Ecclesiastes - सभोपदेशक 8 | View All

1. बुद्धिमान के तुल्य कौन है? और किसी बात का अर्थ कौन लगा सकता है? मनुष्य की बुद्धि के कारण उसका मुख चमकता, और उसके मुचा की कठोरता दूर हो जाती है।

1. Who is like the wise man, and who knows the explanation of things? A man's wisdom illumines his face, but an impudent look is resented.

2. मैं तुझे सम्मति देता हूं कि परमेश्वर की शपथ के कारण राजा की आज्ञा मान।

2. Observe the precept of the king, and in view of your oath to God,

3. राजा के साम्हने से उतावली के साथ न लौटना और न बुरी बात पर हठ करना, क्योंकि वह जो कुछ चाहता है करता है।

3. be not hasty to withdraw from the king; do not join in with a base plot, for he does whatever he pleases,

4. क्योंकि राजा के वचन में तो सामर्थ्य रहती है, और कौन उस से कह सकता है कि तू क्या करता है?

4. because his word is sovereign, and who can say to him, 'What are you doing?'

5. जो आज्ञा को मानता है, वह जोखिम से बचेगा, और बुद्धिमान का मन समय और न्याय का भेद जानता है।

5. 'He who keeps the commandment experiences no evil, and the wise man's heart knows times and judgments;

6. क्योंकि हर एक विषय का समय और नियम होता है, यद्यिप मनुष्य का दु:ख उसके लिये बहुत भारी होता है।

6. for there is a time and a judgment for everything.'-- Yet it is a great affliction for man

7. वह नहीं जानता कि क्या होनेवाला है, और कब होगा? यह उसको कौन बता सकता है?

7. that he is ignorant of what is to come; for who will make known to him how it will be?

8. ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिसका वश प्राण पर चले कि वह उसे निकलते समय रोक ले, और न कोई मृत्यु के दिन पर अधिकारी होता है; और न उसे लड़ाई से छृट्टी मिल सकती है, और न दुष्ट लोग अपनी दुष्टता के कारण बच सकते हैं।

8. There is no man who is master of the breath of life so as to retain it, and none has mastery of the day of death. There is no exemption from the struggle, nor are the wicked saved by their wickedness.

9. जितने काम धरती पर किए जाते हैं उन सब को ध्यानपूर्वक देखने में यह सब कुछ मैं ने देखा, और यह भी देखा कि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है।।

9. All these things I considered and I applied my mind to every work that is done under the sun, while one man tyrannizes over another to his hurt.

10. तब मैं ने दुष्टों को गाढ़े जाते देखा; अर्थात् उनकी तो कब्र बनी, परन्तु जिन्हों ने ठीक काम किया था वे पवित्रास्थान से निकल गए और उनका स्मरण भी नगर में न रहा; यह भी व्यर्थ ही है।

10. Meanwhile I saw wicked men approach and enter; and as they left the sacred place, they were praised in the city for what they had done. This also is vanity.

11. बुरे काम के दण्ड की आज्ञा फुर्ती से नहीं दी जाती; इस कारण मनुष्यों का मन बुरा काम करने की इच्छा से भरा रहता है।

11. Because the sentence against evildoers is not promptly executed, therefore the hearts of men are filled with the desire to commit evil--

12. चाहे पापी सौ बार पाप करे अपने दिन भी बढ़ाए, तौभी मुझे निश्चय है कि जो परमेश्वर से डरते हैं और अपने तई उसको सम्मुख जानकरद्दीाय से चलते हैं, उनका भला ही होगा;

12. because the sinner does evil a hundred times and survives. Though indeed I know that it shall be well with those who fear God, for their reverence toward him;

13. परन्तु दुष्ट का भला नहीं होने का, और न उसकी जीवनरूपी छाया लम्बी होने पाएगी, क्योंकि वह परमेश्वर का भय नहीं मानता।।

13. and that it shall not be well with the wicked man, and he shall not prolong his shadowy days, for his lack of reverence toward God.

14. एक व्यर्थ बात पृथ्वी पर होती है, अर्थात् ऐसे धर्मी हैं जिनकी वह दशा होती है जो दुष्टों की होनी चाहिये, और ऐसे दुष्ट हैं जिनकी वह दशा होती है हो धर्मियों की होनी चाहिये। मैं ने कह कि यह भी व्यर्थ ही है।

14. This is a vanity which occurs on earth: there are just men treated as though they had done evil and wicked men treated as though they had done justly. This, too, I say is vanity.

15. तब मैं ने आनन्द को सराहा, क्योंकि सूर्य के नीचे मनुष्य के लिये खाने- पीने और आनन्द करने को छोड़ और कुछ भी अच्छा नहीं, क्योंकि यही उसके जीवन भर जो परमेश्वर उसके लिये धरती पर ठहराए, उसके परिश्रम में उसके संग बना रहेगा।।

15. Therefore I commend mirth, because there is nothing good for man under the sun except eating and drinking and mirth: for this is the accompaniment of his toil during the limited days of the life which God gives him under the sun.

16. जब मैं ने बुद्धि प्राप्त करने और सब काम देखने के लिये जो पृथ्वी पर किए जाते हैं अपना मन लगाया, कि कैसे मनुष्य रात- दिन जागते रहते हैं;

16. When I applied my heart to know wisdom and to observe what is done on earth,

17. तब मैं ने परमेश्वर का सारा काम देखा जो सूर्य के नीचे किया जाता है, उसकी थाह मनुष्य नहीं पा सकता। चाहे मनुष्य उसकी खोज में कितना भी परिश्रम करे, तौभी उसको न जान पाएगा; और यद्यिप बुद्धिमान कहे भी कि मैं उसे समझूंगा, तौभी वह उसे न पा सकेगा।।

17. I recognized that man is unable to find out all God's work that is done under the sun, even though neither by day nor by night do his eyes find rest in sleep. However much man toils in searching, he does not find it out; and even if the wise man says that he knows, he is unable to find it out.



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