Luke - लूका 10 | View All

1. और इन बातों के बाद प्रभु ने सत्तर और मनुष्य नियुक्त किए और जिस जिस नगर और जगह को वह आप जाने पर था, वहां उन्हें दो दो करके अपने आगे भेजा।

1. NOW AFTER this the Lord chose and appointed seventy others and sent them out ahead of Him, two by two, into every town and place where He Himself was about to come (visit).

2. और उस ने उन से कहा; पक्के खेत बहुत हैं; परन्तु मजदूर थोड़े हैं: इसलिये खेत के स्वामी से बिनती करो, कि वह अपने खेत काटने को मजदूर भेज दे।

2. And He said to them, The harvest indeed is abundant [there is much ripe grain], but the farmhands are few. Pray therefore the Lord of the harvest to send out laborers into His harvest.

3. जाओ; देखों मैं तुम्हें भेड़ों की नाईं भेडियों के बीच में भेजता हूं।

3. Go your way; behold, I send you out like lambs into the midst of wolves.

4. इसलिये न बटुआ, न झोली, न जूते लो; और न मार्ग में किसी को नमस्कार करो।
2 राजाओं 4:29

4. Carry no purse, no provisions bag, no [change of] sandals; refrain from [retarding your journey by] saluting and wishing anyone well along the way.

5. जिस किसी घर में जाओ, पहिले कहो, कि इस घर पर कल्याण हो।

5. Whatever house you enter, first say, Peace be to this household! [Freedom from all the distresses that result from sin be with this family].

6. यदि वहां कोई कल्याण के योग्य होगा; तो तुम्हारा कल्याण उस पर ठहरेगा, नहीं तो तुम्हारे पास लौट आएगा।

6. And if anyone [worthy] of peace and blessedness is there, the peace and blessedness you wish shall come upon him; but if not, it shall come back to you.

7. उसी घर में रहो, और जो कुछ उन से मिले, वही खाओ पीओ, क्योंकि मजदूर को अपनी मजदूरी मिलनी चाहिए: घर घर न फिरना।

7. And stay on in the same house, eating and drinking what they provide, for the laborer is worthy of his wages. Do not keep moving from house to house. [Deut. 24:15.]

8. और जिस नगर में जाओ, और वहां के लोग तुम्हें उतारें, तो तो कुछ तुम्हारे साम्हने रखा जाए वही खाओ।

8. Whenever you go into a town and they receive and accept and welcome you, eat what is set before you;

9. वहां के बीमारों को चंगा करो: और उन से कहो, कि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुंचा है।

9. And heal the sick in it and say to them, The kingdom of God has come close to you.

10. परन्तु जिस नगर में जाओ, और वहां के लोग तुम्हें ग्रहण न करें, तो उसके बाजारों में जाकर कहो।

10. But whenever you go into a town and they do not receive and accept and welcome you, go out into its streets and say,

11. कि तुम्हारे नगर की धूल भी, जो हमारे पांवों में लगी है, हम तुम्हारे साम्हने झाड़ देते हैं, तौभी यह जान लो, कि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुंचा है।

11. Even the dust of your town that clings to our feet we are wiping off against you; yet know and understand this: the kingdom of God has come near you.

12. मैं तुम से कहता हूं, कि उस दिन उस नगर की दशा से सदोम की दशा सहने योग्य होगी।
उत्पत्ति 19:24-25

12. I tell you, it shall be more tolerable in that day for Sodom than for that town. [Gen. 19:24-28.]

13. हाय खुराजीन ! हाय बैतसैदा ! जो सामर्थ के काम तुम में किए गए, यदि वे सूर और सैदा में किए जाते, तो टाट ओढ़कर और राख में बैठकर वे कब के मन फिराते।
योएल 3:4-8, आमोस 1:9-10, जकर्याह 9:2-4

13. Woe to you, Chorazin! Woe to you, Bethsaida! For if the mighty miracles performed in you had been performed in Tyre and Sidon, they would have repented long ago, sitting in sackcloth and ashes.

14. परन्तु न्याय के दिन तुम्हरी दशा से सूर और सैदा की दशा सहने योग्य होगी।
योएल 3:4-8, आमोस 1:9-10, जकर्याह 9:2-4

14. However, it shall be more tolerable in the judgment for Tyre and Sidon than for you.

15. और हे कफरनहूम, क्या तू स्वर्ग तक ऊंचा किया जाएगा? तू तो अधोलोक तक नीचे जाएगा।
यशायाह 14:13, यशायाह 14:15

15. And you, Capernaum, will you be exalted unto heaven? You shall be brought down to Hades (the regions of the dead).

16. जो तुम्हारी सुनता है, वह मेरी सुनता है, और जो तुम्हें तुच्छ जानता है, वह मुझे तुच्छ जानता है; और जो मुझे तुच्छ जानता है, वह मेरे भेजनेवाले को तुच्छ जानता है।

16. He who hears and heeds you [disciples] hears and heeds Me; and he who slights and rejects you slights and rejects Me; and he who slights and rejects Me slights and rejects Him who sent Me.

17. वे सत्तर आनन्द से फिर आकर कहने लगे, हे प्रभु, तेरे नाम से दुष्टात्मा भी हमारे वश में है।

17. The seventy returned with joy, saying, Lord, even the demons are subject to us in Your name!

18. उस ने उन से कहा; मैं शैतान को बिजली की नाई स्वर्ग से गिरा हुआ देख रहा था।
यशायाह 14:12

18. And He said to them, I saw Satan falling like a lightning [flash] from heaven.

19. देखो, मैने तुम्हे सांपों और बिच्छुओं को रौंदने का, और शत्रु की सारी सामर्थ पर अधिकार दिया है; और किसी वस्तु से तुम्हें कुछ हानि न होगी।
उत्पत्ति 3:15, भजन संहिता 91:13

19. Behold! I have given you authority and power to trample upon serpents and scorpions, and [physical and mental strength and ability] over all the power that the enemy [possesses]; and nothing shall in any way harm you.

20. तौभी इस से आनन्दित मत हो, कि आत्मा तुम्हारे वश में हैं, परन्तु इस से आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग पर लिखे हैं।।
निर्गमन 32:32

20. Nevertheless, do not rejoice at this, that the spirits are subject to you, but rejoice that your names are enrolled in heaven. [Exod. 32:32; Ps. 69:28; Dan. 12:1.]

21. उसी घड़ी वह पवित्रा आत्मा में होकर आनन्द से भर गया, और कहा; हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, कि तू ने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा, और बालकों पर प्रगट किया: हां, हे पित, क्योंकि तुझे यही अच्छा लगा।

21. In that same hour He rejoiced and gloried in the Holy Spirit and said, I thank You, Father, Lord of heaven and earth, that You have concealed these things [relating to salvation] from the wise and understanding and learned, and revealed them to babes (the childish, unskilled, and untaught). Yes, Father, for such was Your gracious will and choice and good pleasure.

22. मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंप दिया है और कोई नहीं जानता कि पुत्रा कौन है केवल पिता और पिता कौन है यह भी कोई नहीं जानता, केवल पुत्रा के और वह जिस पर पुत्रा उसे प्रकट करना चाहे।

22. All things have been given over into My power by My Father; and no one knows Who the Son is except the Father, or Who the Father is except the Son and anyone to whom the Son may choose to reveal and make Him known.

23. और चेलों की ओर फिरकर निराले में कहा, धन्य हैं वे आंखे, जो ये बाते जो तुम देखते हो देखती हैं।

23. Then turning to His disciples, He said privately, Blessed (happy, to be envied) are those whose eyes see what you see!

24. क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि बहुत से भविष्यद्वक्ताओं और राजाओं ने चाहा, कि जो बातें तुम देखते हो देखें; पर न देखीं और जो बातें तुम सुनते हो सुनें, पर न सुनीं।।

24. For I tell you that many prophets and kings longed to see what you see and they did not see it, and to hear what you hear and they did not hear it.

25. और देखो, एक व्यवस्थापक उठा; और यह कहकर, उस की परीक्षा करने लगा; कि हे गुरू, अनन्त जीवन का वारिस होने के लिये मैं क्या करूं?

25. And then a certain lawyer arose to try (test, tempt) Him, saying, Teacher, what am I to do to inherit everlasting life [that is, to partake of eternal salvation in the Messiah's kingdom]?

26. उस ने उस से कहा; कि व्यवस्था में क्या लिखा है? तू कैसे पढ़ता है?

26. Jesus said to him, What is written in the Law? How do you read it?

27. उस ने उत्तर दिया, कि तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख; और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।
लैव्यव्यवस्था 19:18, व्यवस्थाविवरण 6:5, व्यवस्थाविवरण 10:12, यहोशू 22:5

27. And he replied, You must love the Lord your God with all your heart and with all your soul and with all your strength and with all your mind; and your neighbor as yourself. [Lev. 19:18; Deut. 6:5.]

28. उस ने उस से कहा, तू ने ठीक उत्तर दिया है, यही कर: तो तू जीवित रहेगा।
लैव्यव्यवस्था 18:5

28. And Jesus said to him, You have answered correctly; do this, and you will live [enjoy active, blessed, endless life in the kingdom of God].

29. परन्तु उस ने अपनी तईं धर्मी ठहराने की इच्छा से यीशु से पूछा, तो मेरा पड़ोसी कौन है?

29. And he, determined to acquit himself of reproach, said to Jesus, And who is my neighbor?

30. यीशु ने उत्तर दिया; कि एक मनुष्य यरूशलेम से यरीहो को जा रहा था, कि डाकुओं ने घेरकर उसके कपड़े उतार लिए, और मारपीटकर उसे अधमूआ छोड़कर चले गए।

30. Jesus, taking him up, replied, A certain man was going from Jerusalem down to Jericho, and he fell among robbers, who stripped him of his clothes and belongings and beat him and went their way, [unconcernedly] leaving him half dead, as it happened.

31. और ऐसा हुआ; कि उसी मार्ग से एक याजक जा रहा था: परन्तु उसे देख के कतराकर चला गया।

31. Now by coincidence a certain priest was going down along that road, and when he saw him, he passed by on the other side.

32. इसी रीति से एक लेवी उस जगह पर आया, वह भी उसे देख के कतराकर चला गया।

32. A Levite likewise came down to the place and saw him, and passed by on the other side [of the road].

33. परन्तु एक सामरी यात्री वहां आ निकला, और उसे देखकर तरस खाया।

33. But a certain Samaritan, as he traveled along, came down to where he was; and when he saw him, he was moved with pity and sympathy [for him],

34. और उसके पास आकर और उसके घावों पर तेल और दाखरस डालकर पटि्टयां बान्धी, और अपनी सवारी पर चढ़ाकर सराय में ले गया, और उस की सेवा टहल की।

34. And went to him and dressed his wounds, pouring on [them] oil and wine. Then he set him on his own beast and brought him to an inn and took care of him.

35. दूसरे दिन उस ने दो दिनार निकालकर भटियारे को दिए, और कहा; इस की सेवा टहल करना, और जो कुछ तेरा और लगेगा, वह मैं लौटने पर तुझे भर दूंगा।

35. And the next day he took out two denarii [two day's wages] and gave [them] to the innkeeper, saying, Take care of him; and whatever more you spend, I [myself] will repay you when I return.

36. अब मेरी समझ में जो डाकुओं में घिर गया था, इन तीनों में से उसका पड़ोसी कौन ठहरा?

36. Which of these three do you think proved himself a neighbor to him who fell among the robbers?

37. उस ने कहा, वही जिस ने उस पर तरस खाया: यीशु ने उस से कहा, जा, तू भी ऐसा ही कर।।

37. He answered, The one who showed pity and mercy to him. And Jesus said to him, Go and do likewise.

38. फिर जब वे जा रहे थे, तो वह ऐ गांव में गया, और मार्था नाम एक स्त्री ने उसे अपने घर में उतारा।

38. Now while they were on their way, it occurred that Jesus entered a certain village, and a woman named Martha received and welcomed Him into her house.

39. और मरियम नाम उस की एक बहिन थी; वह प्रभु के पांवों के पास बैठकर उसका वचन सुनती थी।

39. And she had a sister named Mary, who seated herself at the Lord's feet and was listening to His teaching.

40. पर मार्था सेवा करते करते घबरा गई और उसके पास आकर कहने लगी; हे प्रभु, क्या तुझे कुछ भी सोच नहीं कि मेरी बहिन ने मुझे सेवा करने के लिये अकेली ही छोड़ दिया है? सो उस से कह, कि मेरी सहायता करे।

40. But Martha [overly occupied and too busy] was distracted with much serving; and she came up to Him and said, Lord, is it nothing to You that my sister has left me to serve alone? Tell her then to help me [to lend a hand and do her part along with me]!

41. प्रभु ने उसे उत्तर दिया, मार्था, हे मार्था; तू बहुत बातों के लिये चिन्ता करती और घबराती है।

41. But the Lord replied to her by saying, Martha, Martha, you are anxious and troubled about many things;

42. परन्तु एक बात अवश्य है, और उस उत्तम भाग को मरियम ने चुन लिया है: जो उस से छीना न जाएगा।।

42. There is need of only one or but a few things. Mary has chosen the good portion [that which is to her advantage], which shall not be taken away from her.



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