Isaiah - यशायाह 57 | View All

1. धर्मी जन नाश होता है, और कोई इस बात की चिन्ता नहीं करता; भक्त मनुष्य उठा लिए जाते हैं, परन्तु कोई नहीं सोचता। धर्मी जन इसलिये उठा लिया गया कि आनेवाली आपत्ति से बच जाए,

1. ধার্ম্মিক বিনষ্ট হইতেছে, কিন্তু কেহ সে বিষয়ে মনোযোগ করে না; সাধু মনুষ্যগণকে চয়ন করা যাইতেছে, কিন্তু কেহ বিবেচনা করে না যে, বিপদের সম্মুখ হইতে ধার্ম্মিককে চয়ন করা যাইতেছে।

2. वह शान्ति को पहुंचता है; जो सीधी चाल चलता है वह अपनी खाट पर विश्राम करता है।।

2. সে শান্তিতে প্রবেশ করে; সরলপথ-গামীরা প্রত্যেকে আপন আপন শয্যার উপরে বিশ্রাম করে।

3. परन्तु तुम, हे जादूगरती के पुत्रों, हे व्यभिचारी और व्यभिचारिणी की सन्तान, यहां निकट आओ।

3. কিন্তু, হে গণিকার পুত্রগণ, পরদারিকের ও বেশ্যার বংশ, তোমরা নিকটবর্ত্তী হইয়া এখানে আইস।

4. तुम किस पर हंसी करते हो? तुम किस पर मुंह खोलकर जीभ निकालते हो? क्या तुम पाखण्डी और झूठे के वंश नहीं हो,

4. তোমরা কাহাকে উপহাস কর? কাহাকে দেখিয়া মুখ বক্র ও জিহ্বা বাহির কর? তোমরা কি অধর্ম্মের সন্তান ও মিথ্যাকথার বংশ নও?

5. तुम, जो सब हरे वृक्षों के तले देवताओं के कारण कामातुर होते और नालों में और चट्टानों ही दरारों के बीच बाल- बच्चों को वध करते हो?

5. তোমরা এলা বৃক্ষগণের মধ্যে সমুদয় হরিৎপর্ণ বৃক্ষের তলে [দেবকামে] জ্বলিয়া থাক, তোমরা নানা উপত্যকায় ও শৈল-দরীর তলে আপন আপন বালকগণকে বধ করিয়া থাক।

6. नालों के चिकने पत्थर ही तेरा भाग और अंश ठहरे; तू ने उनके लिये तपावन दिया और अन्नबलि चढ़ाया है। क्या मैं इन बातों से शान्त हो जाऊं?

6. উপত্যকার চিক্কণ প্রস্তর সকলের মধ্যে তোমার অংশ, সেইগুলিই তোমার অধিকার; তাহাদেরই উদ্দেশে তুমি পানীয় দ্রব্য ঢালিয়াছ, নৈবেদ্য উৎসর্গ করিয়াছ।

7. एक बड़े ऊंचे पहाड़ पर तू ने अपना बिछौना छिाया है, वहीं तू बलि चढ़ाने को चढ़ गई।

7. এই সকলেতে আমি কি ক্ষান্ত হইব? তুমি উর্চ্চ ও তুঙ্গ পর্ব্বতের উপরে তোমার শয্যা পাতিয়াছ; সেই স্থানেও তুমি বলিদান করিতে উঠিয়াছিলে;

8. तू ने अपनी चिन्हानी अपने द्वार के किवाड़ और चौखट की आड़ ही में रखी; मुझे छोड़कर तू औरों को अपने तई दिखाने के लिये चढ़ी, तू ने अपनी खाट चौड़ी की और उन से वाचा बान्ध ली, तू ने उनकी खाट को जहां देखा, पसन्द किया।

8. আর তোমার স্মৃতিস্তম্ভ কবাটের ও চৌকাঠের পশ্চাতে রাখিয়াছ; কেননা তুমি আমাকে ছাড়িয়া আর এক জনকে পাইয়া বস্ত্র খুলিয়া খাটে উঠিয়াছ, আপন শয্যা বৃদ্ধি করিয়া উহাদের সহিত নিয়ম করিয়াছ, উহাদের শয্যা দেখিয়া তাহা ভালবাসিয়াছ।

9. तू तेल लिए हुए राजा के पास गई और बहुत सुगन्धित तेल अपने काम में लाई; अपने दूत तू ने दूर तक भेजे और अधोलोक तक अपने को नीचा किया।

9. আর তুমি তৈল মাখিয়া রাজার নিকটে গমন করিয়াছিলে, প্রচুর সুগন্ধিদ্রব্য ব্যবহার করিয়াছিলে, দূরদেশে আপন দূতগণকে প্রেরণ করিয়াছিলে, এবং পাতাল পর্য্যন্ত আপনাকে অবনত করিয়াছিলে।

10. तू अपनी यात्रा की लम्बाई के कारण थक गई, तौभी तू ने न कहा कि यह व्यर्थ है; तेरा बल कुछ अधिक हो गया, इसी कारण तू नहीं थकी।।

10. তোমার যাতায়াতের আধিক্য প্রযুক্ত পথশ্রান্তা হইয়াছিলে, তথাপি ‘আশা নাই’ ইহা বল নাই; তোমার হস্তের নাড়ী টের পাইয়াছ, এজন্য তুমি ক্লান্তা হও নাই।

11. तू ने किस के डर से झूठ कहा, और किसका भय मानकर ऐसा किया कि मुझ को स्मरण नहीं रखा न मुझ पर ध्यान दिया? क्या मैं बहुत काल से चुप नहीं रहा? इस कारण तू मेरा भय नहीं मानती।

11. বল দেখি, কাহা হইতে এমন ত্রাসযুক্তা ও ভীতা হইয়াছ যে, মিথ্যা কথা বলিতেছ, এবং আমাকে ভুলিয়া গিয়াছ, মনে স্থান দেও নাই? আমি কি চিরকালাবধি নীরব রহি নাই, তাই বুঝি আমাকে ভয় কর না?

12. मैं आप तेरे धर्म और कर्मों का वर्णन करूंगा, परन्तु, उन से तुझे कुछ लाभ न होगा।

12. আমি তোমার ধার্ম্মিকতার তত্ত্ব দেখাইব! আর তোমার কার্য্য সকল! সে সকল তোমার উপকারী হইবে না।

13. जब तू दोहाई दे, तब जिन मूर्त्तियों को तू ने जमा किया है वह ही तुझे छुड़ाएं ! वे तो सब की सब वायु से वरन एक ही फूंक से उड़ जाएंगी। परन्तु जो मेरी शरण लेगा वह देश का अधिकारी होगा, और मेरे पवित्रा पर्वत को भी अधिकारी होगा।।

13. তুমি যখন ক্রন্দন কর, তখন তোমার সঞ্চিত [পুত্তলিগণ] তোমাকে উদ্ধার করুক। কিন্তু বায়ু তাহাদিগকে উড়াইয়া লইবে, একটী নিঃশ্বাস সে সকলকে লইয়া যাইবে; কিন্তু যে ব্যক্তি আমার শরণাপন্ন সে দেশাধিকার পাইবে, ও আমার পবিত্র পর্ব্বত অধিকার করিবে।

14. और यह कहा जाएगा, पांति बान्ध बान्धकर राजमार्ग बनाओ, मेरी प्रजा के मार्ग में से हर एक ठोकर दूर करो।

14. আর বলা হইবে, উচ্চ কর, উচ্চ কর, পথ পরিষ্কার কর, আমার প্রজাগণের পথ হইতে বিঘ্ন দূর কর।

15. क्योंकि जो महान और उत्तम और सदैव स्थिर रहता, और जिसका नाम पवित्रा है, वह यों कहता है, मैं ऊंचे पर और पवित्रा स्थान में निवास करता हूं, और उसके संग भी रहता हूं, जो खेदित और नम्र हैं, कि, नम्र लोगों के हृदय और खेदित लोगों के मन को हर्षित करूं।

15. কেননা যিনি উচ্চ ও উন্নত, যিনি অনন্তকালনিবাসী, যাঁহার নাম “পবিত্র”, তিনি এই কথা কহেন, আমি ঊর্দ্ধলোকে ও পবিত্র স্থানে বাস করি, চূর্ণ ও নম্রাত্মা মনুষ্যের সঙ্গেও বাস করি, যেন নম্রদিগের আত্মাকে সঞ্জীবিত করি ও চূর্ণ লোকদের হৃদয়কে সঞ্জীবিত করি।

16. मैं सदा मुक मा न लड़ता रहूंगा, न सर्वदा क्रोधित रहूंगा; क्योंकि आत्मा मेरे बनाए हुए हैं और जीव मेरे साम्हने मूर्च्छित हो जाते हैं।

16. কারণ আমি নিত্য বিবাদ করিব না, সর্ব্বদা ক্রোধ করিব না; করিলে আত্মা, এবং আমার নির্ম্মিত প্রাণী সকল, আমার সম্মুখে মূর্চ্ছাপন্ন হইবে।

17. उसके लोभ के पाप के कारण मैं ने क्रोधित होकर उसको दु:ख दिया था, और क्रोध के मारे उस से मुंह छिपाया था; परन्तु वह अपने मनमाने मार्ग में दूर भटकता चला गया था।

17. তাহার লোভরূপ অপরাধে আমি ক্রুদ্ধ হইলাম ও তাহাকে আঘাত করিলাম, আপন [মুখ] লুকাইয়া ক্রোধ করিলাম, তথাপি সে বিমুখ হইয়া আপন মনের মত পথে চলিল।

18. मैं उसकी चाल देखता आया हूं, तौभी अब उसको चंगा करूंगा; मैं उसे ले चलूंगा और विशेष करके उसके शोक करनेवालों को शान्ति दूंगा।

18. আমি তাহার পথ সকল দেখিয়াছি, আর তাহাকে সুস্থ করিব; আমি তাহার পথপ্রদর্শকও হইব, এবং তাহাকে ও তাহার শোকাকুলদিগকে সান্ত্বনারূপ ধন দিব।

19. मैं मुंह के फल का सृजनहार हूं; यहोवा ने कहा है, जो दूर और जो निकट हैं, दोनों को पूरी शान्ति मिले; और मैं उसको चंगा करूंगा।
इफिसियों 2:13-17, रोमियों 2:39, इब्रानियों 13:15

19. আমি ওষ্ঠাধরের ফল সৃষ্টি করি; শান্তি নিকটবর্ত্তী ও দূরবর্ত্তী উভয়েরই শান্তি, ইহা সদাপ্রভু কহেন; হাঁ, আমি তাহাকে সুস্থ করিব!

20. परन्तु दुष्ट तो लहराते समुुद्र के समान है जो स्थिर नहीं रह सकता; और उसका जल मैल और कीच उछालता है।
यहूदा 1:13

20. কিন্তু দুষ্টগণ আলোড়িত সমুদ্রের তুল্য, তাহা ত স্থির হইতে পারে না, ও তাহার জলে পঙ্ক ও কর্দ্দম উঠে।

21. दुष्टों के लिये शान्ति नहीं है, मेरे परमेश्वर का यही वचन है।।

21. আমার ঈশ্বর কহেন, দুষ্ট লোকদের কিছুই শান্তি নাই।



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