Isaiah - यशायाह 5 | View All

1. अब मैं अपने प्रिय के लिये और उसकी दाख की बारी के विषय में गीत गाऊंगा: एक अति उपजाऊ टीले पर मेरे प्रिय की एक दाख की बरी थी।
मत्ती 21:33, मरकुस 12:1, लूका 20:9

1. Let me now sing of my friend, my friend's song concerning his vineyard. My friend had a vineyard on a fertile hillside;

2. उस ने उसकी मिट्टी खोदी और उसके पत्थर बीनकर उस में उत्तम जाति की एक दाखलता लगाई; उसके बीच में उस ने एक गुम्मट बनाया, और दाखरस के लिये एक कुण्ड भी खोदा; तब उस ने दाख की आशा की, परन्तु उस में निकम्मी दाखें ही लगीं।।

2. He spaded it, cleared it of stones, and planted the choicest vines; Within it he built a watchtower, and hewed out a wine press. Then he looked for the crop of grapes, but what it yielded was wild grapes.

3. अब हे यरूशलेम के निवासियों और हे यहूदा के मनुष्यों, मेरे और मेरी दाख की बारी के बीच न्याय करो।

3. Now, inhabitants of Jerusalem and men of Judah, judge between me and my vineyard:

4. मेरी दाख की बारी के लिये और क्या करना रह गया जो मैं ने उसके लिये न किया हो? फिर क्या कारण है कि जब मैं ने दाख की आशा की तब उस में निकम्मी दाखें लगीं?

4. What more was there to do for my vineyard that I had not done? Why, when I looked for the crop of grapes, did it bring forth wild grapes?

5. अब मैं तुम को जताता हूं कि अपनी दाख की बारी से क्या करूंगा। मैं उसके कांटेवाले बाड़े को उखाड़ दूंगा कि वह चट की जाए, और उसकी भीत को ढा दूंगा कि वह रौंदी जाए।

5. Now, I will let you know what I mean to do to my vineyard: Take away its hedge, give it to grazing, break through its wall, let it be trampled!

6. मैं उसे उजाड़ दूंगा; वह न तो फिर छांटी और न खोदी जाएगी और उस में भांति भांति के कटीले पेड़ उगेंगे; मैं मेघों को भी आज्ञा दूंगा कि उस पर जल न बरसाएं।।

6. Yes, I will make it a ruin: it shall not be pruned or hoed, but overgrown with thorns and briers; I will command the clouds not to send rain upon it.

7. क्योंकि सेनाओं के यहोवा की दाख की बारी इस्राएल का घराना, और उसका मनभाऊ पौधा यहूदा के लोग है; और उस ने उन में न्याय की आशा की परन्तु अन्याय देख पड़ा; उस ने धर्म की आशा की, परन्तु उसे चिल्लाहट ही सुन पड़ी!

7. The vineyard of the LORD of hosts is the house of Israel, and the men of Judah are his cherished plant; He looked for judgment, but see, bloodshed! for justice, but hark, the outcry!

8. हाय उन पर जो घर से घर, और खेत से खेत यहां तक मिलाते जाते हैं कि कुछ स्थान नहीं बचता, कि तुम देश के बीच अकेले रह जाओ।

8. Woe to you who join house to house, who connect field with field, Till no room remains, and you are left to dwell alone in the midst of the land!

9. सेनाओं के यहोवा ने मेरे सुनते कहा है: निश्चय बहुत से घर सुनसान हो जाएंगे, और बड़ें बड़े और सुन्दर घर निर्जन हो जाएंगे।
याकूब 5:4

9. In my hearing the LORD of hosts has sworn: Many houses shall be in ruins, large ones and fine, with no one to live in them.

10. क्योंकि दस बीघे की दाख की बारी से एक ही बत दाखमधु मिलेगा, और होमेर भर के बीच से एक ही एपा अन्न उत्पन्न होगा।।

10. Ten acres of vineyard shall yield but one liquid measure, And a homer of seed shall yield but an ephah.

11. हाय उन पर जो बड़े तड़के उठकर मदिरा पीने लगते हैं और बड़ी रात तक दाखमधु पीते रहते हैं जब तक उनको गर्मी न चढ़ जाए!

11. Woe to those who demand strong drink as soon as they rise in the morning, And linger into the night while wine inflames them!

12. उनकी जेवनारों में वीणा, सारंगी, डफ, बांसली और दाखमधु, ये सब पाये जाते हैं; परन्तु वे यहोवा के कार्य की ओर दृष्टि नहीं करते, और उसके हाथों के काम को नहीं देखते।।

12. With harp and lyre, timbrel and flute, they feast on wine; But what the LORD does, they regard not, the work of his hands they see not.

13. इसलिये अज्ञानता के कारण मेरी प्रजा बंधुआई में जाती है, उसके प्रतिष्ठित पुरूष भूखों मरते और साधारण लोग प्यास से ब्याकुल होते हैं।

13. Therefore my people go into exile, because they do not understand; Their nobles die of hunger, and their masses are parched with thirst.

14. इसलिये अधोलोक ने अत्यन्त लालसा करके अपना मुंह बेपरिमाण पसारा है, और उनका विभव और भीड़ भाड़ और आनन्द करनेवाले सब के सब उसके मुंह में जा पड़ते हैं।

14. Therefore the nether world enlarges its throat and opens its maw without limit; Down go their nobility and their masses, their throngs and their revelry.

15. साधारण मनुष्य दबाए जाते और बड़े मनुष्य नीचे किए जाते हैं, और अभिमानियों की आंखें नीची की जाती हैं।

15. Men shall be abased, each one brought low, and the eyes of the haughty lowered,

16. परन्तु सेनाओं का यहोवा न्याय करने के कारण महान ठहरता, और पवित्रा परमेश्वर धर्मी होने के कारण पवित्रा ठहरता है!

16. But the LORD of hosts shall be exalted by his judgment, and God the Holy shall be shown holy by his justice.

17. तब भेड़ों के बच्चे मानो अपने खेत में चरेंगे, परन्तु हृष्टपुष्टों के उजड़े स्थान परदेशियों को चराई के लिये मिलेंगे।।

17. Lambs shall graze there at pasture, and kids shall eat in the ruins of the rich.

18. हाय उन पर जो अधर्म को अनर्थ की रस्सियों से और पाप को मानो गाड़ी के रस्से से खींच ले आते हैं,

18. Woe to those who tug at guilt with cords of perversity, and at sin as if with cart ropes!

19. जो कहते हैं, वह फुर्ती करे और अपने काम को शीघ्र करे कि हम उसको देखें; और इस्राएल के पवित्रा की युक्ति प्रगट हो, वह निकट आए कि हम उसको समझें!

19. To those who say, 'Let him make haste and speed his work, that we may see it; On with the plan of the Holy One of Israel! let it come to pass, that we may know it!'

20. हाय उन पर जो बुरे को भला और भले को बुरा कहते, जो अंधियारे को उजियाला और उजियाले को अंधियारा ठहराते, और कडुवे को मीठा और मीठे को कड़वा करके मानते हैं!

20. Woe to those who call evil good, and good evil, who change darkness into light, and light into darkness, who change bitter into sweet, and sweet into bitter!

21. हाय उन पर जो अपनी दृष्टि में ज्ञानी और अपने लेखे बुद्धिमान हैं!
रोमियों 12:16

21. Woe to those who are wise in their own sight, and prudent in their own esteem!

22. हाय उन पर जो दाखमधु पीने में वीर और मदिरा को तेज बनाने में बहादुर हैं,

22. Woe to the champions at drinking wine, the valiant at mixing strong drink!

23. जो घूस लेकर दुष्टों को निर्दोष, और निर्दोषों को दोषी ठहराते हैं!

23. To those who acquit the guilty for bribes, and deprive the just man of his rights!

24. इस कारण जैसे अग्नि की लौ से खूंटी भस्म होती है और सूखी घास जलकर बैठ जाती है, वैसे ही उनकी जड़ सड़ जाएगी और उनके फूल धूल होकर उड़ जाएंगे; क्योंकि उन्हों ने सेनाओं के यहोवा की व्यवस्था को निकम्मी जाना, और इस्राएल के पवित्रा के वचन को तुच्छ जाना है।

24. Therefore, as the tongue of fire licks up stubble, as dry grass shrivels in the flame, Even so their root shall become rotten and their blossom scatter like dust; For they have spurned the law of the LORD of hosts, and scorned the word of the Holy One of Israel.

25. इस कारण यहोवा का क्रोध अपनी प्रजा पर भड़का है, और उस ने उनके विरूद्ध हाथ बढ़ाकर उनको मारा है, और पहाड़ कांप उठे; और लोगों की लोथें सड़कों के बीच कूड़ा सी पड़ी हैं। इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।।

25. Therefore the wrath of the LORD blazes against his people, he raises his hand to strike them; When the mountains quake, their corpses shall be like refuse in the streets. For all this, his wrath is not turned back, and his hand is still outstretched.

26. वह दूर दूर की जातियों के लिये झण्डा खड़ा करेगा, और सींटी बजाकर उनको पृथ्वी की छोर से बुलाएगा; देखो, वे फुर्ती करके वेग से आएंगे!

26. He will give a signal to a far-off nation, and whistle to them from the ends of the earth; speedily and promptly will they come.

27. उन में कोई थका नहीं न कोई ठोकर खाता है; कोई ऊंघने वा सोनेवाला नहीं, किसी का फेंटा नहीं खुला, और किसी के जूतों का बन्धन नहीं टूटा;

27. None of them will stumble with weariness, none will slumber and none will sleep. None will have his waist belt loose, nor the thong of his sandal broken.

28. उनके तीर चोखे और धनुष चढ़ाए हुए हैं, उनके घोड़ों के खुर वज्र के से और रथों के पहिये बवण्डर सरीखे हैं।

28. Their arrows are sharp, and all their bows are bent. The hoofs of their horses seem like flint, and their chariot wheels like the hurricane.

29. वे सिंह वा जवान सिंह की नाई गरजते हैं; वे गुर्राकर अहेर को पकड़ लेते और उसको ले भागते हैं, और कोई उसे उन से नहीं छुड़ा सकता।

29. Their roar is that of the lion, like the lion's whelps they roar; They growl and seize the prey, they carry it off and none will rescue it.

30. उस समय वे उन पर समुद्र के गर्जन की नाई गर्जेंगे और यदि कोई देश की ओर देखे, तो उसे अन्धकार और संकट देख पड़ेगा और ज्योति मेघों से छिप जाएगी।।

30. (They will roar over it, on that day, with a roaring like that of the sea.)



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