25. और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना ने छोड़ें, जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें; और ज्यों ज्यों उस दिन को निकट आते देखो, त्यों त्यों और भी अधिक यह किया करो।।
25. Not forsaking or neglecting to assemble together [as believers], as is the habit of some people, but admonishing (warning, urging, and encouraging) one another, and all the more faithfully as you see the day approaching.