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1. तब सुलैमान ने यरूशलेम में मोरिरयाह नाम पहाड़ पर उसी स्थान में यहोवा का भवन बनाना आरम्भ किया, जिसे उसके पिता दाऊद ने दर्शन पाकर यबूसी ओर्नान के खलिहान में तैयार किया था :प्रेरितों के काम 7:47
1. পরে শলোমন যিরূশালেমে মোরিয়া পর্ব্বতে সদাপ্রভুর গৃহ নির্ম্মাণ করিতে আরম্ভ করিলেন; [সদাপ্রভু] সেই স্থানে তাঁহার পিতা দায়ূদকে দর্শন দিয়াছিলেন, এবং দায়ূদ সেই স্থান নিরূপণ করিয়াছিলেন; তাহা যিবূষীয় অর্ণানের খামার।
2. उस ने अपने राज्य के चौथे वर्ष के दूसरे महीने के, दूसरे दिन को बनाना आरम्भ किया।
2. তিনি আপন রাজত্বের চতুর্থ বৎসরের দ্বিতীয় মাসের দ্বিতীয় দিনে নির্ম্মাণ কার্য্য আরম্ভ করিলেন।
3. परमेश्वर का जो भवन सुलैमान ने बनाया, उसका यह ढव है, अर्थात् उसकी लम्बाई तो प्राचीन काल की नाप के अनुसार साठ हाथ, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ् की थी।
3. শলোমন ঈশ্বরের গৃহ নির্ম্মাণ করিতে যে মূল উপদেশ পাইয়াছিলেন, তদনুসারে হস্তের প্রাচীন পরিমাণে গৃহের দীর্ঘতা ষাট হস্ত ও প্রস্থ বিংশতি হস্ত করা হইল।
4. और भवन के साम्हने के ओसारे की लम्बाई तो भवन की चौड़ाई के बराबर बीस हाथ की; और उसकी ऊंचाई एक सौ बीस हाथ की थी। सुलैमान ने उसको भीतर चोखे सोने से मढ़वाया।
4. আর গৃহের সম্মুখস্থ বারাণ্ডা গৃহের প্রস্থানুসারে বিংশতি হস্ত দীর্ঘ ও এক শত বিংশতি হস্ত উচ্চ হইল; আর তিনি ভিতরে তাহা নির্ম্মল স্বর্ণে মুড়াইলেন।
5. और भवन के बड़े भाग की छत उस ने सनोवर की लकड़ी से पटवाई, और उसको अच्छे सोने से मढ़वाया, और उस पर खजूर के वृक्ष की और सांकलों की नक्काशी कराई।
5. তিনি বৃহৎ গৃহের গাত্র উত্তম স্বর্ণমণ্ডিত দেবদারু কাষ্ঠে আবৃত করিলেন ও তাহার উপরে খর্জ্জুরবৃক্ষ ও শৃঙ্খলাকৃতি করিলেন।
6. फिर शोभा देने के लिये उस ने भवन में मणि जड़वाए। और यह सोना पवैंम का था।
6. আর শোভার নিমিত্ত গৃহটী মূল্যবান প্রস্তরে অলঙ্কৃত করিলেন; ঐ স্বর্ণ পর্বয়িম দেশের স্বর্ণ।
7. और उस ने भवन को, अर्थात् उसकी कड़ियों, डेवढ़ियों, भीतों और किवाडों को सोने से मढ़वाया, और भीतों पर करूब खुदवाए।
7. আর তিনি গৃহ, গৃহের কড়িকাষ্ঠ, গোবরাট, ভিত্তি ও কবাট স্বর্ণে মুড়াইলেন, এবং ভিত্তির উপরে করূবাকৃতি ক্ষুদিলেন।
8. फिर उस ने भवन के परमपवित्रा स्थान को बनाया; उसकी लम्बाई तो भवन की चौड़ाई के बराबर बीस हाथ की थी, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ की थी; और उस ने उसे छे सौ किक्कार चोखे सोने से मढ़वाया।
8. আর তিনি অতি পবিত্র গৃহ নির্ম্মাণ করিলেন, তাহার দীর্ঘতা গৃহের প্রস্থের ন্যায় বিংশতি হস্ত ও প্রস্থ বিংশতি হস্ত; এবং তিনি ছয় শত তালন্ত উত্তম স্বর্ণ দ্বারা তাহা মুড়াইলেন।
9. और सोने की कीलों का तौल पचास शेकेल था। और उस ने अटारियों को भी सोने से मढ़वाया।
9. প্রেকের পরিমাণ পঞ্চাশ শেকল স্বর্ণ। তিনি উপরিস্থ কুঠরী সকলও স্বর্ণ দ্বারা মুড়াইলেন।
10. फिर भवन के परमपवित्रा स्थान में उसने नक्काशी के काम के दो करूब बनवाए और वे सोने से मढ़वाए गए।
10. অতি পবিত্র গৃহের মধ্যে তিনি নিকালকার্য্য দ্বারা দুই করূব নির্ম্মাণ করিলেন; আর তাহা স্বর্ণে মুড়ান হইল।
11. करूबों के पंख तो सब मिलकर बीस हाथ लम्बे थे, अर्थात् एक करूब का एक पंख पांच हाथ का और भवन की भीत तक पहुंचा हुआ था; और उसका दूसरा पंख पांच हाथ का था और दूसरे करूब के पंख से मिला हुआ था।
11. এই করূব দুইটীর পক্ষ বিংশতি হস্ত দীর্ঘ, একটীর পাঁচ হস্ত দীর্ঘ এক পক্ষ গৃহের ভিত্তি স্পর্শ করিল, এবং পাঁচ হস্ত দীর্ঘ অন্য পক্ষ দ্বিতীয় করূবেব পক্ষ স্পর্শ করিল।
12. और दूसरे करूब का भी एक पंख पांच हाथ का और भवन की दूसरी भीत तक पहुंचा था, और दूसरा पंख पांच हाथ का और पहिले करूब के पंख से सटा हुआ था।
12. সেই করূবের পাঁচ হস্ত দীর্ঘ প্রথম পক্ষ গৃহের ভিত্তি স্পর্শ করিল, এবং পাঁচ হস্ত দীর্ঘ দ্বিতীয় পক্ষ ঐ করূবের পক্ষ স্পর্শ করিল।
13. इन करूबों के पंख बीस हाथ फैले हुए थे; और वे अपने अपने पांवों के बल खड़े थे, और अपना अपना मुख भीतर की ओर किए हुए थे।
13. সেই করূব দুইটীর পক্ষ চতুষ্টয় বিংশতি হস্ত বিস্তারিত, তাহারা চরণে দণ্ডায়মান, এবং তাহাদের মুখ গৃহের দিকে ছিল।
14. फिर उस ने बीचवाले पर्दे को नीले, बैंजनी और लाल रंग के सन के कपड़े का बनवाया, और उस पर करूब कढ़वाए।
14. আর তিনি নীল, বেগুনে ও রক্তবর্ণ এবং মসীনা-সূত্র নির্ম্মিত তিরস্করিণী প্রস্তুত করিলেন ও তাহাতে করূবাকৃতি করিলেন।
15. और भवन के साम्हने उस ने पैंतीस पैंतीस हाथ ऊंचे दो खम्भे बनवाए, और जो कंगनी एक एक के ऊपर थी वह पांच पांच हाथ की थी।
15. আর তিনি গৃহের সম্মুখে পঁয়ত্রিশ হস্ত উচ্চ দুই স্তম্ভ করিলেন, এক এক স্তম্ভের উপরে যে মাথলা তাহা পাঁচ হস্ত উচ্চ হইল।
16. फिर उस ने भीतरी कोठरी में सांकलें बनवाकर खम्भों के ऊपर लगाई, और एक सौ अनार भी बनाकर सांकलों पर लटकाए।
16. আর তিনি অন্তর্গৃহে শৃঙ্খল করিয়া সেই স্তম্ভের মস্তকে দিলেন, এবং এক শত দাড়িম্বাকৃতি করিয়া ঐ শৃঙ্খলের উপরে রাখিলেন।
17. उस ने इन ख्म्भों को मन्दिर के साम्हने, एक तो उसकी दाहिनी ओर और दूसरा बाई ओर खड़ा कराया; और दाहिने खम्भे का नाम याकीन और बायें खम्भे का नाम बोअज़ रखा।
17. সেই দুইটী স্তম্ভ তিনি মন্দিরের সম্মুখে স্থাপন করিলেন, একটা দক্ষিণে ও অন্যটা বামে রাখিলেন, এবং যেটী দক্ষিণে, সেটীর নাম যাখীন [তিনি স্থির করিবেন] ও যেটী বামে, সেটীর নাম বোয়স [ইহাতেই বল] রাখিলেন।