4. मैं ने उस मेढ़े को देखा कि वह पश्चिम, उत्तर और दक्खिन की ओर सींग मारता है, और कोई जन्तु उसके साम्हने खड़ा नहीं रह सकता, और न उसके हाथ से कोई किसी को बचा सकता है; और वह अपनी ही इच्छा के अनुसार काम करके बढ़ता जाता था।।
4. আমি দেখিলাম, ঐ মেষ পশ্চিম, উত্তর ও দক্ষিণদিকে ঢুঁস মারিল, তাহার সম্মুখে কোন জন্তু দাঁড়াইতে পারিল না, এবং তাহার হস্ত হইতে উদ্ধার করিতে পারে, এমন কেহ ছিল না, আর সে স্বেচ্ছামত কর্ম্ম করিত, আর আত্মগরিমা করিত।