6. इन्हीं के द्वारा उस युग का जगत जल में डूब कर नाश हो गया।उत्पत्ति 7:11-21 जब नूह की अवस्था के छ: सौवें वर्ष के दूसरे महीने का सत्तरहवां दिन आया; उसी दिन बड़े गहिरे समुद्र के सब सोते फूट निकले और आकाश के झरोखे खुल गए।और वर्षा चालीस दिन और चालीस रात निरन्तर पृथ्वी पर होती रही।ठीक उसी दिन नूह अपने पुत्रा शेम, हाम, और येपेत, और अपनी पत्नी, और तीनों बहुओं समेत,और उनके संग एक एक जाति के सब बनैले पशु, और एक एक जाति के सब घरेलू पशु, और एक एक जाति के सब पृथ्वी पर रेंगनेवाले, और एक एक जाति के सब उड़नेवाले पक्षी, जहाज में गए।जितने प्राणियों में जीवन की आत्मा थी उनकी सब जातियों में से दो दो नूह के पास जहाज में गए।और जो गए, वह परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार सब जाति के प्राणियों में से नर और मादा गए। तब यहोवा ने उसका द्वार बन्द कर दिया।और पृथ्वी पर चालीस दिन तक प्रलय होता रहा; और पानी बहुत बढ़ता ही गया जिस से जहाज ऊपर को उठने लगा, और वह पृथ्वी पर से ऊंचा उठ गया।और जल बढ़ते बढ़ते पृथ्वी पर बहुत ही बढ़ गया, और जहाज जल के ऊपर ऊपर तैरता रहा।और जल पृथ्वी पर अत्यन्त बढ़ गया, यहां तक कि सारी धरती पर जितने बड़े बड़े पहाड़ थे, सब डूब गए।जल तो पन्द्रह हाथ ऊपर बढ़ गया, और पहाड़ भी डूब गएऔर क्या पक्षी, क्या घरेलू पशु, क्या बनैले पशु, और पृथ्वी पर सब चलनेवाले प्राणी, और जितने जन्तु पृथ्वी मे बहुतायत से भर गए थे, वे सब, और सब मनुष्य मर गए।