, and believed not in his marvellous works;
33. तब उस ने उनके दिनों को व्यर्थ श्रम में, और उनके वर्षों को धबराहट में कटवाया।
33. And he consumed their days in vanity, and their years in terror.
34. जब जब वह उन्हे घात करने लगता, तब तब वे उसको पूछते थे; और फिरकर ईश्वर को यत्न से खोजते थे।
34. When he slew them, then they sought him, and returned and sought early after *God;
35. और उनको स्मरण होता था कि परमेश्वर हमारी चट्टान है, और परमप्रधान ईश्वर हमारा छुड़ानेवाला है।
35. And they remembered that God was their rock, and *God, the Most High, their redeemer.
36. तौभी उन्हों ने उस से चापलूसी की; वे उस से झूठ बोले।
36. But they flattered him with their mouth, and lied unto him with their tongue;
37. क्योंकि उनका ह्यदय उसकी ओर दृढ़ न था; न वे उसकी वाचा के विषय सच्चे थे।प्रेरितों के काम 8:21
37. For their heart was not firm toward him, neither were they stedfast in his covenant.
38. परन्तु वह जो दयालु है, वह अधर्म को ढांपता, और नाश नहीं करता; वह बारबार अपने क्रोध को ठण्डा करता है, और अपनी जलजलाहट को पूरी रीति से भड़कने नहीं देता।
38. But he was merciful: he forgave the iniquity, and destroyed [them] not; but many a time turned he his anger away, and did not stir up all his fury:
39. उसको स्मरण हुआ कि ये नाशमान हैं, ये वायु के समान हैं जो चली जाती और लौट नहीं आती।
39. And he remembered that they were flesh, a breath that passeth away and cometh not again.
40. उन्हों ने कितनी ही बार जंगल में उस से बलवा किया, और निर्जल देश में उसको उदास किया!
40. How oft did they provoke him in the wilderness, and grieve him in the desert!
41. वे बारबार ईश्वर की परीक्षा करते थे, और इस्त्राएल के पवित्रा को खेदित करते थे।
41. And they turned again and tempted *God, and grieved the Holy One of Israel.
42. उन्होने न तो उसका भुजबल स्मरण किया, न वह दिन जब उस ने उनको द्रोही के वश से छुड़ाया था;
42. They remembered not his hand, the day when he delivered them from the oppressor,
43. कि उस ने क्योंकर अपने चिन्ह मिस्त्रा में, और अपने चमत्कार सोअन के मैदान में किए थे।
43. How he set his signs in Egypt, and his miracles in the field of Zoan;
44. उस ने तो मिस्त्रियों की नहरों को लोहू बना डाला, और वे अपनी नदियों का जल पी न सके।प्रकाशितवाक्य 16:4
44. And turned their rivers into blood, and their streams, that they could not drink;
45. उस ने उनके बीच में डांस भेजे जिन्हों ने उन्हे काट खाया, और मेंढक भी भेजे, जिन्हों ने उनका बिगाड़ किया।
45. He sent dog-flies among them, which devoured them, and frogs, which destroyed them;
46. उस ने उनकी भूमि की उपज कीड़ों को, और उनकी खेतीबारी टिड्डयों को खिला दी थी।
46. And he gave their increase unto the caterpillar, and their labour unto the locust;
47. उस ने उनकी दाखलताओं को ओेलों से, और उनके गूलर के पेड़ों को बड़े बड़े पत्थ्र बरसाकर नाश किया।
47. He killed their vines with hail, and their sycamore trees with hail-stones;
48. उस ने उनके पशुओं को ओलों से, और उनके ढोरों को बिजलियों से मिटा दिया।
48. And he delivered up their cattle to the hail, and their flocks to thunderbolts.
49. उस ने उनके ऊपर अपना प्रचणड क्रोध और रोष भड़काया, और उन्हे संकट में डाला, और दुखदाई दूतों का दल भेजा।
49. He cast upon them the fierceness of his anger, wrath, and indignation, and distress, -- a mission of angels of woes.
50. उस ने अपने क्रोध का मार्ग खोला, और उनके प्राणों को मृत्यु से न बचाया, परन्तु उनको मरी के वश में कर दिया।
50. He made a way for his anger; he spared not their soul from death, but gave their life over to the pestilence;
51. उस ने मिस्त्रा के सब पहिलौठों को मारा, जो हाम के डेरों में पौरूष के पहिले फल थे;
51. And he smote all the firstborn in Egypt, the first-fruits of their vigour in the tents of Ham.
52. परन्तु अपनी प्रजा को भेड़- बकरियों की नाई पयान कराया, और जंगल में उनकी अगुवाई पशुओं के झुण्ड की सी की।
52. And he made his own people to go forth like sheep, and guided them in the wilderness like a flock;
53. तब वे उसके चलाने से बेखटके चले और उनको कुछ भय न हुआ, परन्तु उनके शत्रु समुद्र में डूब गए।
53. And he led them safely, so that they were without fear; and the sea covered their enemies.
54. और उस ने उनको अपने पवित्रा देश के सिवाने तक, इसी पहाड़ी देश में पहुंचाया, जो उस ने अपने दहिने हाथ से प्राप्त किया था।
54. And he brought them to his holy border, this mountain, which his right hand purchased;
55. उस ने उनके साम्हने से अन्यजातियों को भगा दिया; और उनकी भूमि को डोरी से माप मापकर बांट दिया; और इस्त्राएल के गोत्रों को उनके डेरों में बसाया।।
55. And he drove out the nations before them, and allotted them for an inheritance by line, and made the tribes of Israel to dwell in their tents.
56. तौभी उन्होने परमप्रधान परमेश्वर की परीक्षा की और उस से बलवा किया, और उसकी चितौनियों को न माना,
56. But they tempted and provoked God, the Most High, and kept not his testimonies,
57. और मुड़कर अपने पुरखाओं की नाई विश्वासघात किया; उन्हों ने निकम्मे धनुष की नाई धोखा दिया।
57. And they drew back and dealt treacherously like their fathers: they turned like a deceitful bow.
58. क्योंकि उन्हों ने ऊंचे स्थान बनाकर उसको रिस दिलाई, और खुदी हुई मुर्तियों के द्वारा उस में जलन उपजाई।
58. And they provoked him to anger with their high places, and moved him to jealousy with their graven images.
59. परमेश्वर सुनकर रोष से भर गया, और उस ने इस्त्राएल को बिलकुल तज दिया।
59. God heard, and was wroth, and greatly abhorred Israel:
60. उस ने शीलो के निवास, अर्थात् उस तम्बु को जो उस ने मनुष्यों के बीच खडा किया था, त्याग दिया,
60. And he forsook the tabernacle at Shiloh, the tent where he had dwelt among men,
61. और अपनी सामर्थ को बन्धुआई में जाने दिया, और अपनी शोभा को द्रोही के वश में कर दिया।
61. And gave his strength into captivity, and his glory into the hand of the oppressor;
62. उस ने अपनी प्रजा को तलवार से मरवा दिया, और अपने निज भाग के लोगों पर रोष से भर गया।
62. And delivered up his people unto the sword, and was very wroth with his inheritance:
63. उन के जवान आग से भस्म हुए, और उनकी कुमारियों के विवाह के गीत न गाए गए।
63. The fire consumed their young men, and their maidens were not praised in [nuptial] song;
64. उनके याजक तलवार से मारे गए, और उनकी विधवाएं रोने न पाई।
64. Their priests fell by the sword, and their widows made no lamentation.
65. तब प्रभु मानो नींद से चौंक उठा, और ऐसे वीर के समान उठा जो दाखमधु पीकर ललकारता हो।
65. Then the Lord awoke as one out of sleep, like a mighty man that shouteth aloud by reason of wine;
66. और उस ने अपने द्रोहियों को मारकर पीछे हटा दिया; और उनकी सदा की नामधराई कराई।।
66. And he smote his adversaries in the hinder part, and put them to everlasting reproach.
67. फिर उस ने यूसुफ के तप्बु को तज दिया; और एप्रैम के गोत्रा को न चुना;
67. And he rejected the tent of Joseph, and chose not the tribe of Ephraim,
68. परन्तु यहूदा ही के गोत्रा को, और अपने प्रिय सिरयोन पर्वत को चुन लिया।
68. But chose the tribe of Judah, the mount Zion which he loved;
69. उस ने अपने पवित्रास्थान को बहुत ऊंचा बना दिया, और पृथ्वी के समान स्थिर बनाया, जिसकी नेव उस ने सदा के लिये डाली है।
69. And he built his sanctuary like the heights, like the earth which he hath founded for ever.
70. फिर उसने अपने दास दाऊद को चुनकर भेड़शालाओं में से ले लिया;
70. And he chose David his servant, and took him from the sheepfolds:
71. वह उसको बच्चेवाली भेड़ों के पीछे पीछे फिरने से ले आया कि वह उसकी प्रजा याकूब की अर्थात उसके निज भाग इस्त्राएल की चरवाही करे।
71. From following the suckling-ewes, he brought him to feed Jacob his people, and Israel his inheritance.
72. तब उस ने खरे मन से उनकी चरवाही की, और अपने हाथ की कुशलता से उनकी अगुवाई की।।
72. And he fed them according to the integrity of his heart, and led them by the skilfulness of his hands.