2. किसी मनुष्य को परमेश्वर धन सम्पत्ति और प्रतिष्ठा यहां तक देता है कि जो कुछ उसका मन चाहता है उसे उसकी कुछ भी घटी नहीं होती, तौभी परमशॆवर उसको उस में से खाने नहीं देता, कोई दूसरा की उसे खाता है; यह व्यर्थ और भयानक दु:ख है।
2. (6:1) when God geueth a man riches, goodes, and honour, so that he wanteth nothyng of all that his heart can desire, and yet God geueth him not leaue to enioy the same, but another man spendeth them: This is a vayne thyng and a miserable plague.