15. क्योंकि जो महान और उत्तम और सदैव स्थिर रहता, और जिसका नाम पवित्रा है, वह यों कहता है, मैं ऊंचे पर और पवित्रा स्थान में निवास करता हूं, और उसके संग भी रहता हूं, जो खेदित और नम्र हैं, कि, नम्र लोगों के हृदय और खेदित लोगों के मन को हर्षित करूं।
15. For thus says the high and lofty One--He Who inhabits eternity, Whose name is Holy: I dwell in the high and holy place, but with him also who is of a thoroughly penitent and humble spirit, to revive the spirit of the humble and to revive the heart of the thoroughly penitent [bruised with sorrow for sin]. [Matt. 5:3.]