Job - अय्यूब 30 | View All

1. परन्तु अब जिनकी अवस्था मुझ से कम है, वे मेरी हंसी करते हैं, वे जिनके पिताओं को मैं अपनी भेड़ बकरियों के कुत्तों के काम के योग्य भी न जानता था।

1. But now the younger in time scorn me, whose fathers I would not have set with the dogs of my flock:

2. उनके भुजबल से मुझे क्या लाभ हो सकता था? उनका पौरूष तो जाता रहा।

2. The strength of whose hands was to me as nothing, and they were thought unworthy of life itself.

3. वे दरिद्रता और काल के मारे दुबले पड़े हुए हैं, वे अन्धेरे और सुनसान स्थानों में सुखी धूल फांकते हैं।

3. Barren with want and hunger, who gnawed in the wilderness, disfigured with calamity and misery.

4. वे झाड़ी के आसपास का लोनिया साग तोड़ लेते, और झाऊ की जड़ें खाते हैं।

4. And they ate grass, and barks of trees, and the root of junipers was their food.

5. वे मनुष्यों के बीच में से निकाले जाते हैं, उनके पीछे ऐसी पुकार होती है, जैसी जोर के पीछे।

5. Who snatched up these things out of the valleys, and when they had found any of them, they ran to them with a cry.

6. डरावने नालों में, भूमि के बिलों में, और चट्टानों में, उन्हें रहना पड़ता है।

6. They dwelt in the desert places of torrents, and in caves of earth, or upon the gravel.

7. वे झाड़ियों के बीच रेंकते, और बिच्छू पौधों के नीचे इकट्ठे पड़े रहते हैं।

7. They pleased themselves among these kind of things, and counted it delightful to be under the briers.

8. वे मूढ़ों और नीच लोगों के वंश हैं जो मार मार के इस देश से निकाले गए थे।

8. The children of foolish and base men, and not appearing at all upon the earth.

9. ऐसे ही लोग अब मुझ पर लगते गीत गाते, और मुझ पर ताना मारते हैं।

9. Now I am turned into their song, and am become their byword.

10. वे मुझ से घिन खाकर दूर रहते, वा मेरे मुंह पर थूकने से भी नहीं डरते।

10. They abhor me, and flee far from me, and are not afraid to spit in my face.

11. ईश्वर ने जो मेरी रस्सी खोलकर मुझे देख दिया है, इसलिये वे मेरे साम्हने मुंह में लगाम नहीं रखते।

11. For he hath opened his quiver, and hath afflicted me, and hath put a bridle into my mouth.

12. मेरी दहिनी अलंग पर बजारू लोग उठ खड़े होते हैं, वे मेरे पांव सरका देते हैं, और मेरे नाश के लिये अपने उपाय बान्धते हैं।

12. At the right hand of my rising, my calamities forthwith arose: they have overthrown my feet, and have overwhelmed me with their paths as with waves.

13. जिनके कोई सहायक नहीं, वे भी मेरे रास्तों को बिगाड़ते, और मेरी विपत्ति को बढ़ाते हैं।

13. They have destroyed my ways, they have lain in wait against me, and they have prevailed, and there was none to help.

14. मानो बड़े नाके से घुसकर वे आ पड़ते हैं, और उजाड़ के बीच में होकर मुझ पर धावा करते हैं।

14. They have rushed in upon me, as when a wall is broken, and a gate opened, and have rolled themselves down to my miseries.

15. मुुझ में घबराहट छा गई है, और मेरा रईसपन मानो वायु से उड़ाया गया है, और मेरा कुशल बादल की नाई जाता रहा।

15. I am brought to nothing: as a wind thou hast taken away my desire: and my prosperity hath passed away like a cloud.

16. और अब मैं शोकसागर में डूबा जाता हूँ; दु:ख के दिनों ने मुझे जकड़ लिया है।

16. And now my soul fadeth within myself, and the days of affliction possess me.

17. रात को मेरी हडि्डयां मेरे अन्दर छिद जाती हैं और मेरी नसों में चैन नहीं पड़ती

17. In the night my bone is pierced with sorrows: and they that feed upon me, do not sleep.

18. मेरी बीमारी की बहुतायत से मेरे वस्त्रा का रूप बदल गया है; वह मेरे कुत्तें के गले की नाई मुझ से लिपटी हुई है।

18. With the multitude of them my garment is consumed, and they have girded me about, as with the collar of my coat.

19. उस ने मुझ को कीचड़ में फेंक दिया है, और मैं मिट्टी और राख के तुल्य हो गया हूँ।

19. I am compared to dirt, and am likened to embers and ashes.

20. मैं तेरी दोहाई देता हूँ, परन्तु तू नहीं सुनता; मैं खड़ा होता हूँ परन्तु तू मेरी ओर घूरने लगता है।

20. I cry to thee, and thou hearest me not: I stand up, and thou dost not regard me.

21.

21. Thou art changed to be cruel toward me, and in the hardness of thy hand thou art against me.

22. तू बदलकर मुझ पर कठोर हो गया है; और अपने बली हाथ से मुझे सताता हे।

22. Thou hast lifted me up, and set me as it were upon the wind, and thou hast mightily dashed me.

23. तू मुझे वायु पर सवार करके उड़ाता है, और आंधी के पानी में मुझे गला देता है।

23. I know that thou wilt deliver me to death, where a house is appointed for every one that liveth.

24. हां, मुझे निश्चय है, कि तू मुझे मृत्यु के वश में कर देगा, और उस घर में पहुंचाएगा, जो सब जीवित प्राणियों के लिये ठहराया गया है।

24. But yet thou stretchest not forth thy hand to their consumption: and if they shall fall down thou wilt save.

25. तौभी क्या कोई गिरते समय हाथ न बढ़ाएगा? और क्या कोई विपत्ति के समय दोहाई न देगा?

25. I wept heretofore for him that was afflicted, and my soul had compassion on the poor.

26. क्या मैं उसके लिये रोता नहीं था, जिसके दुर्दिन आते थे? और क्या दरिद्र जन के कारण मैं प्राण में दुखित न होता था?

26. I expected good things, and evils are come upon me: I waited for light, and darkness broke out.

27. जब मैं कुशल का मार्ग जोहता था, तब विपत्ति आ पड़ी; और जब मैं उजियाले का आसरा लगाए था, तब अन्धकार छा गया।

27. My inner parts have boiled without any rest, the days of affliction have prevented me.

28. मेरी अन्तड़ियां निरन्तर उबलती रहती हैं और आराम नहीं पातीं; मेरे दु:ख के दिन आ गए हैं।

28. I went mourning without indignation; I rose up, and cried in the crowd.

29. मैं शोक का पहिरावा पहिने हुए मानो बिना सूर्य की गम के काला हो गया हूँ। और सभा में खड़ा होकर सहायता के लिये दोहाई देता हूँ।

29. I was the brother of dragons, and companion of ostriches.

30. मैं गीदड़ों का भाई और शुतुर्मुग का संगी हो गया हूँ।

30. My skin is become black upon me, and my bones are dried up with heat.

31. मेरा चमड़ा काला होकर मुझ पर से गिरता जाता है, और तप के मारे मेरी हडि्डयां जल गई हैं।

31. My harp is turned to mourning, and my organ into the voice of those that weep.



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