1 Kings - 1 राजाओं 8 | View All

1. तब सुलैमान ने इस्राएली पुरनियों को और गोत्रों के सब मुख्य पुरूष जो इस्राएलियों के पूर्वजों के घरानों के प्रधान थे,उनको भी यरूशलेम में अपने पास इस मनसा से इकट्ठा किया, कि वे यहोवा की वाचा का सन्दूक दाऊदपुर अर्थात् सियोन से ऊपर ले आएं।
प्रकाशितवाक्य 11:19

1. Then Solomon assembled the elders of Israel and all the heads of the tribes, the leaders of the fathers' [households] of the sons of Israel, to King Solomon in Jerusalem, to bring up the ark of the covenant of the LORD from the city of David, which is Zion.

2. सो सब इस्राएली पुरूष एतानीम नाम सातवें महीने कें पर्व के समय राजा सुलैमान के पास इकट्ठे हुए।

2. All the men of Israel assembled themselves to King Solomon at the feast, in the month Ethanim, which is the seventh month.

3. जब सब इस्राएली पुरनिये आए, तब याजकों ने सन्दूक को उठा लिया।

3. Then all the elders of Israel came, and the priests took up the ark.

4. और यहोवा का सन्दूक, और मिलाप का तम्बू, और जितने पवित्रा पात्रा उस तम्बू में थे, उन सभों याजक और लेबीय लोग ऊपर ले गए।

4. They brought up the ark of the LORD and the tent of meeting and all the holy utensils, which were in the tent, and the priests and the Levites brought them up.

5. और राजा सुलैमान और समस्त इस्राएली मंडली, जो उसके पास इट्ठी हुई थी, वे रूब सन्दूक के साम्हने इतनी भेड़ और बैल बलि कर रहे थे, जिनकी गिनती किसी रीति से नहीं हो सकती थी।

5. And King Solomon and all the congregation of Israel, who were assembled to him, were with him before the ark, sacrificing so many sheep and oxen they could not be counted or numbered.

6. तब याजकों ने यहोवा की वाचा का सन्दूक उसके स्थान को अर्थात् भवन के दर्शन- स्थान में, जो परमपवित्रा स्थान है, पहुंचाकर करूबों के पंखों के तले रख दिया।
प्रकाशितवाक्य 11:19

6. Then the priests brought the ark of the covenant of the LORD to its place, into the inner sanctuary of the house, to the most holy place, under the wings of the cherubim.

7. करूब तो सन्दूक के स्थान के ऊपर पंख ऐसे फैलाए हुए थे, कि वे ऊपर से सन्दूक और उसके डंडों को ढांके थे।

7. For the cherubim spread [their] wings over the place of the ark, and the cherubim made a covering over the ark and its poles from above.

8. डंडे तो ऐसे लम्बे थे, कि उनके सिरे उस पवित्रा स्थान से जो दर्शन- स्थान के साम्हने था दिखाई पड़ते थे परन्तु बाहर से वे दिखाई नहीं पड़ते थे। वे आज के दिन तक यहीं वतमपान हैं।

8. But the poles were so long that the ends of the poles could be seen from the holy place before the inner sanctuary, but they could not be seen outside; they are there to this day.

9. सन्दूक में कुछ नहीं था, उन दो पटरियों को छोड़ जो मूसा ने होरेब में उसके भीतर उस समय रखीं, जब यहोवा ने इस्राएलियों के मिस्र से निकलने पर उनके साथ वाचा बान्धी थी।

9. There was nothing in the ark except the two tablets of stone which Moses put there at Horeb, where the LORD made a covenant with the sons of Israel, when they came out of the land of Egypt.

10. जब याजक पवित्रास्थान से निकले, तब यहोवा के भवन में बादल भर आया।
प्रकाशितवाक्य 15:8

10. It happened that when the priests came from the holy place, the cloud filled the house of the LORD,

11. और बादल के कारण याजक सेवा टहल करने को खड़े न रह सके, क्योंकि यहोवा का तेज यहोवा के भवन में भर गया था।
प्रकाशितवाक्य 15:8

11. so that the priests could not stand to minister because of the cloud, for the glory of the LORD filled the house of the LORD.

12. तब सुलैमान कहने लगा, यहोवा ने कहा था, कि मैं घोर अंधकार में वास किए रहूंगा।

12. Then Solomon said, 'The LORD has said that He would dwell in the thick cloud.

13. सचमुच मैं ने तेरे लिये एक वासस्थान, वरन ऐसा दृढ़ स्थान बनाया है, जिस में तू युगानुयुग बना रहे।
मत्ती 23:21

13. 'I have surely built You a lofty house, A place for Your dwelling forever.'

14. और राजा ने इस्राएल की पूरी सभा की ओर मुंह फेरकर उसको आशीर्वाद दिया; और पूरी सभा खड़ी रही।

14. Then the king faced about and blessed all the assembly of Israel, while all the assembly of Israel was standing.

15. और उस ने कहा, धन्य है इस्राएल का परमेश्वर यहोवा ! जिस ने अपने मुंह से मेरे पिता दाऊद को यह वचन दिया था, और अपने हाथ से उसे पूरा किया है,

15. He said, 'Blessed be the LORD, the God of Israel, who spoke with His mouth to my father David and has fulfilled [it] with His hand, saying,

16. कि जिस दिन से मैं अपनी प्रजा इस्राएल को मिस्र से निकाल लाया, तब से मैं ने किसी इस्राएली गोत्रा का कोई नगर नहीं चुना, जिस में मेरे नाम के निवास के लिये भवन बनाया जाए; परन्तु मैं ने दाऊद को चुन लिया, कि वह मेरी प्रजा इस्राएल का अधिकारी हो।

16. 'Since the day that I brought My people Israel from Egypt, I did not choose a city out of all the tribes of Israel [in which] to build a house that My name might be there, but I chose David to be over My people Israel.'

17. मेरे पिता दाऊद की यह मनसा तो थी कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनाए।
प्रेरितों के काम 7:45-46

17. 'Now it was in the heart of my father David to build a house for the name of the LORD, the God of Israel.

18. परन्तु यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कहा, यह जो तेरी मनसा है, कि यहोवा के नाम का एक भवन बनाए, ऐसी मनसा करके तू ने भला तो किया;
प्रेरितों के काम 7:45-46

18. 'But the LORD said to my father David, 'Because it was in your heart to build a house for My name, you did well that it was in your heart.

19. तौभी तू उस भवन को न बनाएगा; तेरा जो निज पुत्रा होगा, वही मेरे नाम का भवन बनाएगा।
प्रेरितों के काम 7:47

19. 'Nevertheless you shall not build the house, but your son who will be born to you, he will build the house for My name.'

20. यह जो वचन यहोवा ने कहा था, उसे उस ने पूरा भी किया है, और मैं अपने पिता दाऊद के स्थान पर उठकर, यहोवा के वचन के अनुसार इस्राएल की गद्दी पर विराजमान हूँ, और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम से इस भवन को बनाया है।
प्रेरितों के काम 7:47

20. 'Now the LORD has fulfilled His word which He spoke; for I have risen in place of my father David and sit on the throne of Israel, as the LORD promised, and have built the house for the name of the LORD, the God of Israel.

21. और इस में मैं ने एक स्थान उस सन्दूक के लिये ठहराया है, जिस में यहोवा की वह वाचा है, जो उस ने हमारे पुरखाओं को मिस्र देश से निकालने के समय उन से बान्धी थी।

21. 'There I have set a place for the ark, in which is the covenant of the LORD, which He made with our fathers when He brought them from the land of Egypt.'

22. तब सुलैमान इस्राएल की पूरी सभा के देखते यहोवा की वेदी के साम्हने खड़ा हुआ, और अपने हाथ स्वर्ग की ओर फैलाकर कहा, हे यहोवा !

22. Then Solomon stood before the altar of the LORD in the presence of all the assembly of Israel and spread out his hands toward heaven.

23. हे इस्राएल के परमेश्वर ! तेरे समान न तो ऊपर स्वर्ग में, और न नीचे पृथ्वी पर कोई ईश्वर है : तेरे जो दास अपने सम्पूर्ण मन से अपने को तेरे सम्मुख जानकर चलते हैं, उनके लिये तू अपनी वाचा मूरी करता, और करूणा करता रहता है।

23. He said, 'O LORD, the God of Israel, there is no God like You in heaven above or on earth beneath, keeping covenant and [showing] lovingkindness to Your servants who walk before You with all their heart,

24. जो वचन तू ने मेरे पिता दाऊद को दिया था, उसका तू ने पालन किया है, जैसा तू ने अपने मुंह से कहा था, वैसा ही अपने हाथ से उसको पूरा किया है, जैसा आज है।

24. who have kept with Your servant, my father David, that which You have promised him; indeed, You have spoken with Your mouth and have fulfilled it with Your hand as it is this day.

25. इसलिये अब हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ! इस वचन को भी पूरा कर, जो तू ने अपने दास मेरे पिता दाऊद को दिया था, कि तेरे कुल में, मेरे साम्हने इस्राएल की गद्दी पर विराजनेवाले सदैव बने रहेंगे : इतना हो कि जैसे तू स्वयं मुझे सम्मुख जानकर चलता रहा, वैसे ही तेरे वंश के लोग अपनी चालचलन में ऐसी ही वौकसी करें।

25. 'Now therefore, O LORD, the God of Israel, keep with Your servant David my father that which You have promised him, saying, 'You shall not lack a man to sit on the throne of Israel, if only your sons take heed to their way to walk before Me as you have walked.'

26. इसलिये अब हे इस्राएल के परमेश्वर अपना जो वचन तू ने अपने दास मेरे पिता दाऊद को दिया था उसे सच्चा सिठ्ठ कर।

26. 'Now therefore, O God of Israel, let Your word, I pray, be confirmed which You have spoken to Your servant, my father David.

27. क्या परमेश्वर सचमुच पृथ्वी पर वास करेगा, स्वर्ग में वरन सब से ऊंचे स्वर्ग में भी तू नहीं समाता, फिर मेरे बनाए हुए इस भवन में क्योंकर समाएगा।
प्रेरितों के काम 17:24

27. 'But will God indeed dwell on the earth? Behold, heaven and the highest heaven cannot contain You, how much less this house which I have built!

28. तौभी हे मेरे परमेश्वर यहोवा ! अपने दास की प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट की ओर कान लगाकर, मेरी चिल्लाहट और यह प्रार्थना सुन ! जो मैं आज तेरे साम्हने कर रहा हूँ्र;

28. 'Yet have regard to the prayer of Your servant and to his supplication, O LORD my God, to listen to the cry and to the prayer which Your servant prays before You today;

29. कि तेरी आंख इस भवन की ओर अर्थात् इसी स्थान की ओर जिसके विषय तू ने कहा है, कि मेरा नाम वहां रहेगा, रात दिन खुली रहें : और जो प्रार्थना तेरा दास इस स्थान की ओर करे, उसे तू सुन ले।

29. that Your eyes may be open toward this house night and day, toward the place of which You have said, 'My name shall be there,' to listen to the prayer which Your servant shall pray toward this place.

30. और तू अपने दास, और अपनी प्रजा इस्राएल की प्रार्थना जिसको वे इस स्थान की ओर गिड़गिड़ा के करें उसे सुनना, वरद स्वर्ग। में से जो तेरा निवासस्थान है सुन लेना, और सुनकर क्षमा करना।

30. 'Listen to the supplication of Your servant and of Your people Israel, when they pray toward this place; hear in heaven Your dwelling place; hear and forgive.

31. जब कोई किसी दूसरे का अपराध करे, और उसको शपथ खिलाई जाए, और वह आकर इस भवन में तेरी वेदी के साम्हने शपथ खाए,

31. 'If a man sins against his neighbor and is made to take an oath, and he comes [and] takes an oath before Your altar in this house,

32. तब तू स्वर्ग में सुन कर, अर्थात् अपने दासों का न्याय करके दुष्ट को दुष्ट ठहरा और उसकी चाल उसी के सिर लौटा दे, और निदष को निदष ठहराकर, उसके धर्म के अनुसार उसको फल देना।

32. then hear in heaven and act and judge Your servants, condemning the wicked by bringing his way on his own head and justifying the righteous by giving him according to his righteousness.

33. फिर जब नेरी प्रजा इस्राएल तेरे विरूद्ध पाप करने के कारण अपने शत्रुओं से हार जाए, और तेरी ओर फिरकर तेरा नाम ले और इस भवन में तुझ से गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करे,

33. 'When Your people Israel are defeated before an enemy, because they have sinned against You, if they turn to You again and confess Your name and pray and make supplication to You in this house,

34. तब तू स्वर्ग में से सुनकर अपनी प्रजा इस्राएल का पाप क्षमा करना : और उन्हें इस देश में लौटा ले आना, जो तू ने उनके पुरूखाओं को दिया था।

34. then hear in heaven, and forgive the sin of Your people Israel, and bring them back to the land which You gave to their fathers.

35. जब वे तेरे विरूद्ध पाप करें, और इस कारण आकाश बन्द हो जाए, कि वर्षा न होए, ऐसे समय यदि वे इस स्थान की ओर प्रार्थना करके तेरे नाम को मानें जब तू उन्हें दु:ख देता है, और अपने पाप से फिरें, तो तू स्वर्ग में से सुनकर क्षमा करना,

35. 'When the heavens are shut up and there is no rain, because they have sinned against You, and they pray toward this place and confess Your name and turn from their sin when You afflict them,

36. और अपने दासों, अपनी प्रजा इस्राएल के पाप को क्ष्मा करना; तू जो उनको वह भला मार्ग दिखाता है, जिस पर उन्हें चलना चाहिये, इसलिये अपने इस देश पर, जो तू ने अपनी प्रजा का भाग कर दिया है, पानी बरसा देना।

36. then hear in heaven and forgive the sin of Your servants and of Your people Israel, indeed, teach them the good way in which they should walk. And send rain on Your land, which You have given Your people for an inheritance.

37. जब इस देश में काल वा मरी वा झुलस हो वा गेरूई वा टिडि्डयां वा कीड़े लगें वा उनके शत्रु उनके देश के फाटकों में उन्हें घेर रखें, अथवा कोई विपत्ति वा रोग क्यों न हों,

37. 'If there is famine in the land, if there is pestilence, if there is blight [or] mildew, locust [or] grasshopper, if their enemy besieges them in the land of their cities, whatever plague, whatever sickness [there is],

38. तब यदि कोई मनुष्य वा तेरी प्रजा इस्राएल अपने अपने मन का दु:ख जान लें, और गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करके अपने हाथ इस भवन की ओर फैलाएं;

38. whatever prayer or supplication is made by any man [or] by all Your people Israel, each knowing the affliction of his own heart, and spreading his hands toward this house;

39. तो तू अपने स्वग य निवासस्थान में से सुनकर क्षमा करूना, और ऐसा करना, कि एक एक के मन को जानकर उसकी समस्त चाल के अनुसार उसको फल देना : तू ही तो सब आदमियों के मन के भेदों का जानने वाला है।

39. then hear in heaven Your dwelling place, and forgive and act and render to each according to all his ways, whose heart You know, for You alone know the hearts of all the sons of men,

40. तब वे जितने दिन इस देश में रहें, जो तू ने उनके पुरखाओं को दिया था, उतने दिन तक तेरा भय मानते रहें।

40. that they may fear You all the days that they live in the land which You have given to our fathers.

41. फिर परदेशी भी जो तेरी प्रजा इस्राएल का न हो, जब वह तेरा नाम सुनकर, दूर देश से आए,

41. 'Also concerning the foreigner who is not of Your people Israel, when he comes from a far country for Your name's sake

42. वह तो तेरे बड़े ताम और बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा का समाचार पाए; इसलिये जब ऐसा कोई आकर इस भवन की ओर प्रार्थना करें,

42. (for they will hear of Your great name and Your mighty hand, and of Your outstretched arm); when he comes and prays toward this house,

43. तब तू अपने स्वग य निवासस्थान में से सुन, और जिस बात के लिये ऐसा परदेशी तुझे पुकारे, उसी के अनुसार व्यवहार करना जिस से पृथ्वी के सब देशों के लोग तेरा नाम जानकर तेरी प्रजा इस्राएल की नाई तेरा भय मानें, और निश्चय जानें, कि यह भवन जिसे मैं ने बनाया है, वह तेरा ही कहलाता है।

43. hear in heaven Your dwelling place, and do according to all for which the foreigner calls to You, in order that all the peoples of the earth may know Your name, to fear You, as [do] Your people Israel, and that they may know that this house which I have built is called by Your name.

44. जब तेरी प्रजा के लोग जहां कहीं तू उन्हें भेजे, वहां अपने शत्रुओं से लड़ाई करने को निकल जाएं, और इस नगर की ओर जिसे तू ने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैं ने तेरे नाम पर बनाया है, यहोवा से प्रार्थना करें,

44. 'When Your people go out to battle against their enemy, by whatever way You shall send them, and they pray to the LORD toward the city which You have chosen and the house which I have built for Your name,

45. तब तू स्वर्ग में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनकर उनका न्याय कर।

45. then hear in heaven their prayer and their supplication, and maintain their cause.

46. निष्पाप तो कोई मनुष्य नहीं है : यदि ये भी तेरे विरूद्ध पाप करें, और तू उन पर कोप करके उन्हें श.ाुओं के हाथ कर दे, और वे उनको बन्धुआ करके अपने देश को चाहे वह दूर हो, चाहे निकट ले जवएं,

46. 'When they sin against You (for there is no man who does not sin) and You are angry with them and deliver them to an enemy, so that they take them away captive to the land of the enemy, far off or near;

47. तो यदि वे बन्धुआई के देश में सोच विचार करें, और फिरकर अपने बन्धुआ करनेवालों के देश में तुझ से गिड़गिड़ाकर कहें कि हम ने पाप किया, और कुटिलता ओर दुष्टता की है;

47. if they take thought in the land where they have been taken captive, and repent and make supplication to You in the land of those who have taken them captive, saying, 'We have sinned and have committed iniquity, we have acted wickedly';

48. और यदि वे अपने उन शत्रुओं के देश में जो उन्हें बन्धुआ करके ले गए हों, अपने सम्पूर्ण मन और सम्पूर्ण प्राण से तेरी ओर फिरें और अपने इस देश की ओर जो तू ने उनके पुरूखाओं को दिया था, और इस नगर की ओर जिसे तू ने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैं ने तेरे नाम का बनाया है, तुझ से प्रार्थना करें,

48. if they return to You with all their heart and with all their soul in the land of their enemies who have taken them captive, and pray to You toward their land which You have given to their fathers, the city which You have chosen, and the house which I have built for Your name;

49. तो तू अपने स्वग य निवासस्थान में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनना; और उनका न्याय करना,

49. then hear their prayer and their supplication in heaven Your dwelling place, and maintain their cause,

50. और जो पाप तेरी प्रजा के लोग तेरे विरूद्ध करेंगे, और जितने अपराध वे तेरे विरूद्ध करेंगे, सब को क्षमा करके, उनके बन्धुआ करनेवालों के मन में ऐसी दया उपजाना कि वे उन पर दया करें।

50. and forgive Your people who have sinned against You and all their transgressions which they have transgressed against You, and make them [objects of] compassion before those who have taken them captive, that they may have compassion on them

51. क्योंकि वे तो तेरी प्रजा और तेरा निज भाग हैं जिन्हें तू लोहे के भट्ठे के मध्य में से अर्थात् मिस्र से निकाल लाया है।

51. (for they are Your people and Your inheritance which You have brought forth from Egypt, from the midst of the iron furnace),

52. इसलिये तेरी आंखें तेरे दाय की गिड़गिड़ाहट और तेरी प्रजा इस्राएल की गिड़गिड़ाहट की ओर ऐसी खुली रहें, कि जब जब वे तुझे पुकारें, तब तब तू उनकी सुन ले;

52. that Your eyes may be open to the supplication of Your servant and to the supplication of Your people Israel, to listen to them whenever they call to You.

53. क्योंकि हे प्रभु यहोवा अपने उस वचन के अनुसार, जो तू ने हमारे पुरखाओं को मिस्र से निकालने के समय अपने दास मूसा के द्वारा दिया था, तू ने इन लोगों को अपना निज भाग होने के लिये पृथ्वी की सब जातियों से अलग किया है।

53. 'For You have separated them from all the peoples of the earth as Your inheritance, as You spoke through Moses Your servant, when You brought our fathers forth from Egypt, O Lord GOD.'

54. जब सुलैमान यहोवा से यह सब प्रार्थना गिड़गिड़ाहट के साथ कर चुका, तब वह जो घुटने टेके और आकाश की ओर हाथ फैलाए हुए था, सो यहोवा की वेदी के साम्हने से उठा,

54. When Solomon had finished praying this entire prayer and supplication to the LORD, he arose from before the altar of the LORD, from kneeling on his knees with his hands spread toward heaven.

55. और खड़ा हो, समस्त इस्राएली सभा को ऊंचे स्वर से यह कहकर आशीर्वाद दिया, कि धन्य है यहोवा,

55. And he stood and blessed all the assembly of Israel with a loud voice, saying:

56. जिस ने ठीक अपने कथन के अनुसार अपनी प्रजा इस्राएल को विश्राम दिया है, जितनी भलाई की बातें उसने अपने दास मूसा के द्वारा कही थीं,उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही।

56. 'Blessed be the LORD, who has given rest to His people Israel, according to all that He promised; not one word has failed of all His good promise, which He promised through Moses His servant.

57. हमारा परमेश्वर यहोवा जैसे हमारे पुरखाओं के संग रहता था, वैसे ही हमारे संग भी रहे, वह हम को त्याग न दे और न हम को छोड़ दे।

57. 'May the LORD our God be with us, as He was with our fathers; may He not leave us or forsake us,

58. वह हमारे मन अपनी ओर ऐसा फिराए रखे, कि हम उसके सब माग पर चला करें, और उसकी आज्ञाएं और विधियां और नियम जिन्हें उसने हमारे पुरखाओं को दिया था, नित माना करें।

58. that He may incline our hearts to Himself, to walk in all His ways and to keep His commandments and His statutes and His ordinances, which He commanded our fathers.

59. और मेरी ये बातें जिनकी मैं ने यहोवा के साम्हने बिनती की है, वह दिन और रात हमारे परमेश्वर यहोवा के मन में बनी रहें, और जैसा दिन दिन प्रयोजन हो वैसा ही वह अपने दास का और अपनी प्रजा इस्राएल का भी न्याय किया करे,

59. 'And may these words of mine, with which I have made supplication before the LORD, be near to the LORD our God day and night, that He may maintain the cause of His servant and the cause of His people Israel, as each day requires,

60. और इस से पृथ्वी की सब जातियां यह जान लें, कि यहोवा ही परमेश्वर है; और कोई दूसरा नहीं।

60. so that all the peoples of the earth may know that the LORD is God; there is no one else.

61. तो तुम्हारा मन हमारे परमेश्वर यहोवा की ओर ऐसी पूरी रीति से लगा रहे, कि आज की नाई उसकी विधियों पर चलते और उसकी आज्ञाएं मानते रहो।

61. 'Let your heart therefore be wholly devoted to the LORD our God, to walk in His statutes and to keep His commandments, as at this day.'

62. तब राजा समस्त इस्राएल समेत यहोवा के सम्मुख मेलबलि चढ़ाने लगा।

62. Now the king and all Israel with him offered sacrifice before the LORD.

63. और जो पशु सुलैमान ने मेलबलि में यहोवा को चढ़ाए, सो बाईस हजार बैल और एक लाख बीस हजार भेड़ें थीं। इस रीति राजा ने सब इस्राएलियों समेत यहोवा के भवन की प्रतिष्ठा की।

63. Solomon offered for the sacrifice of peace offerings, which he offered to the LORD, 22,000 oxen and 120,000 sheep. So the king and all the sons of Israel dedicated the house of the LORD.

64. उस दिन राजा ने यहोवा के भवन के साम्हनेवाले आंगन के मध्य भी एक स्थान पवित्रा किया और होमबलि, और अन्नबलि और मेलबलियों की चरबी वहीं चढ़ाई; क्योंकि जो पीतल की वेदी यहोवा के साम्हने थी, वह उनके लिये छोटी थी।

64. On the same day the king consecrated the middle of the court that [was] before the house of the LORD, because there he offered the burnt offering and the grain offering and the fat of the peace offerings; for the bronze altar that [was] before the LORD [was] too small to hold the burnt offering and the grain offering and the fat of the peace offerings.

65. और सुलैमान ने और उसके संग समस्त इस्राएल की एक बड़ी सभा ने जो हमात की घाटी से लेकर मिस्र के नाले तक के सब देशों से इट्ठी हुई थी, दो सप्ताह तक अर्थात् चौदह दिन तक हमारे परमेश्वर यहोवा के साम्हने पर्व को माना। फिर आठवें दिन उस ने प्रजा के लोगों को विदा किया।

65. So Solomon observed the feast at that time, and all Israel with him, a great assembly from the entrance of Hamath to the brook of Egypt, before the LORD our God, for seven days and seven [more] days, [even] fourteen days.

66. और वे राजा को धन्य, धन्य, कहकर उस सब भलाई के कारण जो यहोवा ने अपने दास दाऊद और अपनी प्रजा इस्राएल से की थी, आनन्दित और मगन होकर अपने अपने डेरे को चले गए।

66. On the eighth day he sent the people away and they blessed the king. Then they went to their tents joyful and glad of heart for all the goodness that the LORD had shown to David His servant and to Israel His people.



Shortcut Links
1 राजाओं - 1 Kings : 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 |
उत्पत्ति - Genesis | निर्गमन - Exodus | लैव्यव्यवस्था - Leviticus | गिनती - Numbers | व्यवस्थाविवरण - Deuteronomy | यहोशू - Joshua | न्यायियों - Judges | रूत - Ruth | 1 शमूएल - 1 Samuel | 2 शमूएल - 2 Samuel | 1 राजाओं - 1 Kings | 2 राजाओं - 2 Kings | 1 इतिहास - 1 Chronicles | 2 इतिहास - 2 Chronicles | एज्रा - Ezra | नहेम्याह - Nehemiah | एस्तेर - Esther | अय्यूब - Job | भजन संहिता - Psalms | नीतिवचन - Proverbs | सभोपदेशक - Ecclesiastes | श्रेष्ठगीत - Song of Songs | यशायाह - Isaiah | यिर्मयाह - Jeremiah | विलापगीत - Lamentations | यहेजकेल - Ezekiel | दानिय्येल - Daniel | होशे - Hosea | योएल - Joel | आमोस - Amos | ओबद्याह - Obadiah | योना - Jonah | मीका - Micah | नहूम - Nahum | हबक्कूक - Habakkuk | सपन्याह - Zephaniah | हाग्गै - Haggai | जकर्याह - Zechariah | मलाकी - Malachi | मत्ती - Matthew | मरकुस - Mark | लूका - Luke | यूहन्ना - John | प्रेरितों के काम - Acts | रोमियों - Romans | 1 कुरिन्थियों - 1 Corinthians | 2 कुरिन्थियों - 2 Corinthians | गलातियों - Galatians | इफिसियों - Ephesians | फिलिप्पियों - Philippians | कुलुस्सियों - Colossians | 1 थिस्सलुनीकियों - 1 Thessalonians | 2 थिस्सलुनीकियों - 2 Thessalonians | 1 तीमुथियुस - 1 Timothy | 2 तीमुथियुस - 2 Timothy | तीतुस - Titus | फिलेमोन - Philemon | इब्रानियों - Hebrews | याकूब - James | 1 पतरस - 1 Peter | 2 पतरस - 2 Peter | 1 यूहन्ना - 1 John | 2 यूहन्ना - 2 John | 3 यूहन्ना - 3 John | यहूदा - Jude | प्रकाशितवाक्य - Revelation |

Explore Parallel Bibles
21st Century KJV | A Conservative Version | American King James Version (1999) | American Standard Version (1901) | Amplified Bible (1965) | Apostles' Bible Complete (2004) | Bengali Bible | Bible in Basic English (1964) | Bishop's Bible | Complementary English Version (1995) | Coverdale Bible (1535) | Easy to Read Revised Version (2005) | English Jubilee 2000 Bible (2000) | English Lo Parishuddha Grandham | English Standard Version (2001) | Geneva Bible (1599) | Hebrew Names Version | Hindi Bible | Holman Christian Standard Bible (2004) | Holy Bible Revised Version (1885) | Kannada Bible | King James Version (1769) | Literal Translation of Holy Bible (2000) | Malayalam Bible | Modern King James Version (1962) | New American Bible | New American Standard Bible (1995) | New Century Version (1991) | New English Translation (2005) | New International Reader's Version (1998) | New International Version (1984) (US) | New International Version (UK) | New King James Version (1982) | New Life Version (1969) | New Living Translation (1996) | New Revised Standard Version (1989) | Restored Name KJV | Revised Standard Version (1952) | Revised Version (1881-1885) | Revised Webster Update (1995) | Rotherhams Emphasized Bible (1902) | Tamil Bible | Telugu Bible (BSI) | Telugu Bible (WBTC) | The Complete Jewish Bible (1998) | The Darby Bible (1890) | The Douay-Rheims American Bible (1899) | The Message Bible (2002) | The New Jerusalem Bible | The Webster Bible (1833) | Third Millennium Bible (1998) | Today's English Version (Good News Bible) (1992) | Today's New International Version (2005) | Tyndale Bible (1534) | Tyndale-Rogers-Coverdale-Cranmer Bible (1537) | Updated Bible (2006) | Voice In Wilderness (2006) | World English Bible | Wycliffe Bible (1395) | Young's Literal Translation (1898) | Hindi Reference Bible |