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1. हे परमेश्वर, तू ने हमें क्यों सदा के लिये छोड़ दिया है? तेरी कोपाग्नि का धुआं तेरी चराई की भेंड़ों के विरूद्ध क्यों उठ रहा है?
1. হে ঈশ্বর, তুমি কেন চিরতরে ত্যাগ করিয়াছ? আপন চরাণির মেষগণের বিরুদ্ধে কেন তোমার ক্রোধাগ্নি প্রধূমিত হইতেছে?
2. अपनी मण्डली को जिसे तू ने प्राचीनकाल में मोल लिया था, और अपने निज भाग का गोत्रा होने के लिये छुड़ा लिया था, और इस सिरयोन पर्वत को भी, जिस पर तू ने वास किया था, स्मारण कर!प्रेरितों के काम 20:28
2. তোমার মণ্ডলীকে স্মরণ কর, যাহা তুমি পূর্ব্বকালে ক্রয় করিয়াছ, যাহা তোমার অধিকারের বংশ হইবার জন্য তুমি মুক্ত করিয়াছ; তোমার বাসস্থান সিয়োন পর্ব্বতকে স্মরণ কর।
3. अपने डग सनातन की खंडहर की ओर बढ़ा; अर्थात् उन सब बुराइयों की ओर जो शत्राृ ने पवित्रास्थान में किए हैं।।
3. এই চিরকালীন স্তূপে পদার্পণ কর; শত্রু ধর্ম্মধামে সকলই ছারখার করিয়াছে।
4. तेरे द्रोही तेरे सभास्थान के बीच गरजते रहे हैं; उन्हों ने अपनी ही ध्वजाओं को चिन्ह ठहराया है। वे उन मनुष्यों के समान थे
4. তোমার বিপক্ষগণ তোমার সমাগম-স্থানের মধ্যে গর্জ্জন করিয়াছে; চিহ্নের জন্য তাহারা আপনাদের চিহ্ন স্থাপন করিয়াছে।
5. जो घने वन के पेड़ों पर कुल्हाड़े चलाते हैं।
5. তাহারা এমন লোকদের ন্যায় দেখাইল, যাহারা নিবিড় বনে কুঠার উঠায়
6. और अब वे उस भवन की नक्काशी को, कुल्हाडियों और हथौड़ों से बिलकुल तोड़े डालते हैं।
6. এখন তাহারা একেবারে তথাকার সমস্ত শিল্পকর্ম্ম কুঠার ও হাতুড়ি দ্বারা ভাঙ্গিয়া ফেলে।
7. उन्हों ने तेरे पवित्रास्थान को आग में झोंक दिया है, और तेरे नाम के निवास को गिराकर अशुद्ध कर डाला है।
7. তাহারা তোমার ধর্ম্মধাম অগ্নিসাৎ করিল, তোমার নামের আবাস ভূমিসাৎ করিয়া অশুচি করিল।
8. उन्हों ने मन में कहा है कि हम इनको एकदक दबा दें; उन्हों ने इस देश में ईश्वर के सब सभास्थानों कों फूंक दिया है।।
8. তাহারা মনে মনে কহিল, ‘আমরা তাহাদিগকে একেবারে সংহার করি,’ তাহারা দেশের মধ্যে ঈশ্বরের সমস্ত সমাগম-স্থান পোড়াইয়া দিয়াছে।
9. हम को हमारे निशान नहीं देख पड़ते; अब कोई नबी नहीं रहा, न हमारे बीच कोई जानता है कि कब तक यह दशा रहेगी।
9. আমরা আমাদের চিহ্নসমূহ দেখিতে পাই না, কোন ভাববাদী আর নাই; আমাদের কেহ জানে না, কত দিন।
10. हे परमेश्वर द्रोही कब तक नामधराई करता रहेगा? क्या शत्रु, तेरे नाम की निन्दा सदा करता रहेगा?
10. হে ঈশ্বর, বিপক্ষ কত দিন তিরস্কার করিবে? শত্রু কি চিরকাল তোমার নাম তুচ্ছ করিবে?
11. तू अपना दहिना हाथ क्यों रोके रहता है? उसे अपने पांजर से निकाल कर उनका अन्त कर दे।।
11. তুমি আপন হস্ত, আপন দক্ষিণ হস্ত, কেন সঙ্কুচিত করিতেছ? উহা বক্ষঃস্থল হইতে বাহির কর, শত্রু নিঃশেষ কর।
12. परमेश्वर तो प्राचीनकाल से मेरा राजा है, वह पृथ्वी पर उद्धार के काम करता आया है।
12. তথাপি ঈশ্বরই পূর্ব্বাবধি আমার রাজা, পৃথিবীর মধ্যে পরিত্রাণের সাধনকর্ত্তা।
13. तू ने अपनी शक्ति से समुद्र को दो भाग कर दिया; तू ने जल में मगरमच्छों के सिरों को फोड़ दिया।
13. তুমিই আপন পরাক্রমে সমুদ্রকে দ্বিধা করিয়াছিলে, তুমিই জলে নাগদের মস্তক ভগ্ন করিয়াছিলে।
14. तू ने तो लिव्यातानों के सिर टुकड़े टुकड़े करके जंगली जन्तुओं को खिला दिए।
14. তুমিই লিবিয়াথনের মস্তক চূর্ণ করিয়াছিলে, মরুভূমি-নিবাসী সকলকে খাদ্যরূপে তাহার দেহ দিয়াছিলে।
15. तू ने तो सोता खोलकर जल की धारा बहाई, तू ने तो बारहमासी नदियों को सुखा डाला।
15. তুমিই উৎস ও বন্যার জন্য পথ করিয়াছিলে, তুমিই নিত্য প্রবাহিনী নদী শুষ্ক করিয়াছিলে।
16. दिन तेरा है रात भी तेरी है; सूर्य और चन्द्रमा को तू ने स्थिर किया है।
16. দিবস তোমার, রাত্রিও তোমার; তুমিই জ্যোতিষ্ক ও সূর্য্য রচনা করিয়াছ।
17. तू ने तो पृथ्वी के सब सिवानों को ठहराया; धूपकाल और जाड़ा दोनों तू ने ठहराए हैं।।
17. তুমিই পৃথিবীর সমস্ত সীমা স্থাপন করিয়াছ; তুমিই গ্রীষ্মকাল ও শীতকাল করিয়াছ।
18. हे यहोवा स्मरण कर, कि शत्रु ने नामधराई ही है, और मूढ़ लोगों ने तेरे नाम की निन्दा की है।
18. স্মরণ কর, শত্রু সদাপ্রভুকে তিরস্কার করিয়াছে, মূঢ় জাতি তোমার নাম তুচ্ছ করিয়াছে।
19. अपनी पिण्डुकी के प्राण को वनपशु के वश में न कर; अपने दी जनों को सदा के लिये न भूल
19. তোমার ঘুঘুর প্রাণ বন্য পশুকে দিও না; তোমার দুঃখিগণের জীবন চিরতরে ভুলিও না।
20. अपनी वाचा की सुधि ले; क्योंकि देश के अन्धेरे स्थान अत्याचार के घरों से भरपूर हैं।
20. সেই নিয়মের প্রতি দৃষ্টি রাখ; কেননা পৃথিবীর অন্ধকারময় স্থান সকল অত্যাচারের বসতিতে পরিপূর্ণ।
21. पिसे हुए जन को निरादर होकर लौटना न पड़े; दीन दरिद्र लोग तेरे नाम की स्तुति करने पाएं।।
21. উৎপীড়িত ব্যক্তি যেন লজ্জিত হইয়া ফিরিয়া না যায়; দুঃখী ও দরিদ্র তোমার নামের প্রশংসা করুক।
22. हे परमेश्वर उठ, अपना मुक मा आप ही लड़; तेरी जो नामधराई मूढ़ से दिन भर होती रहती है, उसे स्मरण कर।
22. উঠ, হে ঈশ্বর, আপনার বিবাদ নিষ্পন্ন কর; স্মরণ কর, মূঢ় সমস্ত দিন তোমাকে কেমন তিরস্কার করে।
23. अपने द्रोहियों का बड़ा बोल न भूल, तेरे विरोधियों को कोलाहल तो निरन्तर उठता रहता है।
23. তোমার বিপক্ষগণের রব ভুলিও না; তোমার প্রতিরোধীদের কলহ নিয়ত উঠিতেছে।