13. तेरी आंखें ऐसी शुद्ध हैं कि तू बुराई को देख ही नहीं सकता, और उत्पात को देखकर चुप नहीं रह सकता; फिर तू विश्वासघातियों को क्यों देखता रहता, और जब दुष्ट निर्दोष को निगल जाता है, तब तू क्यों चुप रहता है?
13. Thou art of pure eyes, and canst not see euyl, thou canst not behold wickednesse: wherfore [then] doest thou loke vpo the transgressours, and holdest thy tongue, when the wicked deuoureth the man that is more righteous then he?