13. व्यर्थ अन्नबलि फिर मत लाओ; धूप से मुझे घृणा है। नये चांद और विश्रामदिन का मानना, और सभाओं का प्रचार करना, यह मुझे बुरा लगता है। महासभा के साथ ही साथ अनर्थ काम करना मुझ से सहा नहीं जाता।
13. Bring no more offerings of vanity (emptiness, falsity, vainglory, and futility); [your hollow offering of] incense is an abomination to Me; the New Moons and Sabbaths, the calling of assemblies, I cannot endure--[it is] iniquity and profanation, even the solemn meeting.