1 Kings - 1 राजाओं 7 | View All

1. और सुलैमान ने अपने महल को बनाया, और उसके पूरा करने में तेरह वर्ष लगे।

1. আর শলোমন তের বৎসর আপন বাটী নির্ম্মাণে ব্যাপৃত থাকিলেন; পরে আপনার সমুদয় বাটীর নির্ম্মাণ সমাপন করিলেন।

2. और उस ने लबानोनी वन नाम महल बनाया जिसकी लम्बाई सौ हाथ, चौड़ाई पचास हाथ और ऊंचाई तीस हाथ की थी; वह तो देवदारू के खम्भों की चार पांति पर बना और खम्भों पर देवदारू की कड़ियां धरी गई।

2. আর তিনি লিবানোন অরণ্যের বাটী নির্ম্মাণ করিলেন; তাহার দীর্ঘতা এক শত হস্ত, প্রস্থ পঞ্চাশ হস্ত ও উচ্চতা ত্রিশ হস্ত ছিল, তাহা চারি শ্রেণী এরসকাষ্ঠের স্তম্ভের উপরে স্থাপিত এবং স্তম্ভগুলির উপরে এরসকাষ্ঠের কড়ি বসান ছিল।

3. और खम्भों के ऊपर देवदारू की छतवाली पैंतालीस कोठरियां अर्थात् एक एक महल में पन्द्रह कोठरियां बनीं।

3. স্তম্ভগুলির উপরে প্রত্যেক শ্রেণীতে পনের, সর্ব্বশুদ্ধ পঁয়তাল্লিশটী কুঠরী স্থাপিত হইল, তাহার উপরে এরসকাষ্ঠের ছাদ হইল।

4. तीनों महलों में कड़ियां धरी गई, और तीनों में खिड़कियां आम्हने साम्हने बनीं।

4. আর বাতাযুক্ত [চৌকাঠের] তিন শ্রেণী ছিল, এবং পরস্পর অনুরূপ বাতায়নের তিন পংক্তি ছিল।

5. और सब द्वार और बाजुओं की कड़ियां भी चौकोर थी, और तीनों महलों में खिड़कियां आम्हने साम्हने बनीं।

5. আর সমস্ত দ্বার ও চৌকাঠ চতুষ্কোণ ও বাতাযুক্ত, এবং পরস্পর অনুরূপ বাতায়নের তিন পংক্তি ছিল।

6. और उस ने एक खम्भेवाला ओसारा भी बनाया जिसकी लम्बाई पचास हाथ और चौड़ाई तीस हाथ की थी, और इन खम्भों के साम्हने एक खम्भेवाला ओसारा और उसके साम्हने डेवढ़ी बनाई।

6. আর তিনি স্তম্ভশ্রেণীর এক বারাণ্ডা প্রস্তুত করিলেন, তাহার দীর্ঘতা পঞ্চাশ হস্ত ও প্রস্থ ত্রিশ হস্ত, এবং তাহাদের সম্মুখে আর এক বারাণ্ডা করিলেন, তাহাতেও স্তম্ভশ্রেণী ও তাহার সম্মুখে গোবরাট ছিল।

7. फिर उस ने न्याय के सिंहासन के लिये भी एक ओसारा बनाया, जो न्याय का ओसारा कहलाया; और उस में ऐक फ़र्श से दूसरे फ़र्श तक देवदारू की तख्ताबन्दी थी।

7. আর সিংহাসনের যে বারাণ্ডাতে তিনি বিচার করিবেন, সেই বিচারের বারাণ্ডা প্রস্তুত করিলেন, ও মেজিয়ার এক দিক্‌ অবধি অন্য দিক্‌ পর্য্যন্ত এরসকাষ্ঠ দ্বারা আচ্ছাদন করিলেন।

8. और उसी के रहने का भवन जो उस ओसारे के भीतर के एक और आंगन में बना, वह भी उसी ढब से बना। फिर उसी ओसारे के ढब से सुलैमान ने फ़िरौन की बेटी के लिये जिसको उस ने ब्याह लिया था, एक और भवन बनाया।

8. আর তাঁহার বাসগৃহ, বারাণ্ডার ভিতরে অন্য প্রাঙ্গণ, সেইরূপ ছিল। আর শলোমন যাঁহাকে বিবাহ করিয়াছিলেন, সেই ফরৌণের কন্যার নিমিত্ত ঐ বারাণ্ডার ন্যায় এক গৃহ নির্ম্মাণ করিলেন।

9. ये सब घर बाहर भीतर तेव से मुंढेर तक ऐसे अनमोल और गढ़े हुए पत्थरों के बने जो नापकर, और आरों से चीरकर तैयार किये गए थे और बाहर के आंगन से ले बड़े आंगन तक लगाए गए।

9. এই সকল ভিত্তিমূল অবধি আলিসা পর্য্যন্ত ভিতরে ও বাহিরে তক্ষিত প্রস্তরের পরিমাণ অনুসারে করাত দিয়া কাটা বহুমূল্য প্রস্তরে নির্ম্মিত হইয়াছিল, এবং বাহিরে বড় প্রাঙ্গণ পর্য্যন্ত তদ্রূপ হইল।

10. उसकी नेव तो बड़े मोल के बड़े बड़े अर्थात् दस दस और आठ आठ हाथ के पत्थरों की डाली गई थी।

10. আর বহুমূল্য প্রস্তরে ভিত্তিমূল নির্ম্মিত হইয়াছিল, সে সকল প্রস্তর বৃহৎ, দশ হাত প্রস্তর ও আট হাত প্রস্তর।

11. और ऊपर भी बड़े मोल के पत्थर थे, जो नाप से गढ़े हुए थे, और देवदारू की लकड़ी भी थी।

11. তাহার উপরে বহুমূল্য প্রস্তর, পরিমাণ অনুসারে তক্ষিত প্রস্তর ও এরসকাষ্ঠ ছিল।

12. और बड़े आंगन के चारों ओर के घेरे में गढ़े हुए पत्थ्रों के तीन र :, और देवदारू की कड़ियों का एक परत था, जैसे कि यहोवा के भवन के भीतरवाले आंगन और भवन के ओसारे में लगे थे।

12. আর যেমন সদাপ্রভুর গৃহের মধ্য প্রাঙ্গণে ও গৃহের বারাণ্ডাতে, তদ্রূপ বড় প্রাঙ্গণের চারিদিকে তিন শ্রেণী তক্ষিত প্রস্তর ও এক শ্রেণী এরসকাষ্ঠ ছিল।

13. फिर राजा सुलैमान ने सोर से हीराम को बुलवा भेजा।

13. আর শলোমন রাজা লোক প্রেরণ করিয়া সোর হইতে হীরমকে আনাইলেন।

14. वह नप्ताली के गोत्रा की किसी विधवा का बेटा था, और उसका पिता एक सोरवासी ठठेरा था, और वह पीतल की सब प्रकार की कािगीरी में पूरी बुध्दि, निमुणता और समझ रखता था। सो वह राजा सुलैमान के पास आकर उसका सब काम करने लगा।

14. সে নপ্তালি বংশীয় এক বিধবার পুত্র, এবং তাহার পিতা সোর নগরস্থ এক জন কাংস্যকার, পিত্তলের সমস্ত কর্ম্ম করিতে সে জ্ঞান, বুদ্ধি ও বিদ্যায় পরিপূর্ণ ছিল; সে শলোমন রাজার কাছে আসিয়া তাঁহার সমস্ত কার্য্য করিল।

15. उस ने पीतल ढालकर अठारह अठाही हाथ ऊंचे दो खम्भे बनाए, और एक एक का घेरा बारह हाथ के सूत का था।

15. সে পিত্তলের দুই স্তম্ভ নির্ম্মাণ করিল; তাহার এক এক স্তম্ভ আঠার হস্ত উচ্চ, এবং বারো হস্ত পরিমিত সূত্র দুই স্তম্ভ বেষ্টন করিল।

16. और उस ने खम्भों के सिरों पर लगाने को पीतल ढालकर दो कंगनी बनाई; एक एक कंगनी की ऊंचाई, पांच पांच हाथ की थी।

16. আর দুই স্তম্ভের মস্তকে স্থাপনার্থে সে ছাঁচে ঢালা পিত্তলময় দুই মাথলা নির্ম্মাণ করিল, এক মাথলার উচ্চতা পাঁচ হস্ত, দ্বিতীয় মাথলার উচ্চতাও পাঁচ হস্ত।

17. और खम्भों के सिरों पर की कंगनियों के लिये चारखाने की सात सात जालियां, और सांकलों की सात सात झालरें बनीं।

17. স্তম্ভের উপরিস্থ সেই মাথলার জন্য জালকার্য্যের জাল ও শৃঙ্খলের কার্য্যের পাকান রজ্জু ছিল; এক মাথলার জন্য সাতটা, অন্য মাথলার জন্যও সাতটা।

18. और उस ने खम्भों को भी इस प्रकार बनाया; कि खम्भों के सिरों पर की एक एक कंगनी के ढांपने को चारों अोर जालियों की एक एक पांति पर अनारों की दो पांतियां हों।

18. এইরূপে সে স্তম্ভ দুইটী নির্ম্মাণ করিল; আর স্তম্ভের উপরিস্থ মাথলা আচ্ছাদন জন্য জালকার্য্যের উপরে বেষ্টন করিতে দুই শ্রেণী নির্ম্মাণ করিল; এবং অন্য মাথলার জন্যও তদ্রূপ করিল।

19. और जो कंगनियां ओसारों में खम्भो के सिरों पर बनीं, उन में चार चार हाथ ऊंचे सोसन के फूल बने हुए थे।

19. আর বারাণ্ডাতে দুই স্তম্ভের উপরিস্থ মাথলা চারি হস্ত পর্য্যন্ত শোশন পুষ্পের আকৃতি-বিশিষ্ট ছিল।

20. और एक एक खम्भे के सिरे पर, उस गोलाई के पास जो जाली से लगी थी, एक और कंगनी बनी, और एक एक कंगनी पर जो अनार चारों ओर पांति पांति करके बने थे वह दो सौ थे।

20. আর দুই স্তম্ভের উপরে, জালকার্য্যের নিকটস্থ মোটাভাগের কাছে মাথলা ছিল; এবং অন্য মাথলার উপরে চারিদিকে শ্রেণীবদ্ধ দুই শত দাড়িম্ব ছিল।

21. उन खम्भों को उस ने मन्दिर के ओसारे के पास खड़ा किया, और दाहिनी ओर के खम्भे को खड़ा करके उसका नाम याकीन रखा; फिर बाई ओर के खम्भे को क्षड़ा करके उसका नाम बोआज़ रखा।

21. পরে সে ঐ দুই স্তম্ভ মন্দিরের বারাণ্ডাতে স্থাপন করিল, এবং দক্ষিণ হস্ত স্থাপন করিয়া তাহার নাম যাখীন [তিনি সুস্থির করিবেন] রাখিল, এবং বাম স্তম্ভ স্থাপন করিয়া তাহার নাম বোয়স [ইহাতেই বল] রাখিল।

22. और खम्भों के सिरों पर सोसन के फूल का काम बना था खम्भों का काम इसी रीति हुआ।

22. ঐ দুই স্তম্ভের উপরে শোশন পুষ্পের আকৃতি ছিল; এইরূপে দুই স্তম্ভের কার্য্য সমাপ্ত হইল।

23. फिर उस ने एक ढाला हुआ एक बड़ा हौज़ बनाया, जो एक छोर से दूसरी छोर तक दस हाथ चौड़ा था, उसका आकार गोल था, और उसकी ऊंचाई पांच हाथ की थी, और उसके चारों ओर का घेरा तीस हाथ के सूत के बराबर था।

23. পরে সে ছাঁচে ঢালা এক গোলাকার সমুদ্র-পাত্র নির্ম্মাণ করিল, তাহা এক কাণা অবধি অন্য কাণা পর্য্যন্ত দশ হস্ত, ও তাহার উচ্চতা পাঁচ হস্ত, এবং তাহার পরিধি ত্রিশ হস্ত ছিল।

24. और उसके चारों ओर मोहड़े के नीचे एक एक हाथ में दस दस इन्द्रायन बने, जो हौज को घेरे थीं; जब वह ढाला गया; तब ये इन्द्रायन भी दो पांति करके ढाले गए।

24. আর চারিদিকে কাণার নীচে সমুদ্র-পাত্র বেষ্টনকারী বার্ত্তাকীর শ্রেণী ছিল, প্রত্যেক হস্ত পরিমাণের মধ্যে দশ দশ বার্ত্তাকী ছিল; বার্ত্তাকীর দুই শ্রেণী ছিল, ঐ পাত্র ঢালিবার সময়ে সেই সকল ছাঁচে ঢালা গিয়াছিল।

25. और वह बारह बने हुए बैलों पर रखा गया जिन में से तीन उत्तर, तीन पश्चिम, तीन दक्खिन, और तीन पूर्व की ओर मुंह किए हुए थे; और उन ही के ऊपर हौज था, और उन सभों का पिछला अंग भीतर की ओर था।

25. ঐ পাত্র বারোটী গোরুর উপরে স্থাপিত ছিল; তাহাদের তিনটী উত্তরমুখ, তিনটী পশ্চিমমুখ, তিনটী দক্ষিণমুখ, ও তিনটী পূর্ব্বমুখ ছিল; এবং সমুদ্র-পাত্র তাহাদের উপরে রহিল; তাহাদের সকলের পশ্চাদ্‌ভাগ ভিতরে থাকিল।

26. और उसका दल चौबा भर का था, और उसका मोहड़ा कटोरे के मोहड़े की नाई सोसन के फूलो के काम से बना था, और उस में दो हज़ार बत की समाई थी।

26. ঐ পাত্র চারি অঙ্গুলি পুরু, ও তাহার কাণা পানপাত্রের কাণার সদৃশ, শোশন পুষ্পাকার ছিল; তাহাতে দুই সহস্র বাৎ ধরিত।

27. फिर उस ने पीतल के दस पाये बनाए, एक एक पाये की लम्बाई चार हाथ, चौड़ाई भी चार हाथ और ऊंचाई तीन हाथ की थी।

27. পরে সে পিত্তলময় দশ পীঠ নির্ম্মাণ করিল। এক এক পীঠ চারি হস্ত দীর্ঘ, চারি হস্ত প্রস্থ ও তিন হস্ত উচ্চ ছিল।

28. उन पायों की बनावट इस प्रकार थी; अनके पटरियां थीं, और पटरियों के बीचों बीच जोड़ भी थे।

28. সেই সকল পীঠের গঠন এইরূপ; তাহাদের পাটা ছিল, সেই সকল পাটা বিটের মধ্যে ছিল।

29. और जोड़ों के बीचों बीच की पटरियों पर सिंह, बैल, और करूब बने थे और जोड़ों के ऊपर भी एक एक और पाया बना और सिंहों और बैलों के नीचे लटकते हुए हार बने थे।

29. আর বিটের পাটায় সিংহ, গোরু ও করূব ছিল, এবং উপরিভাগে বিট সকলের উপরে বৈঠক ছিল, এবং সিংহ ও গোরু সকলের নীচে ঝুলান মালার মত কাজ ছিল।

30. और एक एक पाये के लिये पीतल के चार पहिये और पीतल की धुरियां बनी; और एक एक के चारों कोनों से लगे हुए कंधे भी ढालकर बनाए गए जो हौदी के नीचे तक पहुंचते थे, और एक एक कंधे के पास हार बने हुए थे।

30. প্রত্যেক পীঠের পিত্তলময় চারি চক্র ও পিত্তলময় আল ছিল, এবং চারি পায়াতে স্থাপিত অবলম্বন ছিল, সেই সকল অবলম্বন প্রক্ষালন-পাত্রের নীচে ঢালা ছিল, এ প্রত্যেকের পার্শ্বে মালা ছিল।

31. औा हौदी का मोहड़ा जो पाये की कंगनी के भीतर और ऊपर भी था वह एक हाथ ऊंचा था, और पाये का मोहड़ा जिसकी चौड़ाई डेढ़ हाथ की थी, वह पाये की बनावट के समान गोल बना; और पाये के उसी मोहड़े पर भी कुछ खुदा हुआ काम था और उनकी पटरियां गोल नहीं, चौकोर थीं।

31. আর মাথলার মধ্যে ও তাহার উপরে তাহার মুখ এক হস্ত, কিন্তু তাহার মুখ বৈঠকের আকৃতির ন্যায় গোল ও দেড় হস্ত পরিমিত; এবং তাহার মুখের উপরেও শিল্পকার্য্য ছিল; এবং তাহার পাটা সকল গোল নয়, চতুষ্কোণ ছিল।

32. और चारों पहिये, पटरियो के नीचे थे, और एक एक पाये के पहियों में धुरियां भी थीं; और एक एक पहिये की ऊंचाई डेढ़ हाथ की थी।

32. আর পাটার নীচে চারি চক্র; ঐ চক্রের আল পীঠের সহিত সংযুক্ত ছিল; তাহার প্রত্যেক চক্র দেড় হস্ত উচ্চ।

33. पहियों की बनावट, रथ के पहिये की सी थी, और उनकी धुरियां, पुटि्ठयां, आरे, और नाभें सब ढाली हुर्अ थीं।

33. আর চক্র সকলের গঠন রথচক্রের গঠনের ন্যায়, এবং আল, নেমি, আড়া ও নাভি সকল ছাঁচে ঢালা ছিল।

34. और एक एक पाये के चारों कोनों पर चार कंधे थे, और कंधे और पाये दोनों एक ही टुकड़े के बने थे।

34. আর প্রত্যেক পীঠের চারি কোণে স্থাপিত চারি অবলম্বন ছিল; সেই অবলম্বন স্বয়ং পীঠের সহিত নির্ম্মিত ছিল।

35. और एक एक पाये के सिरे पर आध हाथ ऊंची चारों ओर गोलाई थी, और पाये के सिरे पर की टेकें और पटरियां पाये से जुड़े हुए एक ही टुकड़े के बने थे।

35. ঐ পীঠের উপরিস্থ অর্দ্ধ হস্ত উচ্চ বর্ত্তুলাকার হাতল এবং পীঠের উপরিস্থ অবলম্বন ও পাটা তাহার সহিত নির্ম্মিত ছিল।

36. और टेकों के पाटों और पटरियों पर जितनी जगह जिस पर थी, उस में उस ने करूब, और सिंह, और खजूर के वृक्ष खोद कर भर दिये, और चारों ओर हार भी बनाए।

36. আর সে তাহার অবলম্বনের প্রদেশে ও তাহার ধারে প্রত্যেকের স্থান-পরিমাণ অনুসারে করূব, সিংহ ও খর্জ্জুর বৃক্ষ ক্ষুদিল ও চারিদিকে মালা দিল।

37. इसी प्रकार से उस ने दसों पायों को बनाया; सभों का एक ही सांचा और एक ही नाप, और एक ही आकार था।

37. এইরূপে সে সেই দশটী পীঠ নির্ম্মাণ করিল; সকলগুলিই এক ছাঁচে, এক পরিমাণে ও এক আকারে নির্ম্মিত।

38. और उस ने पीतल की दस हौदी बनाई। एक एक हौदी में चालीस चालीस बत की समाई थी; और एक एक, चार चार हाथ चौड़ी थी, और दसों पायों में से एक एक पर, एक एक हौदी थी।

38. পরে সে পিত্তলময় দশটী প্রক্ষালন-পাত্র নির্ম্মাণ করিল, তাহার প্রত্যেক পাত্রে চল্লিশ বাৎ ধরিত, এবং প্রত্যেক পাত্র চারি হস্ত পরিমিত ছিল; আর ঐ দশটী পীঠের মধ্যে এক এক পীঠের উপরে এক এক প্রক্ষালন-পাত্র থাকিত।

39. और उस ने पांच हौदी षवन की दक्खिन की ओर, और पांच उसकी उत्तर की ओर रख दीं; और हौज़ को भवन की दाहिनी ओर अर्थात् पूर्व की ओर, और दक्खिन के साम्हने धर दिया।

39. আর সে গৃহের দক্ষিণ পার্শ্বে পাঁচ পীঠ ও বাম পার্শ্বে পাঁচ পীঠ রাখিল; আর গৃহের দক্ষিণ পার্শ্বে পূর্ব্বদিকে দক্ষিণদিকের সম্মুখে সমুদ্র-পাত্র স্থাপন করিল।

40. और हीराम ने हौदियों, फावड़ियों, और कटोरों को भी बनाया। सो हीराम ने राजा सुलैमान के लिये यहोवा के भवन में जितना काम करना था, वह सब निपटा दिया,

40. হীরম ঐ সকল প্রক্ষালন-পাত্র, হাতা ও বাটি নির্ম্মাণ করিল। এইরূপে হীরম শলোমন রাজার জন্য সদাপ্রভুর গৃহের যে সকল কর্ম্মে প্রবৃত্ত হইয়াছিল, সে সমস্ত সমাপ্ত করিল;

41. अर्थात् दो खम्भे, और उन कंगनियों की गोलाइयां जो दोनों खम्भों के सिरे पर थीं, और दोनों खम्भों के सिरों पर की गोलाइयों के ढांपने को दो दो जालियां, और दोनों जालियों के लिय चार चार सौ अनार,

41. অর্থাৎ দুই স্তম্ভ, ও সেই স্তম্ভের উপরিস্থ মাথলার দুই গোলাকার, ও সেই স্তম্ভের উপরিস্থ মাথলার দুই গোলাকার আচ্ছাদনার্থক দুই জালকার্য্য;

42. अर्थात् खम्भों के सिरों पर जो गोलाइयां थीं, उनके ढांपने के लिये अर्थात् एक एक जाली के लिये अनारों की दो दो पांति;

42. আর দুই জালকার্য্যের জন্য চারি শত দাড়িম্বাকার, অর্থাৎ স্তম্ভের উপরিস্থ মাথলার দুই গোলাকার আচ্ছাদনার্থক এক এক জালকার্য্যের জন্য দুই শ্রেণী দাড়িম্বাকার;

43. दस पाये और इन पर की दस हौदी,

43. আর দশটী পীঠ ও পীঠের উপরে দশটী প্রক্ষালন-পাত্র;

44. एक हौज़ और उसके नीचे के बारह बैल, और हंडे, फावड़ियां,

44. এবং একটী সমুদ্র-পাত্র ও সমুদ্র-পাত্রের নীচে দ্বাদশ গোরু;

45. और कटोरे बने। ये सब पात्रा जिन्हें हीराम ने यहोवा के भवन के निमित्त राजा सुलैमान के लिये बनाया, वह झलकाये हुए पीतल के बने।

45. এবং স্থালী, হাতা ও বাটি; এই যে সকল পাত্র হীরম শলোমন রাজার নিমিত্ত সদাপ্রভুর গৃহের জন্য প্রস্তুত করিল, সকলই তেজোময় পিত্তল দ্বারা নির্ম্মাণ করিল।

46. राजा ने उनको यरदन की तराई में अर्थात् सुक्कोत और सारतान के मध्य की चिकनी मिट्टवाली भूमि में ढाला।

46. রাজা যর্দ্দনের অঞ্চলে সুক্কোৎ ও সর্ত্তনের মধ্যস্থিত কর্দ্দম ভূমিতে তাহা ঢালাইলেন।

47. और सुलैमान ने सब पात्रों को बहुत अधिक होने के कारण बिना तौले छोड़ दिया, पीतल के तौल का वज़न मालूम न हो सका।

47. আর শলোমন অতি বাহুল্যপ্রযুক্ত ঐ সকল পাত্র তৌল করিলেন না; পিত্তলের পরিমাণ নির্ণয় করা গেল না।

48. यहोवा के भवन के जितने पात्रा थे सुलैमान ने सब बनाए, अर्थात् सोने की वेदी, और सोने की वह मेज़ जिस पर भेंट की रोटी रखी जाती थी,

48. শলোমন সদাপ্রভুর গৃহস্থিত সমস্ত পাত্র নির্ম্মাণ করাইলেন; স্বর্ণবেদি ও দর্শনরুটী রাখিবার স্বর্ণমেজ;

49. और चोखे सोने की दीवटें जो भीतरी कोठरी के आगे पांच तो दक्खिन की ओर, और पांच उत्तर की ओर रखी गई; और सोने के फूल,

49. এবং অন্তর্গৃহের সম্মুখে দক্ষিণে পাঁচটী ও বামে পাঁচটী নির্ম্মল স্বর্ণময় দীপবৃক্ষ, এবং স্বর্ণময় পুষ্প, প্রদীপ ও চিমটা;

50. दीपक और चिमटे, और चोखे सोने के तसले, कैंचियां, कटोरे, धूपदान, और करछे और भीतरवाला भवन जो परमपवित्रा स्थान कहलाता है, और भवन जो मन्दिर कहलाता है, दोनों के किवाड़ों के लिये सोने के कब्जे बने।

50. আর নির্ম্মল স্বর্ণময় ডাবর, কর্ত্তরী, বাটি, চমস ও অঙ্গার-পাত্র; এবং ভিতরের গৃহের অর্থাৎ মহাপবিত্র স্থানের কবাটের জন্য এবং গৃহের অর্থাৎ মন্দিরের কবাটের জন্য স্বর্ণময় কব্‌জা করাইলেন।

51. निदान जो जो काम राजा सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिये किया, वह सब पूरा किया गया। तब सुलैमान ने अपने पिता दाऊद के पवित्रा किए हुए सोने चांदी और पात्रों को भीतर पहुंचा कर यहोवा के भवन के भणडारों में रख दिया।

51. এইরূপে সদাপ্রভুর গৃহের জন্য শলোমন রাজার কৃত সমস্ত কার্য্য সম্পন্ন হইল। আর শলোমন আপন পিতা দায়ূদের পবিত্রীকৃত দ্রব্য সকল, অর্থাৎ রৌপ্য, স্বর্ণ ও পাত্র সকল আনাইয়া সদাপ্রভুর গৃহস্থিত ধনাগার সমূহে রাখিলেন।



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