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1. फिर छठवें वर्ष के छठवें महीने के पांचवें दिन को जब मैं अपने घर में बैठा था, और यहूदियों के पुरदिये मेरे साम्हने बैठे थे, तब प्रभु यहोवा की शक्ति वहीं मुझ पर प्रगट हुई।
1. And it came to pass in the sixth year, in the sixth month, in the fifth day of the month, as I sat in my house, and the elders of Judah sat before me, that the hand of lord LORD fell there upon me.
2. और मैं ने देखा कि आग का सा एक रूप दिखई देता है; उसकी कमर से नीचे की ओर आग है, और उसकी कमर से ऊपर की ओर झलकाए हुए पीतल की झलक सी कुछ है।प्रकाशितवाक्य 1:13
2. Then I beheld, and, lo, a likeness as the appearance of fire, from the appearance of his loins and downward, fire, and from his loins and upward, as the appearance of brightness, as it were glowing metal.
3. उस ने हाथ सा कुछ बढ़ाकर मेरे सिर के बाल पकड़े; तब आत्मा ने मुझे पृथ्वी और आकाश के बीच में उठाकर परमेश्वर के दिखाए हुए दर्शनों में यरूशलेम के मन्दिर के भीतर, आंगन के उस फाटक के पास पहुचा दिया जिसका मुंह उत्तर की ओर है; और जिस में उस जलन उपजानेवाली प्रतिमा का स्थान था जिसके कारण द्वेष उपजता है।
3. And he put forth the form of a hand, and took me by a lock of my head. And the Spirit lifted me up between earth and heaven, and brought me in the visions of God to Jerusalem, to the door of the gate of the inner court that looks toward the north, where the seat of the image of jealousy was, which provokes to jealousy.
4. फिर वहां इस्राएल के परमेश्वर का तेज वैसा ही था जैसा मैं ने मैदान में देखा था।
4. And, behold, the glory of the God of Israel was there, according to the appearance that I saw in the plain.
5. उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, अपनी आंखें उत्तर की ओर उठाकर देख। सो मैं ने अपनी आंखें उत्तर की ओर उठाकर देखा कि वेदी के फाटक की उत्तर की ओर उसके प्रवेशस्थान ही में वह डाह उपजानेवाली प्रतिमा है।
5. Then he said to me, Son of man, lift up thine eyes now the way toward the north. So I lifted up my eyes the way toward the north, and, behold, northward of the gate of the altar was this image of jealousy in the entry.
6. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू देखता है कि ये लोग क्या कर रहे हैं? इस्राएल का घराना क्या ही बड़े घृणित काम यहां करता है, ताकि मैं अपने पवित्रास्थान से दूर हो जाऊं; परन्तु तू इन से भी अधिक घृणित काम देखेगा।
6. And he said to me, Son of man, see thou what they do, even the great abominations that the house of Israel commit here, that I should go far off from my sanctuary? But thou shall again see yet other great abominations.
7. तब वह मुझे आंगन के द्वार पर ले गया, और मैं ने देखा, कि भीत में एक छेद है।
7. And he brought me to the door of the court. And when I looked, behold, a hole in the wall.
8. तब उस ने मूझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, भीत को फोड़; तो मैं ने भीत को फोड़कर क्या देखा कि एक द्वार है
8. Then he said to me, Son of man, dig now in the wall. And when I had dug in the wall, behold, a door.
9. उस ने मुझ से कहा, भीतर जाकर देख कि ये लोग यहां कैसे कैसे और अति घृणित काम कर रहे हैं।
9. And he said to me, Go in, and see the wicked abominations that they do here.
10. सो मैं ने भीतर जाकर देखा कि चारों ओर की भीत पर जाति जाति के रेंगनेवाले जन्तुओं और घृणित पशुओं और इस्राएल के घराने की सब मूरतों के चित्रा खिचे हुए हैं।
10. So I went in and saw, and, behold, every form of creeping things, and abominable beasts, and all the idols of the house of Israel, portrayed upon the wall round about.
11. और इस्राएल के घराने के पुरनियों में से सत्तर पुरूष जिन के बीच में शापान का पुत्रा याजन्याह भी है, वे उन चित्रों के साम्हने खड़े हैं, और हर एक पुरूष अपने हाथ में घूपदान लिए हुए है; और धूप के धूएं के बादल की सुगन्ध उठ रही है।
11. And there stood before them seventy men of the elders of the house of Israel. And in the midst of them stood Jaazaniah the son of Shaphan, each man with his censer in his hand, and the odor of the cloud of incense went up.
12. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू ने देखा है कि इस्राएल के घराने के पुरनिये अपनी अपनी नक्काशीवाली कोठरियों के भीतर अर्थात् अन्धियारे में क्या कर रहे हैं? वे कहते हैं कि यहोवा हम को नहीं देखता; यहोवा ने देश को त्याग दिया है।
12. Then he said to me, Son of man, have thou seen what the elders of the house of Israel do in the dark, each man in his chambers of imagery? For they say, LORD does not see us. LORD has forsaken the land.
13. फिर उस ने मुझ से कहा, तू इन से और भी अति घृणित काम देखेगा जो वे करते हैं।
13. He also said to me, Thou shall again see yet other great abominations which they do.
14. तब वह मुझे यहोवा के भवन के उस फाटक के पास ले गया जो उत्तर की ओर था और वहां िस्.त्रायां बैठी हुई तम्मूज के लिये रो रही थीं।
14. Then he brought me to the door of the gate of LORD's house which was toward the north. And, behold, there sat the women weeping for Tammuz.
15. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू ने यह देखा है? फिर इन से भी बड़े घृृणित काम तू देखेगा।
15. Then he said to me, Have thou seen this, O son of man? Thou shall again see yet greater abominations than these.
16. तब वह मुझे यहोवा के भवन के भीतरी आंगन में ले गया; और वहां यहोवा के भवन के द्वार के पास ओसारे और वेदी के बीच कोई पच्चीस पुरूष अपनी पीठ यहोवा के भवन की ओर और अपने मुख पूर्व की ओर किए हुए थे; और वे पूर्व दिशा की ओर सूर्य को दण्डवत् कर रहे थे।
16. And he brought me into the inner court of LORD's house. And, behold, at the door of the temple of LORD, between the porch and the altar, were about twenty-five men with their backs toward the temple of LORD, and their faces toward the east, and they were worshipping the sun toward the east.
17. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू ने यह देखा? क्या यहूदा के घराने के लिये घृणित कामों का करना जो वे यहां करते हैं छोटी बात है? उन्होंने अपने देश को उपद्रव से भर दिया, और फिर यहां आकर मुझे रिस दिलाते हैं। वरन वे डाली को अपनी नाक के आगे लिए रहते हैं।
17. Then he said to me, Have thou seen this, O son of man? Is it a light thing to the house of Judah that they commit the abominations which they commit here? For they have filled the land with violence, and have turned again to provoke me to anger. And, lo, they put the branch to their nose.
18. इसलिये मैं भी जलजलाहट के साथ काम करूंगा, न मैं दया करूंगा और न मैं कोमलता करूंगा; और चाहे वे मेरे कानों में ऊंचे शब्द से पुकारें, तौभी मैं उनकी बात न सुनूंगा।
18. Therefore I will also deal in wrath. My eye shall not spare, nor will I have pity. And though they cry in my ears with a loud voice, yet I will not hear them.