2 Chronicles - 2 इतिहास 6 | View All

1. तब सुलैमान कहने लगा, यहोवा ने कहा था, कि मैं घोर अंधकार मैं वास किए रहूंगा।

1. তখন শলোমন কহিলেন, সদাপ্রভু বলিয়াছেন যে, তিনি ঘোর অন্ধকারে বাস করিবেন।

2. परन्तु मैं ने तेरे लिये एक वासस्थान वरन ऐसा दृढ़ स्थान बनाया है, जिस में तू युग युग रहे।
प्रेरितों के काम 7:47

2. কিন্তু আমি তোমার এক বসতিগৃহ নির্ম্মাণ করাইলাম; ইহা চিরকাল তোমার নিবাস-স্থান।

3. और राजा ने इस्राएल की पूरी सभा की ओर मुंह फेरकर उसको आशीर्वाद दिया, और इस्राएल की पूरी सभा खड़ी रही।

3. পরে রাজা মুখ ফিরাইয়া সমস্ত ইস্রায়েল-সমাজকে আশীর্ব্বাদ করিলেন; আর সমস্ত ইস্রায়েল-সমাজ দণ্ডায়মান হইল।

4. और उस ने कहा, धन्य है इस्राएल का परमेश्वर यहोवा, जिस ने अपने मुंह से मेरे पिता दाऊद को यह वचन दिया था, और अपने हाथों से इसे पूरा किया है,

4. আর তিনি কহিলেন, ধন্য সদাপ্রভু, ইস্রায়েলের ঈশ্বর; তিনি আমার পিতা দায়ূদের কাছে আপন মুখে এই কথা বলিয়াছিলেন, এবং আপন হস্ত দ্বারা ইহা সফল করিয়াছেন,

5. कि जिस दिन से मैं अपनी प्रजा को मिस्र देश से निकाल लाया, तब से मैं ने न तो इस्राएल के किसी गोत्रा का कोई नगर चुना जिस में मेरे नाम के निवास के लिये भवन बनाया जाए, और न कोई मनुष्य चुना कि वह मेरी प्रजा इस्राएल पर प्रधान हो।

5. যথা, যে দিন আমার প্রজাদিগকে মিসর দেশ হইতে বাহির করিয়া আনিয়াছি, সেই দিন হইতে আমি আপন নাম স্থাপন জন্য গৃহ নির্ম্মাণার্থে ইস্রায়েলের সমস্ত বংশের মধ্যে কোন নগর মনোনীত করি নাই; এবং আপন প্রজা ইস্রায়েলের অধ্যক্ষ হইবার জন্য কোন মনুষ্যকে মনোনীত করি নাই।

6. परन्तु मैं ने यरूशलेम को इसलिये चुना है, कि मेरा नाम वहां हो, और दाऊद को चुन लिया है कि वह मेरी प्रजा इस्राएल पर प्रधान हो।

6. কিন্তু আপন নাম স্থাপন জন্য আমি যিরূশালেম মনোনীত করিয়াছি ও আমার প্রজা ইস্রায়েলের অধ্যক্ষ হইবার জন্য দায়ূদকে মনোনীত করিয়াছি।

7. मेरे पिता दाऊद की यह मनसा थी कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनवाए।
प्रेरितों के काम 7:45-46

7. আর ইস্রায়েলের ঈশ্বর সদাপ্রভুর নামের উদ্দেশে এক গৃহ নির্ম্মাণ করিতে আমার পিতা দায়ূদের মনোরথ ছিল।

8. परन्तु यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कहा, तेरी जो मनसा है कि यहोवा के नाम का एक भवन बनाए, ऐसी मनसा करके नू ने भला तो किया;
प्रेरितों के काम 7:45-46

8. কিন্তু সদাপ্রভু আমার পিতা দায়ূদকে কহিলেন, আমার নামের উদ্দেশে এক গৃহ নির্ম্মাণ করিতে তোমার মনোরথ হইয়াছে; তোমার এইরূপ মনোরথ করা ভালই বটে।

9. तौभी तू उस भवन को बनाने न पाएगा : तेरा जो निज पुत्रा होगा, वही मेरे नाम का भवन बनाएगा।

9. তথাপি তুমি সেই গৃহ নির্ম্মাণ করিবে না, কিন্তু তোমার কটি হইতে উৎপন্ন পুত্রই আমার নামের উদ্দেশে গৃহ নির্ম্মাণ করিবে।

10. সদাপ্রভু এই যে কথা বলিয়াছিলেন, তাহা সফল করিলেন; সদাপ্রভুর প্রতিজ্ঞানুসারে আমি আপন পিতা দায়ূদের পদে উৎপন্ন ও ইস্রায়েলের সিংহাসনে উপবিষ্ট হইয়া ইস্রায়েলের ঈশ্বর সদাপ্রভুর নামের উদ্দেশে এই গৃহ নির্ম্মাণ করিয়াছি।

11. यह वचन जो यहोवा ने कहा था, उसे उस ने पूरा भी किया है; ओर मैं अपने पिता दाऊद के स्थान पर उठकर यहोवा के वचन के अनुसार इस्राएल की गद्दी पर विराजमान हूँ, और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम के इस भवन को बनाया है।

11. আর সদাপ্রভু ইস্রায়েল-সন্তানদের সহিত যে নিয়ম করিয়াছিলেন, তাহার আধার সিন্দুক ইহার মধ্যে রাখিলাম।

12. और इस में मैं ने उस सन्दूक को रख दिया है, जिस में यहोवा की वह वाचा है, जो उस ने इस्राएलियों से बान्धी थी।

12. পরে তিনি সমস্ত ইস্রায়েল-সমাজের সাক্ষাতে সদাপ্রভুর যজ্ঞবেদির সম্মুখে দাঁড়াইয়া অঞ্জলি বিস্তার করিলেন;—

13. तब वह इस्राएल की सारी सभा के देखते यहोवा की वेदी के साम्हने खड़ा हुआ और अपने हाथ फैलाए।

13. কেননা শলোমন পাঁচ হস্ত দীর্ঘ, পাঁচ হস্ত প্রস্থ ও তিন হস্ত উচ্চ পিত্তলময় এক মঞ্চ নির্ম্মাণ করিয়া প্রাঙ্গণের মধ্যস্থলে রাখিয়াছিলেন; তিনি তাহার উপরে দাঁড়াইলেন, পরে সমস্ত ইস্রায়েল-সমাজের সম্মুখে হাঁটু পাতিয়া স্বর্গের দিকে অঞ্জলি বিস্তার করিলেন;

14. सुलैमान ने पांच हाथ लम्बी, पांच हाथ चौड़ी और तीन हाथ ऊंची पीतल की एक चौकी बनाकर आंगन के बीच रखवाई थी; उसी पर खड़े होकर उस ने सारे इस्राएल की सभा के सामने घुटने टेककर स्वर्ग की ओर हाथ फैलाए हुए कहा,

14. —আর তিনি কহিলেন, হে সদাপ্রভু, ইস্রায়েলের ঈশ্বর, স্বর্গে কি পৃথিবীতে তোমার তুল্য ঈশ্বর নাই। সর্ব্বান্তঃকরণে যাহারা তোমার সাক্ষাতে চলে, তোমার সেই দাসগণের পক্ষে তুমি নিয়ম ও দয়া পালন করিয়া থাক;

15. हे यहोवा, हे इस्राएल के परमेश्वर, तेरे समान न तो स्वर्ग में और न पृथ्वी पर कोई ईश्वर है : तेरे जो दास अपने सारे मन से अपने को तेरे सम्मुख जानकर जलते हैं, उनके लिये तू अपनी वाचा पूरी करता और करूणा करता रहता है।

15. তুমি তোমার দাস আমার পিতা দায়ূদের কাছে যাহা প্রতিজ্ঞা করিয়াছিলে, তাহা পালন করিয়াছ, যাহা আপন মুখে বলিয়াছিলে, তাহা আপন হস্ত দ্বারা সিদ্ধ করিয়াছ, যেমন অদ্য দেখা যাইতেছে।

16. तू ने जो वचन मेरे पिता दाऊद को दिया था, उसका तू ने पालन किया है; जैसा तू ने अपने मुंह से कहा था, वैसा ही अपने हाथ से उसको हमारी आंखों के साम्हने पूरा भी किया है।

16. এখন, হে সদাপ্রভু, ইস্রায়েলের ঈশ্বর, তুমি আপন দাস আমার পিতা দায়ূদের নিকটে যাহা প্রতিজ্ঞা করিয়াছিলে, তাহা রক্ষা কর। তুমি বলিয়াছিলে, আমার দৃষ্টিতে ইস্রায়েলের সিংহাসনে বসিতে তোমার [বংশে] লোকের অভাব হইবে না, কেবলমাত্র যদি আমার সাক্ষাতে তুমি যেমন চলিয়াছ, তোমার সন্তানগণ আমার সাক্ষাতে তদ্রূপ চলিবার জন্য আপন আপন পথে সাবধান থাকে।

17. इसलिये अब हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा इस वचन को भी मूरा कर, जो तू ने अपने दास मेरे पिता दाऊद को दिया था, कि तेरे कुल में मेरे साम्हने इस्राएल की गद्दी पर विराजनेवाले सदा बने रहेंगे, यह हो कि जैसे तू अपने को मेरे सम्मुख जानकर चलता रहा, वैसे ही तेरे वंश के लोग अपनी चाल चलन में ऐसी चौकसी करें, कि मेरी रयवस्था पर चलें।

17. এখন, হে সদাপ্রভু, ইস্রায়েলের ঈশ্বর, তোমার দাস দায়ূদের কাছে যে কথা তুমি বলিয়াছিলে, তাহা দৃঢ় হউক।

18. अब हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा जो वचन तू ने अपने दास दाऊद को दिया थ, वह सव्चा किया जाए।
प्रेरितों के काम 17:24, प्रकाशितवाक्य 21:3

18. কিন্তু ঈশ্বর কি সত্য সত্যই পৃথিবীতে মনুষ্যের সহিত বাস করিবেন? দেখ, স্বর্গ ও স্বর্গের স্বর্গ তোমাকে ধারণ করিতে পারে না, তবে আমার নির্ম্মিত এই গৃহ কি পারিবে?

19. परन्तु क्या परमेश्वर सचमुच मनुष्यों के संग पुथ्वी पर वास करेगा? स्वर्ग में वरन सब से ऊंचे स्वर्ग में भी तू नहीं समाता, फिर मेरे बनाए हुए इस भवन में तू क्योंकर समाएगा?

19. তথাপি হে সদাপ্রভু, আমার ঈশ্বর, তুমি আপন দাসের প্রার্থনাতে ও বিনতিতে মনোযোগ কর, তোমার দাস তোমার নিকটে যে কাকূক্তি ও প্রার্থনা করিতেছে, তাহা শুন।

20. तौभी हे मेरे परमेश्वर यहोवा, अपने दास की प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट की ओर ध्यान दे और मेरी पुकार और यह प्रार्थना सुन, जो मैं तेरे साम्हने कर रहा हूँ।

20. যে স্থানের বিষয়ে তুমি বলিয়াছ যে, তোমার নাম সেই স্থানে রাখিবে, সেই স্থানের অর্থাৎ এই গৃহের প্রতি তোমার চক্ষু দিবারাত্র উন্মীলিত থাকুক, এবং এই স্থানের অভিমুখে তোমার দাস যে প্রার্থনা করে, তাহা শুনিও।

21. वह यह है कि तेरी आंखें इस भवन की ओर, अर्थत् इसी स्थान की ओर जिसके विषय में तू ने कहा है कि मैं उस में अपना नाम रखूंगा, रात दिन खुली रहें, और जो प्रार्थना तेरा दास इस स्थान की ओर करे, उसे तू सुन ले।

21. আর তোমার দাস ও তোমার লোক ইস্রায়েল যখন এই স্থানের অভিমুখে প্রার্থনা করিবে, তখন তাহাদের সকল বিনতিতে কর্ণপাত করিও; তোমার নিবাস-স্থান হইতে, স্বর্গ হইতে, তাহা শুনিও, এবং শুনিয়া ক্ষমা করিও।

22. और अपने दास, और अपनी प्रजा इस्राएल की प्रार्थना जिसको वे इस स्थान की ओर मुंह किए हुए गिड़गिड़ाकर करें, उसे सुन लेना; स्वर्ग में से जो तेरा निवासस्थान है, सुन लेना; और सुनकर क्षमा करना।

22. কেহ আপন প্রতিবাসীর বিরুদ্ধে পাপ করিলে যদি তাহাকে দিব্য করাইবার জন্য কোন দিব্য নিশ্চিত হয়, আর সে আসিয়া এই গৃহে তোমার যজ্ঞবেদির সম্মুখে সেই দিব্য করে,

23. जब कोई किसी दूसरे का अपराध करे और उसको शपथ खिलाई जाए, और वह आकर इस भवन में तेरी वेदी के साम्हने शपथ खाए,

23. তবে তুমি স্বর্গ হইতে তাহা শুনিও, এবং নিষ্পত্তি করিয়া আপন দাসদের বিচার করিও; দোষীকে দোষী করিয়া তাহার কর্ম্মের ফল তাহার মস্তকে বর্ত্তাইও, এবং ধার্ম্মিককে ধার্ম্মিক করিয়া তাহার ধার্ম্মিকতানুযায়ী ফল দিও।

24. तब तू स्वर्ग में से सुनना और मानना, और अपने दासों का न्याय करके दुष्ट को बदला देना, और उसकी चाल उसी के सिर लैटा देना, और निदष को निदष ठहराकर, उसके धर्म के अनुसार उसको फल देना।

24. তোমার প্রজা ইস্রায়েল তোমার বিরুদ্ধে পাপ করণ প্রযুক্ত শত্রুর সম্মুখে আহত হইলে পর যদি পুনর্ব্বার ফিরে, এবং এই গৃহে তোমার নামের স্তব করিয়া তোমার নিকটে প্রার্থনা ও বিনতি করে;

25. फिर यदि तेरी प्रजा इस्राएल तेरे विरूद्ध पाप करने के कारण अपने शत्रुओं से हार जाएं, और तेरी ओर फिरका तेरा नाम मानें, और इस भवन में तुझ से प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट करें,

25. তবে তুমি স্বর্গ হইতে তাহা শুনিও, এবং আপন প্রজা ইস্রায়েলের পাপ ক্ষমা করিও, আর তাহাদিগকে ও তাহাদের পিতৃপুরুষদিগকে এই যে দেশ দিয়াছ, এখানে পুনর্ব্বার তাহাদিগকে আনিও।

26. तो तू स्वर्ग में से सुनना; और अपनी प्रजा इस्राएल का पाप क्षमा करना, और उन्हें इस देश में लौटा ले आना जिसे तू ने उनको और उनके पुरखाओं को दिया है।

26. তোমার বিরুদ্ধে তাহাদের পাপ প্রযুক্ত যদি আকাশ রুদ্ধ হয়, বৃষ্টি না হয়, আর লোকেরা যদি এই স্থানের অভিমুখে প্রার্থনা করে, তোমার নামের স্তব করে, এবং তোমা হইতে দুঃখ পাওয়াতে আপন আপন পাপ হইতে ফিরে,

28. तो तू स्वर्ग में से सुनना, और अपने दासों और अपनी प्रजा इस्राएल के पाप को क्षमा करना; तू जो उनको वह भला मार्ग दिखाता है जिस पर उन्हें चलना चाहिये, इसलिये अपने इस देश पर जिसे तू ने अपनी प्रजा का भाग करके दिया है, पानी बरसा देना।

28. দেশের মধ্যে যদি দুর্ভিক্ষ হয়, যদি মহামারী হয়, যদি শস্যের শোষ কি ম্লানি কি পঙ্গপাল কিম্বা কীট হয়, যদি তাহাদের শত্রুগণ তাহাদের দেশে নগরে নগরে তাহাদিগকে অবরোধ করে, যদি কোন মারীর বা রোগের প্রাদুর্ভাব হয়;

29. जब इस देश में काल वा मरी वा झुलस हो वा गेरूई वा टिडि्डयां वा कीड़े लगें, वा उनके शत्रु उनके देश के फाटकों में उन्हें घेर रखें, वा कोई विपत्ति वा रोग हो;

29. তাহা হইলে কোন ব্যক্তি বা তোমার সমস্ত প্রজা ইস্রায়েল, যাহারা প্রত্যেকে আপন আপন মনঃপীড়া ও মর্ম্মব্যথা জানে, এবং এই গৃহের দিকে যদি অঞ্জলি বিস্তার করিয়া কোন প্রার্থনা কি বিনতি করে;

30. तब यदि कोई मनुष्य वा तेरी सारी प्रजा इस्राएल जो अपना अपना दु:ख और अपना अपना खेद जान कर और गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करके अपने हाथ इस भवन की ओर फैलाए;

30. তবে তুমি তোমার নিবাস-স্থান স্বর্গ হইতে তাহা শুনিও, এবং ক্ষমা করিও, এবং প্রত্যেক জনকে স্ব স্ব সমস্ত পথ অনুযায়ী প্রতিফল দিও; —তুমি ত তাহাদের অন্তঃকরণ জান; কেননা একমাত্র তুমিই মনুষ্য-সন্তানদের অন্তঃকরণ জ্ঞাত আছ;

31. जो तू अपने स्वग य निवासस्थान से सुनकर क्षमा करना, और एक एक के मन की जानकर उसकी चाल के अनुसार उसे फल देना; (तू ही तो आदमियों के मन का जाननेवाला है);

31. —যেন আমাদের পিতৃপুরুষদিগকে তুমি যে দেশ দিয়াছ, এই দেশে তাহারা যত দিন জীবিত থাকে, তোমার পথে চলিবার জন্য তোমাকে ভয় করে।

32. कि वे जितने दिन इस देश में रहें, जिसे तू ने उनके पुरखाओं को दिया था, उतने दिन तक तेरा भय मानते हुए तेरे माग पर चनते रहें।

32. অধিকন্তু তোমার প্রজা ইস্রায়েল গোষ্ঠীয় নয়, এমন কোন বিদেশী লোক যখন তোমার মহানাম, তোমার বলবান হস্ত ও তোমার বিস্তারিত বাহুর উদ্দেশে দূর দেশ হইতে আসিবে, যখন তাহারা আসিয়া এই গৃহের অভিমুখে প্রার্থনা করিবে,

33. फिर परदेशी भी जो तेरी प्रजा इस्राएल का न हो, जब वह तेरे बड़े नाम और बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा के कारण दूर देश से आए, और आकर इस भवन की ओर मुंह किए हुए प्रार्थना करे,

33. তখন তুমি স্বর্গ হইতে, তোমার নিবাস-স্থান হইতে তাহা শুনিও; এবং সেই বিদেশী লোক তোমার নিকটে যে কিছু প্রার্থনা করিবে, তদনুসারে করিও; যেন তোমার প্রজা ইস্রায়েলের ন্যায় পৃথিবীস্থ সমস্ত জাতি তোমার নাম জ্ঞাত হয়, ও তোমাকে ভয় করে, এবং তাহারা যেন জানিতে পায় যে, আমার নির্ম্মিত এই গৃহের উপরে তোমারই নাম কীর্ত্তিত।

34. तब तू अपने स्वग य निवासस्थान में से सुने, और जिस बात के लिये ऐसा परदेशी तुझे पुकारे, उसके अनुसार करना; जिस से पुथ्वी के सब देशों के लोग तेरा नाम जानकर, तेरी प्रजा इस्राएल की नाई तेरा भय मानें; और निश्चय करें, कि यह भवन जो मैं ने बनाया है, वह तेरा ही कहलाता हैं।

34. তুমি আপন প্রজাদিগকে কোন পথে প্রেরণ করিলে, যদি তাহারা আপন শত্রুগণের সহিত যুদ্ধ করিতে বাহির হয়, এবং তোমার মনোনীত এই নগরের অভিমুখে ও তোমার নামের জন্য আমার নির্ম্মিত গৃহের অভিমুখে তোমার কাছে প্রার্থনা করে;

35. जब तेरी प्रजा के लोग जहां कहीं तू उन्हें भेजे वहां अपने शत्रुओं से लड़ाई करने को निकल जाएं, और इस नगर की ओर जिसे तू ने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैं ने तेरे नाम का बनाया है, मुंह किए हुए तुझ से प्रार्थना करें,

35. তবে তুমি স্বর্গ হইতে তাহাদের প্রার্থনা ও বিনতি শুনিও, এবং তাহাদের বিচার নিষ্পত্তি করিও।

36. तब तू स्वर्ग में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनना, और उनका न्याय करना।

36. তাহারা যদি তোমার বিরুদ্ধে পাপ করে, —কেননা পাপ না করে, এমন কোন মনুষ্য নাই, —এবং তুমি যদি তাহাদের প্রতি ক্রুদ্ধ হইয়া শত্রুর হস্তে তাহাদিগকে সমর্পণ কর, ও শত্রুগণ তাহাদিগকে বন্দি করিয়া দূরস্থ কিম্বা নিকটস্থ কোন দেশে লইয়া যায়;

37. निष्पाप तो कोई मनुष्य नहीं है, यदि वे भी तेरे विरूद्ध पाप करें और तू उन पर कोप करके उन्हें शत्रुओं के हाथ कर दे, और वे उन्हेें बन्धुआ करके किसी देश को, चाहे वह दूर हो, चाहे निकट, ले जाएं,

37. তথাপি যে দেশে তাহারা বন্দিরূপে নীত হইয়াছে, সেই দেশে যদি মনে মনে বিবেচনা করে ও ফিরে, আপনাদের বন্দিত্বের দেশে তোমার কাছে বিনতি করিয়া যদি বলে, আমরা পাপ করিয়াছি, অপরাধী হইয়াছি ও দুষ্টামি করিয়াছি;

38. तो यदि वे बन्धुआई के देश में सोच विचर करें, और फिरकर अपनी बन्धुआई करनेवालों के देश में तुझ से गिड़गिड़ाकर कहें, कि हम ने पाप किया, और कुटिलता और दूष्टता की है;

38. এবং যে দেশে বন্দিরূপে নীত হইয়াছে, সেই বন্দিত্বের দেশে যদি সমস্ত অন্তঃকরণ ও সমস্ত প্রাণের সহিত তোমার কাছে ফিরিয়া আইসে, এবং তুমি তাহাদের পিতৃপুরুষদিগকে যে দেশ দিয়াছ, আপনাদের সেই দেশের অভিমুখে, তোমার মনোনীত নগরের অভিমুখে ও তোমার নামের জন্য আমার নির্ম্মিত গৃহের অভিমুখে যদি প্রার্থনা করে;

39. सो यदि वे अपनी बन्धुआई के देश में जहां वे उन्हें बन्धुआ करके ले गए हों अपने पूरे मन और सारे जीव से तेरी ओर फिरें, और अपने इस देश की ओर जो तू ने उनके पुरखाओं को दिया था, और इस नगर की ओर जिसे तू ने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैं ने तेरे नाम का बनाया है, मुंह किए हुए तुझ से प्रार्थना करें,

39. তবে তুমি স্বর্গ হইতে, তোমার বাসস্থান হইতে তাহাদের প্রার্থনা ও বিনতি শুনিও, এবং তাহাদের বিচার নিষ্পত্তি করিও; আর তোমার যে প্রজারা তোমার বিরুদ্ধে পাপ করিয়াছে, তাহাদিগকে ক্ষমা করিও।

40. तो तू अपने स्वग य निवासस्थान में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनना, और उनका न्याय करना और जो पाप तेरी प्रजा के लोग तेरे विरूद्ध करें, उन्हें क्षमा करना।

40. এখন, হে আমার ঈশ্বর, বিনয় করি, এই স্থানে যে প্রার্থনা হইবে, তৎপ্রতি যেন তোমার চক্ষু উন্মীলিত ও কর্ণ অবহিত থাকে।

41. और हे मेरे परमेश्वर ! जो प्रार्थना इस स्थान में की जाए उसकी ओर अपनी आंखें खोले रह और अपने कान लगाए रख।

41. হে সদাপ্রভু ঈশ্বর, এখন তুমি উঠিয়া তোমার বিশ্রাম-স্থানে গমন কর; তুমি ও তোমার শক্তির সিন্দুক। হে সদাপ্রভু ঈশ্বর, তোমার যাজকগণ পরিত্রাণ-বস্ত্র পরিধান করুক ও তোমার সাধুগণ মঙ্গলে আনন্দ করুক।

42. अब हे यहोवा परमेश्वर, उठकर अपने सामर्थ्य के सन्दूक समेत अपने विश्रामस्थान में आ, हे यहोवा परमेश्वर तेरे याजक उठ्ठाररूपी वस्त्रा पहिने रहें, और तेरे भक्त लोग भलाई के कारण आनन्द करते रहें।

42. হে সদাপ্রভু ঈশ্বর, তুমি আপন অভিষিক্ত লোকের মুখ ফিরাইয়া দিও না, আপন দাস দায়ূদের [প্রতি কৃত] বিবিধ-দয়া স্মরণ কর।



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