Luke - लूका 6 | View All

1. फिर सब्त के दिन वह खेतों में से होकर जा रहा था, और उसके चेले बालें तोड़ तोड़कर, और हाथों से मल मल कर खाते जाते थे।
व्यवस्थाविवरण 23:25

1. এক দিন বিশ্রামবারে যীশু শস্যক্ষেত্র দিয়া যাইতেছিলেন, এমন সময়ে তাঁহার শিষ্যেরা শীষ ছিঁড়িয়া ছিঁড়িয়া হাতে মাড়িয়া খাইতে লাগিলেন।

2. तब फरीसियों में से कई एक कहने लगे, तुम वह काम क्यों करते हो जो सब्त के दिन करना उचित नहीं?

2. তাহাতে কএক জন ফরীশী কহিল, বিশ্রামবারে যাহা করা বিধেয় নয়, তোমরা কেন তাহা করিতেছ?

3. यीशु ने उन का उत्तर दिया; क्या तुम ने यह नहीं पढ़ा, कि दाऊद ने जब वह और उसके साथी भूखे थे तो क्या किया?

3. যীশু উত্তর করিয়া তাহাদিগকে কহিলেন, দায়ূদ ও তাঁহার সঙ্গীরা ক্ষুধিত হইলে তিনি কি করিয়াছিলেন, তাহাও কি তোমরা পাঠ কর নাই?

4. वह क्योंकर परमेश्वर के घर में गया, और भेंट की रोटियां लेकर खाई, जिन्हें खाना याजकों को छोड़ और किसी को उचित नही, और अपने साथियों को भी दी?
लैव्यव्यवस्था 24:5-9, 1 शमूएल 21:6

4. তিনি ত ঈশ্বরের গৃহে প্রবেশ করিয়া, যে দর্শন-রুটী কেবল যাজকবর্গ ব্যতিরেকে আর কাহারও ভোজন করা বিধেয় নয়, তাহা লইয়া আপনি ভোজন করিয়াছিলেন, এবং সঙ্গিগণকে দিয়াছিলেন।

5. और उस ने उन से कहा; मनुष्य का पुत्रा सब्त के दिन का भी प्रभु है।

5. পরে তিনি তাহাদিগকে কহিলেন, মনুষ্যপুত্র বিশ্রামবারের কর্ত্তা।

6. और ऐसा हुआ कि किसी और सब्त के दिन को वह आराधनालय में जाकर उपदेश करने लगा; और वहां एक मनुष्य था, जिस का दहिना हाथ सूखा था।

6. আর এক বিশ্রামবারে তিনি সমাজ-গৃহে প্রবেশ করিয়া উপদেশ দিলেন; সেই স্থানে একটী লোক ছিল, তাহার দক্ষিণ হস্ত শুকাইয়া গিয়াছিল।

7. शास्त्री और फरीसी उस पर दोष लगाने का अवसर पाने के लिये उस की ताक में थे, कि देखें कि वह सब्त के दिन चंगा करता है कि नहीं।

7. আর অধ্যাপকেরা ও ফরীশীরা, তিনি বিশ্রামবারে সুস্থ করেন কি না, দেখিবার জন্য তাঁহার প্রতি দৃষ্টি রাখিল, যেন তাঁহার নামে দোষারোপ করিবার সূত্র পায়।

8. परन्तु वह उन के विचार जानता था; इसलिये उसने सूखे हाथवाले मनुष्य से कहा; उठ, बीच में खड़ा हो: वह उठ खड़ा हुआ।
1 शमूएल 16:7

8. কিন্তু তিনি তাহাদের চিন্তা জ্ঞাত ছিলেন, আর সেই শুষ্কহস্ত ব্যক্তিকে কহিলেন, উঠ, মাঝখানে দাঁড়াও। তাহাতে সে উঠিয়া দাঁড়াইল।

9. यीशु ने उन से कहा; मैं तुम से यह पूछता हूं कि सब्त के दिन क्या उचित है, भला करन या बुरा करना; प्राण को बचाना या नाश करना?

9. পরে যীশু তাহাদিগকে কহিলেন, তোমাদিগকে জিজ্ঞাসা করি, বিশ্রামবারে কি করা বিধেয়? ভাল করা না মন্দ করা? প্রাণ রক্ষা করা না নাশ করা?

10. और उस ने चारों ओर उन सभों को देखकर उस मनुष्य से कहा; अपना हाथ बढ़ा: उस ने ऐसा ही किया, और उसका हाथ फिर चंगा हो गया।

10. পরে তিনি চারিদিকে তাহাদের সকলের প্রতি দৃষ্টিপাত করিয়া সেই লোকটীকে বলিলেন, তোমার হাত বাড়াইয়া দেও। সে তাহা করিল, আর তাহার হাত সুস্থ হইল।

11. परन्तु वे आपे से बाहर होकर आपस में विवाद करने लगे कि हम यीशु के साथ क्या करें?

11. কিন্তু তাহারা উন্মত্ততায় পূর্ণ হইল, আর যীশুর প্রতি কি করিবে, তাহাই পরস্পর বলাবলি করিতে লাগিল।

12. और उन दिनों में वह पहाड़ पर प्रार्थना करने को निकला, और परमेश्वर से प्रार्थना करने में सारी रात बिताई।

12. সেই সময়ে তিনি একদা প্রার্থনা করণার্থে বাহির হইয়া পর্ব্বতে গেলেন, আর ঈশ্বরের নিকটে প্রার্থনা করিতে করিতে সমস্ত রাত্রি যাপন করিলেন।

13. जब दिन हुआ, तो उस ने अपने चेलों को बुलाकर उन में से बारह चुन लिए, और उन को प्रेरित कहा।

13. পরে যখন দিবস হইল, তিনি আপন শিষ্যগণকে ডাকিলেন, এবং তাঁহাদের মধ্য হইতে বারো জনকে মনোনীত করিলেন, আর তাঁহাদিগকে ‘প্রেরিত’ নাম দিলেন;

14. और वे ये हैं शमौन जिस का नाम उस ने पतरस भी रखा; और उसका भाई अन्द्रियास और याकूब और यूहन्ना और फिलिप्पुस और बरतुलमै।

14. —শিমোন, যাঁহাকে তিনি পিতর নামও দিলেন, ও তাঁহার ভ্রাতা আন্দ্রিয়, এবং যাকোব ও যোহন, এবং ফিলিপ ও বর্থলময়, এবং মথি ও থোমা,

15. और मत्ती और थोमा और हलफई का पुत्रा याकूब और शमौन जो जेलोतेस कहलाता है।

15. এবং আল্‌ফেয়ের [পুত্র] যাকোব ও উদ্‌যোগী আখ্যাত শিমোন, যাকোবের [পুত্র] যিহূদা,

16. और याकूब का बेटा यहूदा और यहूदा इसकरियोती, जो उसका पकड़वानेवाला बना।

16. এবং ঈষ্করিয়োতীয় যিহূদা, যে তাঁহাকে [শত্রু হস্তে] সমর্পণ করে।

17. तब वह उन के साथ उतरकर चौरस जगह में खड़ा हुआ, और उसके चेलों की बड़ी भीड़, और सारे यहूदिया और यरूशलेम और सूर और सैदा के समुद्र के किनारे से बहुतेरे लोग, जो उस की सुनने और अपनी बीमारियों से चंगा होने के लिय उसके पास आए थे, वहां थे।

17. পরে তিনি তাঁহাদের সহিত নামিয়া এক সমান ভূমির উপরে গিয়া দাঁড়াইলেন; আর তাঁহার অনেক শিষ্য এবং সমস্ত যিহূদিয়া ও যিরূশালেম এবং সোর ও সীদোনের সমুদ্র উপকূল হইতে বিস্তর লোক উপস্থিত হইল; তাহারা তাঁহার বাক্য শুনিবার ও আপন আপন রোগ হইতে সুস্থ হইবার নিমিত্তে তাঁহার নিকটে আসিয়াছিল,

18. और अशुद्ध आत्माओं के सताए हुए लोग भी अच्छे किए जाते थे।

18. এবং যাহারা অশুচি আত্মা দ্বারা উৎপীড়িত হইতেছিল, তাহারা সুস্থ হইল।

19. और सब उसे छूना चाहते थे, क्योंकि उस में से सामर्थ निकलकर सब को चंगा करती थी।।

19. আর, সমস্ত লোক তাঁহাকে স্পর্শ করিতে চেষ্টা করিল, কেননা তাঁহা হইতে শক্তি নির্গত হইয়া সকলকে সুস্থ করিতেছিল।

20. तब उस ने अपने चेलों की ओर देखकर कहा; धन्य हो तुम, जो दीन हो, क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारा है।

20. পরে তিনি আপন শিষ্যগণের প্রতি দৃষ্টিপাত করিয়া কহিলেন, ধন্য দীনহীনেরা, কারণ ঈশ্বরের রাজ্য তোমাদেরই।

21. धन्य हो तुम, जो अब भूखे हो; क्योंकि तृप्त किए जाओगे; धन्य हो तुम, जो अब रोते हो, क्योंकि हंसोगे।
भजन संहिता 126:5-6, यशायाह 61:3, यिर्मयाह 31:25

21. ধন্য তোমরা, যাহারা এক্ষণে ক্ষুধিত, কারণ তোমরা পরিতৃপ্ত হইবে। ধন্য তোমরা, যাহারা এক্ষণে রোদন কর, কারণ তোমরা হাসিবে।

22. धन्य हो तुम, जब मनुष्य के पुत्रा के कारण लोग तुम से बैर करेंगे, और तुम्हें निकाल देंगे, और तुम्हारी निन्दा करेंगे, और तुम्हारा नाम बुरा जानकर काट देंगे।

22. ধন্য তোমরা, যখন লোকে মনুষ্যপুত্রের নিমিত্ত তোমাদিগকে দ্বেষ করে, আর যখন তোমাদিগকে পৃথক্‌ করিয়া দেয়, ও নিন্দা করে, এবং তোমাদের নাম মন্দ বলিয়া দূর করিয়া দেয়।

23. उस दिन आनन्दित होकर उछलना, क्योंकि देखो, तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा प्रतिफल है: उन के बाप- दादे भविष्यद्वक्ताओं के साथ भी वैसा ही किया करते थे।
2 इतिहास 36:16

23. সেই দিন আনন্দ করিও ও নৃত্য করিও, কেননা দেখ, স্বর্গে তোমাদের পুরস্কার প্রচুর; কেননা তাহাদের পিতৃপুরুষেরা ভাববাদিগণের প্রতি তাহাই করিত।

24. परन्तु हाय तुम पर; जो धनवान हो, क्योंकि तुम अपनी शान्ति पा चुके।

24. কিন্তু ধিক্‌ তোমাদিগকে, হা ধনবানেরা, কারণ তোমরা আপনাদের সান্ত্বনা পাইয়াছ।

25. परन्तु हाय तुम पर; जो अब तृप्त हो, क्योंकि भूखे होगे: हाय, तुम पर; जो अब हंसते हो, क्योंकि शोक करोगे और रोओगे।

25. ধিক্‌ তোমাদিগকে, যাহারা এক্ষণে পরিতৃপ্ত, কারণ তোমরা ক্ষুধিত হইবে; ধিক্‌ তোমাদিগকে, যাহারা এক্ষণে হাস্য কর, কারণ তোমরা বিলাপ ও রোদন করিবে।

26. हाय, तुम पर; जब सब मनुष्य तुम्हें भला कहें, क्योंकि उन के बाप- दादे झूठे भविष्यद्वक्ताओं के साथ भी ऐसा ही किया करते थे।।

26. ধিক্‌ তোমাদিগকে, যখন সকল লোকে তোমাদের সুখ্যাতি করে, কারণ তাহাদের পিতৃপুরুষেরা ভাক্ত ভাববাদীদের প্রতি তাহাই করিত।

27. परन्तु मैं तुम सुननेवालों से कहता हूं, कि अपने शत्रुओं से प्रेम रखो; जो तुम से बैर करें, उन का भला करो।
भजन संहिता 25:21

27. কিন্তু তোমরা যে শুনিতেছ, আমি তোমাদিগকে বলি, তোমরা আপন আপন শত্রুদিগকে প্রেম করিও; যাহারা তোমাদিগকে দ্বেষ করে, তাহাদের মঙ্গল করিও;

28. जो तुम्हें स्राप दें, उन को आशीष दो: जो तुम्हारा अपमान करें, उन के लिये प्रार्थना करो।

28. যাহারা তোমাদিগকে শাপ দেয়, তাহাদিগকে আশীর্ব্বাদ করিও; যাহারা তোমাদিগকে নিন্দা করে, তাহাদের নিমিত্ত প্রার্থনা করিও।

29. जो तेरे एक गाल पर थप्पड़ मारे उस की ओर दूसरा भी फेर दे; और जो तेरी दोहर छीन ले, उस को कुरता लेने से भी न रोक।

29. যে তোমার এক গালে চড় মারে, তাহার দিকে অন্য গালও পাতিয়া দিও; এবং যে তোমার চোগা তুলিয়া লয়, তাহাকে আঙ্‌রাখাটীও লইতে বারণ করিও না।

30. जो कोई तुझ से मांगे, उसे दे; और जो तेरी वस्तु छीन ले, उस से न मांग।

30. যে কেহ তোমার কাছে যাচ্ঞা করে, তাহাকে দিও; এবং যে তোমার দ্রব্য তুলিয়া লয়, তাহার কাছে তাহা আর চাহিও না।

31. और जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो।

31. আর তোমরা যেরূপ ইচ্ছা কর যে, লোকে তোমাদের প্রতি করে, তোমরাও তাহাদের প্রতি সেইরূপ করিও।

32. यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों के साथ प्रेम रखो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी भी अपने प्रेम रखनेवालों के साथ प्रेम रखते हैं।

32. আর যাহারা তোমাদিগকে প্রেম করে, তাহাদিগকেই প্রেম করিলে তোমরা কিরূপ সাধুবাদ পাইতে পার? কেননা পাপীরাও, যাহারা তাহাদিগকে প্রেম করে, তাহাদিগকে প্রেম করে।

33. और यदि तुम अपने भलाई करनेवालों ही के साथ भलाई करते हो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी भी ऐसा ही करते हैं।

33. আর যাহারা তোমাদের উপকার করে, যদি তাহাদের উপকার কর, তবে তোমরা কিরূপ সাধুবাদ পাইতে পার? পাপীরাও তাহাই করে।

34. और यदि तुम उसे उधार दो, जिन से फिर पाने की आशा रखते हो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी पापियों को उधार देते हैं, कि उतना ही फिर पाएं।

34. আর যাহাদের কাছে পাইবার আশা থাকে, যদি তাহাদিগকেই ধার দেও, তবে তোমরা কিরূপ সাধুবাদ পাইতে পার? পাপীরাও পাপীদিগকে ধার দেয়, যেন সেই পরিমাণে পুনরায় পায়।

35. बरन अपने शत्रुओं से प्रेम रखो, और भलाई करो: और फिर पाने की आस न रखकर उधार दो; और तुम्हारे लिये बड़ा फल होगा; और तुम परमप्रधान के सन्तान ठहरोगे, क्योंकि वह उन पर जो धन्यवाद नहीं करते और बुरों पर भी कृपालु है।
लैव्यव्यवस्था 25:35-36

35. কিন্তু তোমরা আপন আপন শত্রুদিগকে প্রেম করিও, তাহাদের ভাল করিও, এবং কখনও নিরাশ না হইয়া ধার দিও, তাহা করিলে তোমাদের মহাপুরস্কার হইবে, এবং তোমরা পরাৎপরের সন্তান হইবে, কেননা তিনি অকৃতজ্ঞদের ও দুষ্টদের প্রতিও কৃপাবান্‌।

36. जैसा तुम्हारा पिता दयावन्त है, वैसे ही तुम भी दयावन्त बनो।

36. তোমাদের পিতা যেমন দয়ালু, তোমরাও তেমনি দয়ালু হও।

37. दोष मत लगाओ; तो तुम पर भी दोष नहीं लगाया जाएगा: दोषी न ठहराओ, तो तुम भी दोषी नहीं ठहराए जाओगे: क्षमा करो, तो तुम्हारी भी क्षमा की जाएगी।

37. আর তোমরা বিচার করিও না, তাহাতে বিচারিত হইবে না। আর দোষী করিও না, তাহাতে দোষীকৃত হইবে না। তোমরা ছাড়িয়া দিও, তাহাতে তোমাদেরও ছাড়িয়া দেওয়া যাইবে।

38. दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा: लोग पूरा नाम दबा दबाकर और हिला हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाम से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।।

38. দেও, তাহাতে তোমাদিগকেও দেওয়া যাইবে; লোকে বিলক্ষণ পরিমাণে চাপিয়া ঝাঁকরিয়া উপচিয়া তোমাদের কোলে দিবে; কারণ তোমরা যে পরিমাণে পরিমাণ কর, সেই পরিমাণে তোমাদেরও নিমিত্তে পরিমাণ করা যাইবে।

39. फिर उस ने उन से एक दृष्टान्त कहा; क्या अन्धा, अन्धे को मार्ग बता सकता है? क्या दोनो गड़हे में नहीं गिरेंगे?

39. আর তিনি তাহাদিগকে একটী দৃষ্টান্তও কহিলেন, অন্ধ কি অন্ধকে পথ দেখাইতে পারে? উভয়েই কি গর্ত্তে পড়িবে না?

40. चेला अपने गुरू से बड़ा नहीं, परन्तु जो कोई सिद्ध होगा, वह अपने गुरू के समान होगा।

40. শিষ্য গুরু হইতে বড় নয়, কিন্তু যে কেহ পরিপক্ব হয়,

41. तू अपने भाई की आंख के तिनके को क्यों देखता है, और अपनी ही आंख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता?

41. সে আপন গুরুর তুল্য হইবে। আর তোমার ভ্রাতার চক্ষে যে কুটা আছে, তাহাই কেন দেখিতেছ, কিন্তু তোমার নিজের চক্ষে যে কড়িকাট আছে, তাহা কেন ভাবিয়া দেখিতেছ না?

42. और जब तू अपनी ही आंख का लट्ठा नहीं देखता, तो अपने भाई से क्योंकर कह सकता है, हे भाई, ठहर जा तेरी आंख से तिनके को निकाल दूं? हे कपटी, पहिले अपनी आंख से लट्ठा निकाल, तब जो तिनका तेरे भाई की आंख में है, भली भांति देखकर निकाल सकेगा।

42. তোমার চক্ষে যে কড়িকাট আছে, তাহা যখন দেখিতেছ না, তখন তুমি কেমন করিয়া আপন ভ্রাতাকে বলিতে পার, ভাই, এস, আমি তোমার চক্ষু হইতে কুটাগাছটা বাহির করিয়া দিই? তোমার নিজের চক্ষে যে কড়িকাট আছে, তাহা ত তুমি দেখিতেছ না! হে কপটী, আগে আপনার চক্ষু হইতে কড়িকাট বাহির করিয়া ফেল, তার পর তোমার ভ্রাতার চক্ষে যে কুটা আছে, তাহা বাহির করিবার নিমিত্ত স্পষ্ট দেখিতে পাইবে।

43. कोई अच्छा पेड़ नहीं, जो निकम्मा फल लाए, और न तो कोई निकम्मा पेड़ है, जो अच्छा फल लाए।

43. কারণ এমন ভাল গাছ নাই, যাহাতে মন্দ ফল ধরে, এবং এমন মন্দ গাছও নাই, যাহাতে ভাল ফল ধরে।

44. हर एक पेड़ अपने फल से पहचाना जाता है; क्योंकि लोग झाड़ियों से अंजीर नहीं तोड़ते, और न झड़बेरी से अंगूर।

44. স্ব স্ব ফল দ্বারাই প্রত্যেক গাছ চেনা যায়; লোকে ত কাঁটাবন হইতে ডুমুর সংগ্রহ করে না, এবং শ্যাকুলের ঝোপ হইতে দ্রাক্ষাফল সংগ্রহ করে না।

45. भला मनुष्य अपने मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है; और बुरा मनुष्य अपने मन के बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है; क्योंकि जो मन में भरा है वही उसके मुंह पर आता है।।

45. ভাল মানুষ আপন হৃদয়ের ভাল ভাণ্ডার হইতে ভালই বাহির করে; এবং মন্দ মানুষ মন্দ ভাণ্ডার হইতে মন্দই বাহির করে; যেহেতুক হৃদয়ের উপচয় হইতে তাহার মুখ কথা কহে।

46. जब तुम मेरा कहना नहीं मानते, तो क्यों मुझे हे प्रभु, हे प्रभु, कहते हो?
मलाकी 1:6

46. আর তোমরা কেন আমাকে হে প্রভু, হে প্রভু, বলিয়া ডাক, অথচ আমি যাহা যাহা বলি, তাহা কর না?

47. जो कोई मेरे पास आता है, और मेरी बातें सुनकर उन्हें मानता है, मैं तुम्हें बताता हूं कि वह किस के समान है?

47. যে কেহ আমার নিকটে আসিয়া আমার বাক্য শুনিয়া পালন করে, সে কাহার তুল্য তাহা আমি তোমাদিগকে জানাইতেছি।

48. वह उस मनुष्य के समान है, जिस ने घर बनाते समय भूमि गहरी खोदकर चट्टान की नेव डाली, और जब बाढ़ आई तो धारा उस घर पर लगी, परन्तु उसे हिला न सकी; क्योंकि वह पक्का बना था।

48. সে এমন এক ব্যক্তির তুল্য, যে গৃহ নির্ম্মাণ করিতে গিয়া খনন করিল, খুঁড়িয়া গভীর করিল, ও পাষাণের উপরে ভিত্তিমূল স্থাপন করিল; পরে বন্যা আসিলে সেই গৃহে জলস্রোত বেগে বহিল, কিন্তু তাহা হেলাইতে পারিল না, কারণ তাহা উত্তমরূপে নির্ম্মিত হইয়াছিল।

49. परन्तु जो सुनकर नहीं मानता, वह उस मनुष्य के समान है, जिस ने मिट्टी पर बिना नेव का घर बनाया। जब उस पर धारा लगी, तो वह तुरन्त गिर पड़ा, और वह गिरकर सत्यानाश हो गया।।

49. কিন্তু যে শুনিয়া পালন না করে, সে এমন এক ব্যক্তির তুল্য, যে মৃত্তিকার উপরে, বিনা ভিত্তিমূলে, গৃহ নির্ম্মাণ করিল; পরে জলস্রোত বেগে বহিয়া সেই গৃহে লাগিল, আর অমনি তাহা পড়িয়া গেল, এবং সেই গৃহের ভঙ্গ ঘোরতর হইল।



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