1 Peter - 1 पतरस 2 | View All

1. इसलिये सब प्रकार का बैरभाव और छल और कपट और डाह और बदनामी को दूर करके।

1. SO BE done with every trace of wickedness (depravity, malignity) and all deceit and insincerity (pretense, hypocrisy) and grudges (envy, jealousy) and slander and evil speaking of every kind.

2. नये जन्में हुए बच्चों की नाई निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो, ताकि उसके द्वारा उद्धार पाने के लिये बढ़ते जाओ।

2. Like newborn babies you should crave (thirst for, earnestly desire) the pure (unadulterated) spiritual milk, that by it you may be nurtured and grow unto [completed] salvation,

3. यदि तुम ने प्रभु की कृपा का स्वाद चख लिया है।
भजन संहिता 34:8

3. Since you have [already] tasted the goodness and kindness of the Lord. [Ps. 34:8.]

4. उसके पास आकर, जिसे मनुष्यों ने तो निकम्मा ठहराया, परन्तु परमेश्वर के निकट चुना हुआ, और बहुमूल्य जीवता पत्थर है।
भजन संहिता 118:22, यशायाह 28:16, दानिय्येल 2:34-35

4. Come to Him [then, to that] Living Stone which men tried and threw away, but which is chosen [and] precious in God's sight. [Ps. 118:22; Isa. 28:16.]

5. तुम भी आप जीवते पत्थरों की नाई आत्मिक घर बनते जाते हो, जिस से याजकों का पवित्रा समाज बनकर, ऐसे आत्मिक बलिदान चढ़ाओ, जो यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर को ग्राह्य हो।
निर्गमन 19:6, यशायाह 61:6

5. [Come] and, like living stones, be yourselves built [into] a spiritual house, for a holy (dedicated, consecrated) priesthood, to offer up [those] spiritual sacrifices [that are] acceptable and pleasing to God through Jesus Christ.

6. इस कारण पवित्रा शास्त्रा में भी आया है, कि देखो, मैं सिरयोन में कोने के सिरे का चुना हुआ और बहुमूल्य पत्थर धरता हूं: और जो कोई उस पर विश्वास करेगा, वह किसी रीति से लज्जित नहीं होगा।
यशायाह 28:16

6. For thus it stands in Scripture: Behold, I am laying in Zion a chosen (honored), precious chief Cornerstone, and he who believes in Him [who adheres to, trusts in, and relies on Him] shall never be disappointed or put to shame. [Isa. 28:16.]

7. सो तुम्हारे लिये जो विश्वास करते हो, वह तो बहुमूल्य है, पर जो विश्वास नहीं करते उन के लिये जिस पत्थर को राजमिद्दीयों ने निकम्मा ठहराया था, वही कोने का सिरा हो गया।
भजन संहिता 118:22, दानिय्येल 2:34-35

7. To you then who believe (who adhere to, trust in, and rely on Him) is the preciousness; but for those who disbelieve [it is true], The [very] Stone which the builders rejected has become the main Cornerstone, [Ps. 118:22.]

8. और ठेस लगने का पत्थर और ठोकर खाने की चट्टान हो गया है: क्योंकि वे तो वचन को न मानकर ठोकर खाते हैं और इसी के लिये वे ठहराए भी गए थे।
यशायाह 8:14-15

8. And, A Stone that will cause stumbling and a Rock that will give [men] offense; they stumble because they disobey and disbelieve [God's] Word, as those [who reject Him] were destined (appointed) to do.

9. पर तुम एक चुना हुआ वंश, और राज- पदधारी, याजकों का समाज, और पवित्रा लोग, और ( परमेश्वर की ) निज प्रजा हो, इसलिये कि जिस ने तुम्हें अन्धकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो।
निर्गमन 19:5, निर्गमन 23:22, व्यवस्थाविवरण 4:20, व्यवस्थाविवरण 7:6, व्यवस्थाविवरण 10:15, व्यवस्थाविवरण 14:2, यशायाह 9:2, यशायाह 42:12, यशायाह 43:20-21, निर्गमन 19:6, यशायाह 61:6

9. But you are a chosen race, a royal priesthood, a dedicated nation, [God's] own purchased, special people, that you may set forth the wonderful deeds and display the virtues and perfections of Him Who called you out of darkness into His marvelous light. [Exod. 19:5, 6.]

10. तुम पहिले तो कुछ भी नहीं थे, पर अब परमेश्वर ही प्रजा हो: तुम पर दया नहीं हुई थी पर अब तुम पर दया हुई है।।
होशे 1:6, होशे 1:10, होशे 2:1, होशे 2:23

10. Once you were not a people [at all], but now you are God's people; once you were unpitied, but now you are pitied and have received mercy. [Hos. 2:23.]

11. हे प्रियों मैं तुम से बिनती करता हूं, कि तुम अपने आप को परदेशी और यात्री जानकर उस सांसारिक अभिलाषाओं से जो आत्मा से युद्ध करती हैं, बचे रहो।
भजन संहिता 39:12

11. Beloved, I implore you as aliens and strangers and exiles [in this world] to abstain from the sensual urges (the evil desires, the passions of the flesh, your lower nature) that wage war against the soul.

12. अन्यजातियों में तुम्हारा चालचलन भला हो; इसलिये कि जिन जिन बातों में वे तुम्हें कुकर्मी जानकर बदनाम करते हैं, वे तुम्हारे भले कामों को देखकर; उन्हीं के कारण कृपा दृष्टि के दिन परमेश्वर की महिमा करें।।
यशायाह 10:3

12. Conduct yourselves properly (honorably, righteously) among the Gentiles, so that, although they may slander you as evildoers, [yet] they may by witnessing your good deeds [come to] glorify God in the day of inspection [when God shall look upon you wanderers as a pastor or shepherd looks over his flock].

13. प्रभु के लिये मनुष्यों के ठहराए हुए हर एक प्रबन्ध के आधीन में रहो, राजा के इसलिये कि वह सब पर प्रधान है।

13. Be submissive to every human institution and authority for the sake of the Lord, whether it be to the emperor as supreme,

14. और हाकिमों के, क्योंकि वे कुकर्मियों को दण्ड देने और सुकर्मियों की प्रशंसा के लिये उसके भेजे हुए हैं।

14. Or to governors as sent by him to bring vengeance (punishment, justice) to those who do wrong and to encourage those who do good service.

15. क्योंकि परमेश्वर की इच्छा यह है, कि तुम भले काम करने से निर्बुद्धि लोगों की अज्ञानता की बातों को बन्द कर दो।

15. For it is God's will and intention that by doing right [your good and honest lives] should silence (muzzle, gag) the ignorant charges and ill-informed criticisms of foolish persons.

16. और अपने आप को स्वतंत्रा जानो पर अपनी इस स्वतंत्राता को बुराई के लिये आड़ न बनाओ, परन्तु अपने आप को परमेश्वर के दास समझकर चलो।

16. [Live] as free people, [yet] without employing your freedom as a pretext for wickedness; but [live at all times] as servants of God.

17. सब का आदर करो, भाइयों से प्रेम रखो, परमेश्वर से डरो, राजा का सम्मान करो।।
नीतिवचन 24:21

17. Show respect for all men [treat them honorably]. Love the brotherhood (the Christian fraternity of which Christ is the Head). Reverence God. Honor the emperor.

18. हे सेवकों, हर प्रकार के भय के साथ अपने स्वामियों के आधीन रहो, न केवल भलों और नम्रों के, पर कुटिलों के भी।

18. [You who are] household servants, be submissive to your masters with all [proper] respect, not only to those who are kind and considerate and reasonable, but also to those who are surly (overbearing, unjust, and crooked).

19. क्योंकि यदि कोई परमेश्वर का विचार करके अन्याय से दुख उठाता हुआ क्लेश सहता है, तो यह सुहावना है।

19. For one is regarded favorably (is approved, acceptable, and thankworthy) if, as in the sight of God, he endures the pain of unjust suffering.

20. क्योंकि यदि तुम ने अपराध करके घूसे खाए और धीरज धरा, तो उस में क्या बड़ाई की बात है? पर यदि भला काम करके दुख उठाते हो और धीरज धरते हो, तो यह परमेश्वर को भाता है।

20. [After all] what kind of glory [is there in it] if, when you do wrong and are punished for it, you take it patiently? But if you bear patiently with suffering [which results] when you do right and that is undeserved, it is acceptable and pleasing to God.

21. और तुम इसी के लिये बुलाए भी गए हो क्योंकि मसीह भी तुम्हारे लिये दुख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो।

21. For even to this were you called [it is inseparable from your vocation]. For Christ also suffered for you, leaving you [His personal] example, so that you should follow in His footsteps.

22. न तो उस ने पाप किया, और न उसके मुंह से छल की कोई बात निकली।
यशायाह 53:9

22. He was guilty of no sin, neither was deceit (guile) ever found on His lips. [Isa. 53:9.]

23. वह गाली सुनकर गाली नहीं देता था, और दुख उठाकर किसी को भी धमकी नहीं देता था, पर अपने आप को सच्चे न्यायी के हाथ में सौपता था।
यशायाह 53:7

23. When He was reviled and insulted, He did not revile or offer insult in return; [when] He was abused and suffered, He made no threats [of vengeance]; but he trusted [Himself and everything] to Him Who judges fairly.

24. वह आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिए हुए क्रूस पर चढ़ गया जिस से हम पापों के लिये मर करके धार्मिकता के लिये जीवन बिताएं: उसी के मार खाने से तुम चंगे हुए।
यशायाह 53:4, यशायाह 53:5, यशायाह 53:12

24. He personally bore our sins in His [own] body on the tree [as on an altar and offered Himself on it], that we might die (cease to exist) to sin and live to righteousness. By His wounds you have been healed.

25. क्योंकि तुम पहिले भटकी हुई भेड़ों की नाईं थे, पर अब अपने प्राणों के रखवाले और अध्यक्ष के पास फिर आ गए हो।
यशायाह 53:6, यहेजकेल 34:5-6

25. For you were going astray like [so many] sheep, but now you have come back to the Shepherd and Guardian (the Bishop) of your souls. [Isa. 53:5, 6.]



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