Genesis - उत्पत्ति 41 | View All

1. पूरे दो बरस के बीतने पर फिरौन ने यह स्वप्न देखा, कि वह नील नदी के किनारे पर खड़ा है।

1. দুই বৎসর পরে ফরৌণ স্বপ্ন দেখিলেন।

2. और उस नदी में से सात सुन्दर और मोटी मोटी गायें निकलकर कछार की घास चरने लगीं।

2. দেখ, তিনি নদীকূলে দাঁড়াইয়া আছেন, আর দেখ, নদী হইতে সাতটা হৃষ্টপুষ্ট সুন্দর গাভী উঠিল, ও খাগড়া বনে চরিতে লাগিল।

3. और, क्या देखा, कि उनके पीछे और सात गायें, जो कुरूप और दुर्बल हैं, नदी से निकली; और दूसरी गायों के निकट नदी के तट पर जा खड़ी हुई।

3. সেগুলির পরে, দেখ, আর সাতটা কৃশ ও বিশ্রী গাভী নদী হইতে উঠিল, ও নদীর তীরে ঐ গাভীদের নিকটে দাঁড়াইল।

4. तब ये कुरूप और दुर्बल गायें उन सात सुन्दर और मोटी मोटी गायों को खा गई। तब फिरौन जाग उठा।

4. পরে সেই কৃশ বিশ্রী গাভীরা ঐ সাতটা হৃষ্টপুষ্ট সুন্দর গাভীকে খাইয়া ফেলিল। তখন ফরৌণের নিদ্রাভঙ্গ হইল।

5. और वह फिर सो गया और दूसरा स्वप्न देखा, कि एक डंठी में से सात मोटी और अच्छी अच्छी बालें निकलीं।

5. তাহার পরে তিনি নিদ্রিত হইয়া দ্বিতীয় বার স্বপ্ন দেখিলেন; দেখ, এক বোঁটাতে সাতটী স্থূলাকার উত্তম শীষ উঠিল।

6. और, क्या देखा, कि उनके पीछे सात बालें पतली और पुरवाई से मुरझाई हुई निकलीं।

6. সেগুলির পরে, দেখ, পূর্ব্বীয় বায়ুতে শোষিত অন্য সাতটী ক্ষীণ শীষ উঠিল।

7. और इन पतली बालों ने उन सातों मोटी और अन्न से भरी हुई बालों को निगल लिया। तब फिरौन जागा, और उसे मालूम हुआ कि यह स्वप्न ही था।

7. আর এই ক্ষীণ শীষগুলি ঐ সাতটা স্থূলাকার পূর্ণ শীষ গ্রাস করিল। পরে ফরৌণের নিদ্রাভঙ্গ হইল, আর দেখ, উহা স্বপ্নমাত্র।

8. भोर को फिरौन का मन व्याकुल हुआ; और उस ने मि के सब ज्योतिषियों, और पण्डितों को बुलवा भेजा; और उनको अपने स्वप्न बताएं; पर उन में से कोई भी उनका फल फिरौन से न कह सहा।

8. পরে প্রাতঃকালে তাঁহার মন অস্থির হইল; আর তিনি লোক পাঠাইয়া মিসরের সকল মন্ত্রবেত্তা ও তথাকার সকল জ্ঞানীকে ডাকাইলেন; আর ফরৌণ তাঁহাদের কাছে সেই স্বপ্নবৃত্তান্ত কহিলেন, কিন্তু তাঁহাদের মধ্যে কেহই ফরৌণকে তাহার অর্থ বলিতে পারিলেন না।

9. तब पिलानेहारों का प्रधान फिरौन से बोल उठा, कि मेरे अपराध आज मुझे स्मरण आए:

9. তখন প্রধান পানপাত্রবাহক ফরৌণকে নিবেদন করিল, অদ্য আমার দোষ মনে পড়িতেছে।

10. जब फिरौन अपने दासों से क्रोधित हुआ था, और मुझे और पकानेहारों के प्रधान को कैद कराके जल्लादों के प्रधान के घर के बन्दीगृह में डाल दिया था;

10. ফরৌণ আপন দুই দাসের প্রতি, আমার ও প্রধান মোদকের প্রতি, ক্রোধান্বিত হইয়া আমাদিগকে রক্ষক-সেনাপতির বাটীতে কারাবদ্ধ করিয়াছিলেন।

11. तब हम दोनों ने, एक ही रात में, अपने अपने होनहार के अनुसार स्वप्न देखा;

11. আর সে ও আমি এক রাত্রিতে স্বপ্ন দেখিয়াছিলাম; এবং দুই জনের স্বপ্নের দুই প্রকার অর্থ হইল।

12. और वहां हमारे साथ एक इब्री जवान था, जो जल्लादों के प्रधान का दास था; सो हम ने उसको बताया, और उस ने हमारे स्वप्नों का फल हम से कहा, हम में से एक एक के स्वप्न का फल उस ने बता दिया।

12. তখন সে স্থানে রক্ষক-সেনাপতির দাস এক জন ইব্রীয় যুবক আমাদের সহিত ছিল; তাহাকে স্বপ্নবৃত্তান্ত কহিলে সে আমাদিগকে তাহার অর্থ বলিল; উভয়েরই স্বপ্নের অর্থ বলিল।

13. और जैसा जैसा फल उस ने हम से कहा था, वैसा की हुआ भी, अर्थात् मुझ को तो मेरा पद फिर मिला, पर वह फांसी पर लटकाया गया।

13. আর সে আমাদিগকে যেরূপ অর্থ বলিয়াছিল, তদ্রূপই ঘটিল; মহারাজ আমাকে পূর্ব্বপদে নিযুক্ত করিলেন, ও তাহাকে টাঙ্গাইয়া দিলেন।

14. तब फिरौन ने यूसुफ को बुलवा भेजा। और वह झटपट बन्दीगृह से बाहर निकाला गया, और बाल बनवाकर, और वस्त्रा बदलकर फिरौन के साम्हने आया।

14. তখন ফরৌণ যোষেফকে ডাকিয়া পাঠাইলে লোকেরা কারাকূপ হইতে তাঁহাকে শীঘ্র আনিল। পরে তিনি ক্ষৌরী হইয়া অন্য বস্ত্র পরিধান করিয়া ফরৌণের নিকটে উপস্থিত হইলেন।

15. फिरौन ने यूसुफ से कहा, मैं ने एक स्वप्न देखा है, और उसके फल का बतानेवाला कोई भी नहीं; और मैं ने तेरे विषय में सुना है, कि तू स्वप्न सुनते ही उसका फल बता सकता है।

15. তখন ফরৌণ যোষেফকে কহিলেন, আমি এক স্বপ্ন দেখিয়াছি, তাহার অর্থ করিতে পারে, এমন কেহ নাই। কিন্তু তোমার বিষয়ে আমি শুনিয়াছি যে, তুমি স্বপ্ন শুনিলে অর্থ করিতে পার।

16. यूसुफ ने फिरौन से कहा, मै तो कुछ नहीं जानता : परमेश्वर ही फिरौन के लिये शुभ वचन देगा।

16. যোষেফ ফরৌণকে উত্তর করিলেন, তাহা আমার অসাধ্য, ঈশ্বরই ফরৌণকে মঙ্গলযুক্ত উত্তর দিবেন।

17. फिर फिरौन यूसुफ से कहने लगा, मै ने अपने स्वप्न में देखा, कि मैं नील नदी के किनारे पर खड़ा हूं

17. তখন ফরৌণ যোষেফকে কহিলেন, দেখ, আমি স্বপ্নে নদীর তীরে দাঁড়াইয়াছিলাম।

18. फिर, क्या देखा, कि नदी में से सात मोटी और सुन्दर सुन्दर गायें निकलकर कछार की घास चरने लगी।

18. আর দেখ, নদী হইতে সাতটা হৃষ্টপুষ্ট সুন্দর গাভী উঠিয়া খাগড়া বনে চরিতে লাগিল।

19. फिर, क्या देखा, कि उनके पीछे सात और गायें निकली, जो दुबली, और बहुत कुरूप, और दुर्बल हैं; मै ने तो सारे मि देश में ऐसी कुडौल गायें कभी नहीं देखीं।

19. সেগুলির পরে, দেখ, কৃশ ও অতিশয় বিশ্রী ও শুষ্কাঙ্গ অন্য সাতটা গাভী উঠিল; আমি সমস্ত মিসর দেশে তাদৃশ বিশ্রী গাভী কখনও দেখি নাই।

20. और इन दुर्बल और कुडौल गायों ने उन पहली सातों मोटी मोटी गायों को खा लिया।

20. আর এই কৃশ ও বিশ্রী গাভীরা সেই পূর্ব্বের হৃষ্টপুষ্ট সাতটা গাভীকে খাইয়া ফেলিল।

21. और जब वे उनको खा गई तब यह मालूम नहीं होता था कि वे उनको खा गई हैं, क्योंकि वे पहिले की नाई जैसी की तैसी कुडौल रहीं। तब मैं जाग उठा।

21. কিন্তু তাহারা ইহাদের উদরস্থ হইলে পর, উদরস্থ যে হইয়াছে, এমন বোধ হইল না, কেননা ইহারা পূর্ব্বকার ন্যায় বিশ্রীই রহিল।

22. फिर मैं ने दूसरा स्वप्न देखा, कि एक ही डंठी में सात अच्छी अच्छी और अन्न से भरी हुई बालें निकलीं।

22. তখন আমার নিদ্রাভঙ্গ হইল। পরে আমি আর এক স্বপ্ন দেখিলাম; আর দেখ, এক বোঁটায় স্থূলাকার উত্তম সাতটী শীষ উঠিল।

23. फिर, क्या देखता हूं, कि उनके पीछे और सात बालें छूछी छूछी और पतली और पुरवाई से मुरझाई हुई निकलीं।

23. আর দেখ, সেগুলির পরে ম্লান, ক্ষীণ ও পূর্ব্বীয় বায়ুতে শোষিত সাতটী শীষ উঠিল।

24. और इन पतली बालों ने उन सात अच्छी अच्छी बालों को निगल लिया। इसे मैं ने ज्योतिषियों को बताया, पर इस का समझनेहारा कोई नहीं मिला।

24. আর এই ক্ষীণ শীষগুলি সেই উত্তম সাতটী শীষকে গ্রাস করিল। এই স্বপ্ন আমি মন্ত্রবেত্তাদিগকে কহিলাম, কিন্তু কেহই ইহার অর্থ আমাকে বলিতে পারিল না।

25. तब यूसुफ ने फिरौन से कहा, फिरौन का स्वप्न एक ही है, परमेश्वर जो काम किया चाहता है, उसको उस ने फिरौन को जताया है।

25. তখন যোষেফ ফরৌণকে বলিলেন, ফরৌণের স্বপ্ন এক; ঈশ্বর যাহা করিতে উদ্যত হইয়াছেন, তাহাই ফরৌণকে জ্ঞাত করিয়াছেন।

26. वे सात अच्छी अच्छी गायें सात वर्ष हैं; और वे सात अच्छी अच्छी बालें भी सात वर्ष हैं; स्वप्न एक ही है।

26. ঐ সাতটী উত্তম গাভী সাত বৎসর, এবং ঐ সাতটী উত্তম শীষও সাত বৎসর; স্বপ্ন এক।

27. फिर उनके पीछे जो दुर्बल और कुडौल गायें निकलीं, और जो सात छूछी और पुरवाई से मुरझाई हुई बालें निकाली, वे अकाल के सात वर्ष होंगे।

27. আর তাহার পশ্চাৎ যে সাতটি কৃশ ও বিশ্রী গাভী উঠিল, তাহারাও সাত বৎসর; এবং পূর্ব্বীয় বায়ুতে শোষিত যে সাতটী কৃশ শীষ উঠিল, তাহা দুর্ভিক্ষের সাত বৎসর হইবে।

28. यह वही बात है, जो मैं फिरौन से कह चुका हूं, कि परमेश्वर जो काम किया चाहता है, उसे उस ने फिरौन को दिखाया है।

28. আমি ফরৌণকে ইহাই বলিলাম; ঈশ্বর যাহা করিতে উদ্যত হইয়াছেন, তাহা ফরৌণকে দেখাইয়াছেন।

29. सुन, सारे मि देश में सात वर्ष तो बहुतायत की उपज के होंगे।

29. দেখুন, সমস্ত মিসর দেশে সাত বৎসর অতিশয় শস্যবাহুল্য হইবে।

30. उनके पश्चात् सात वर्ष अकाल के आयेंगे, और सारे मि देश में लोग इस सारी उपज को भूल जायेंगे; और अकाल से देश का नाश होगा।

30. তাহার পরে সাত বৎসর এমন দুর্ভিক্ষ হইবে যে, মিসর দেশে সমস্ত শস্যবাহুল্যের বিস্মৃতি হইবে, এবং সেই দুর্ভিক্ষে দেশ নষ্ট হইবে।

31. और सुकाल (बहुतायत की उपज) देश में फिर स्मरण न रहेगा क्योंकि अकाल अत्यन्त भयंकर होगा।

31. আর সেই পশ্চাদ্বর্ত্তী দুর্ভিক্ষ প্রযুক্ত দেশে পূর্ব্বকার শস্যবাহুল্যের কথা মনে পড়িবে না; কারণ তাহা অতীব কষ্টকর হইবে।

32. और फिरौन ने जो यह स्वप्न दो बार देखा है इसका भेद यही है, कि यह बात परमेश्वर की ओर से नियुक्त हो चुकी है, और परमेश्वर इसे शीघ्र ही पूरा करेगा।

32. আর ফরৌণের নিকটে দুই বার স্বপ্ন দেখাইবার ভাব এই; ঈশ্বর ইহা স্থির করিয়াছেন, এবং ঈশ্বর ইহা শীঘ্র ঘটাইবেন।

33. इसलिये अब फिरौन किसी समझदार और बुद्धिमान् पुरूष को ढूंढ़ करके उसे मि देश पर प्रधानमंत्री ठहराए।

33. অতএব এখন ফরৌণ এক জন সুবুদ্ধি ও জ্ঞানবান্‌ পুরুষের চেষ্টা করিয়া তাঁহাকে মিসর দেশের উপরে নিযুক্ত করুন।

34. फिरौन यह करे, कि देश पर अधिकारियों को नियुक्त करे, और जब तक सुकाल के सात वर्ष रहें तब तक वह मि देश की उपज का पंचमांश लिया करे।

34. আর ফরৌণ এই কর্ম্ম করুন; দেশে অধ্যক্ষগণ নিযুক্ত করিয়া যে সাত বৎসর শস্যবাহুল্য হইবে, সেই সময়ে মিসর দেশ হইতে শস্যের পঞ্চমাংশ গ্রহণ করুন।

35. और वे इन अच्छे वर्षों में सब प्रकार की भोजनवस्तु इकट्ठा करें, और नगर नगर में भण्डार घर भोजन के लिये फिरौन के वश में करके उसकी रक्षा करें।

35. তাঁহারা সেই আগামী শুভ বৎসরসমূহের ভক্ষ্য সংগ্রহ করুন, ও ফরৌণের অধীনে নগরে নগরে খাদ্যের জন্য শস্য সঞ্চয় করুন, ও রক্ষা করুন।

36. और वह भोजनवस्तु अकाल के उन सात वर्षों के लिये, जो मि देश में आएंगे, देश के भोजन के निमित्त रखी रहे, जिस से देश उस अकाल से स्त्यानाश न हो जाए।

36. এইরূপে মিসর দেশে যে দুর্ভিক্ষ হইবে, সেই দুর্ভিক্ষের সাত বৎসরের নিমিত্ত সেই ভক্ষ্য দেশের জন্য সঞ্চিত থাকিবে, তাহাতে দুর্ভিক্ষে দেশ উচ্ছিন্ন হইবে না।

37. यह बात फिरौन और उसके सारे कर्मचारियों को अच्छी लगी।

37. তখন ফরৌণের ও তাঁহার সকল দাসের দৃষ্টিতে এই কথা উত্তম বোধ হইল।

38. सो फिरौन ने अपने कर्मचारियों से कहा, कि क्या हम को ऐसा पुरूष जैसा यह है, जिस में परमेश्वर का आत्मा रहता है, मिल सकता है ?

38. আর ফরৌণ আপন দাসদিগকে কহিলেন, ইহাঁর তুল্য পুরুষ, যাঁহার অন্তরে ঈশ্বরের আত্মা আছেন, এমন আর কাহাকে পাইব?

39. फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, परमेश्वर ने जो तुझे इतना ज्ञान दिया है, कि तेरे तुल्य कोई समझदार और बुद्धिमान् नहीं;

39. তখন ফরৌণ যোষেফকে কহিলেন, ঈশ্বর তোমাকে এই সকল জ্ঞাত করিয়াছেন, অতএব তোমার তুল্য সুবুদ্ধি ও জ্ঞানবান্ কেহই নাই।

40. इस कारण तू मेरे घर का अधिकारी होगा, और तेरी आज्ञा के अनुसार मेरी सारी प्रजा चलेगी, केवल राजगद्दी के विषय मैं तुझ से बड़ा ठहरूंगा।
प्रेरितों के काम 7:10

40. তুমিই আমার বাটীর অধ্যক্ষ হও; আমার সমস্ত প্রজা তোমার বাক্য শিরোধার্য্য করিবে, কেবল সিংহাসনে আমি তোমা হইতে বড় থাকিব।

41. फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, सुन, मैं तुझ को मि के सारे देश के ऊपर अधिकारी ठहरा देता हूं

41. ফরৌণ যোষেফকে আরও কহিলেন, দেখ, আমি তোমাকে সমস্ত মিসর দেশের উপরে নিযুক্ত করিলাম।

42. तब फिरौन ने अपने हाथ से अंगूठी निकालके यूसुफ के हाथ में पहिना दी; और उसको बढ़िया मलमल के वस्त्रा पहिनवा दिए, और उसके गले में सोने की जंजीर डाल दी;

42. পরে ফরৌণ হস্ত হইতে নিজ অঙ্গুরীয় খুলিয়া যোষেফের হস্তে দিলেন, তাঁহাকে কার্পাসের শুভ্র বসন পরিধান করাইলেন, এবং তাঁহার কণ্ঠদেশে সুবর্ণহার দিলেন।

43. और उसको अपने दूसरे रथ पर चढ़वाया; और लोग उसके आगे आगे यह प्रचार करते चले, कि घुटने टेककर दण्डवत करो और उस ने उसको मि के सारे देश के ऊपर प्रधान मंत्री ठहराया।
प्रेरितों के काम 7:10

43. আর তাঁহাকে আপনার দ্বিতীয় রথে আরোহণ করাইলেন এবং লোকেরা তাঁহার অগ্রে অগ্রে ‘হাঁটু পাত, হাঁটু পাত’ বলিয়া ঘোষণা করিল। এইরূপে তিনি সমস্ত মিসর দেশের অধ্যক্ষপদে নিযুক্ত হইলেন।

44. फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, फिरौन तो मैं हूं, और सारे मि देश में कोई भी तेरी आज्ञा के बिना हाथ पांव न हिलाएगा।

44. আর ফরৌণ যোষেফকে কহিলেন, আমি ফরৌণ, তোমার আজ্ঞা ব্যতিরেকে সমস্ত মিসর দেশে কোন লোক হাত কি পা তুলিতে পারিবে না।

45. और फिरौन ने यूसुफ का नाम सापन त्पानेह रखा। और ओन नगर के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से उसका ब्याह करा दिया। और यूसुफ मि के सारे देश में दौरा करने लगा।

45. আর ফরৌণ যোষেফের নাম সাফনৎ-পানেহ রাখিলেন। এবং তাঁহার সঙ্গে ওন নগর-নিবাসী পোটীফেরঃ নামক যাজকের আসনৎ নাম্নী কন্যার বিবাহ দিলেন। পরে যোষেফ মিসর দেশের মধ্যে যাতায়াত করিতে লাগিলেন।

46. जब यूसुफ मि के राजा फिरौन के सम्मुख खड़ा हुआ, तब वह तीस वर्ष का था। सो वह फिरौन के सम्मुख से निकलकर मि के सारे देश में दौरा करने लगा।
प्रेरितों के काम 7:10

46. যোষেফ ত্রিশ বৎসর বয়সে মিসর-রাজ ফরৌণের সাক্ষাতে দণ্ডায়মান হইয়াছিলেন। পরে যোষেফ ফরৌণের নিকট হইতে প্রস্থান করিয়া মিসর দেশের সর্ব্বত্র ভ্রমণ করিলেন।

47. सुकाल के सातों वर्षों में भूमि बहुतायत से अन्न उपजाती रही।

47. আর সেই শস্যবাহুল্যের সপ্ত বৎসর ভূমিতে অপর্য্যাপ্ত শস্য জন্মিল।

48. और यूसुफ उन सातों वर्षों में सब प्रकार की भोजनवस्तुएं, जो मि देश में होती थीं, जमा करके नगरों में रखता गया, और हर एक नगर के चारों ओर के खेतों की भोजनवस्तुओं को वह उसी नगर में इकट्ठा करता गया।

48. মিসর দেশে উপস্থিত সেই সপ্ত বৎসরে সকল শস্য সংগ্রহ করিয়া তিনি প্রতিনগরে সঞ্চয় করিলেন; যে নগরের চারি সীমায় যে শস্য হইল, সেই নগরে তাহা সঞ্চয় করিলেন।

49. सो यूसुफ ने अन्न को समुद्र की बालू के समान अत्यन्त बहुतायत से राशि राशि करके रखा, यहां तक कि उस ने उनका गिनना छोड़ दिया; क्योंकि वे असंख्य हो गई।

49. এইরূপে যোষেফ সমুদ্রের বালুকার ন্যায় এমন প্রচুর শস্য সংগ্রহ করিলেন যে, তাহা মাপিতে নিবৃত্ত হইলেন, কেননা তাহা অপরিমেয় ছিল।

50. अकाल के प्रथम वर्ष के आने से पहिले यूसुफ के दो पुत्रा, ओन के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से जन्मे।

50. দুর্ভিক্ষ বৎসরের পূর্ব্বে যোষেফের দুই পুত্র জন্মিল; ওন্-নিবাসী পোটীফেরঃ যাজকের কন্যা আসনৎ তাঁহার জন্য তাহাদিগকে প্রসব করিলেন।

51. और यूसुफ ने अपने जेठे का नाम यह कहके मनश्शे रखा, कि परमेश्वर ने मुझ से सारा क्लेश, और मेरे पिता का सारा घराना भुला दिया है।

51. আর যোষেফ তাহাদের জ্যেষ্ঠের নাম মনঃশি [বিস্মৃতিজনক] রাখিলেন, কেননা তিনি কহিলেন, ঈশ্বর আমার সমস্ত ক্লেশের ও আমার সমস্ত পিতৃকুলের বিস্মৃতি জন্মাইয়াছেন।

52. और दूसरे का नाम उस ने यह कहकर एप्रैम रखा, कि मुझे दु:ख भोगने के देश में परमेश्वर ने फुलाया फलाया है।

52. পরে দ্বিতীয় পুত্রের নাম ইফ্রয়িম [ফলবান্] রাখিলেন, কেননা তিনি কহিলেন, আমার দুঃখভোগের দেশে ঈশ্বর আমাকে ফলবান্ করিয়াছেন।

53. और मि देश के सुकाल के वे सात वर्ष समाप्त हो गए।

53. পরে মিসর দেশে উপস্থিত শস্যবাহুল্যের সাত বৎসর শেষ হইল,

54. और यूसुफ के कहने के अनुसार सात वर्षों के लिये अकाल आरम्भ हो गया। और सब देशों में अकाल पड़ने लगा; परन्तु सारे मि देश में अन्न था।
प्रेरितों के काम 7:11

54. এবং যোষেফ যেমন বলিয়াছিলেন, তদনুসারে দুর্ভিক্ষের সাত বৎসর আরম্ভ হইল। সকল দেশে দুর্ভিক্ষ হইল, কিন্তু সমস্ত মিসর দেশে ভক্ষ্য ছিল।

55. जब मि का सारा देश भूखों मरने लगा; तब प्रजा फिरोन से चिल्ला चिल्लाकर रोटी मांगने लगी : और वह सब मिस्त्रियों से कहा करता था, यूसुफ के पास जाओ: और जो कुछ वह तुम से कहे, वही करो।
यूहन्ना 2:5, प्रेरितों के काम 7:11

55. পরে সমস্ত মিসর দেশে দুর্ভিক্ষ হইলে প্রজারা ফরৌণের নিকটে ভক্ষ্যের জন্য ক্রন্দন করিল তাহাতে ফরৌণ মিস্রীয়দের সকলকে কহিলেন, তোমরা যোষেফের নিকটে যাও; তিনি তোমাদিগকে যাহা বলেন, তাহাই কর।

56. सो जब अकाल सारी पृथ्वी पर फैल गया, और मि देश में काल का भयंकर रूप हो गया, तब यूसुफ सब भण्डारों को खोल खोलके मिस्त्रियों के हाथ अन्न बेचने लगा।

56. তখন সমস্ত দেশেই দুর্ভিক্ষ হইয়াছিল। আর যোষেফ সকল স্থানের গোলা খুলিয়া মিস্রীয়দের কাছে শস্য বিক্রয় করিতে লাগিলেন; আর মিসর দেশে দুর্ভিক্ষ প্রবল হইয়া উঠিল।

57. सो सारी पृथ्वी के लोग मि में अन्न मोल लेने के लिये यूसुफ के पास आने लगे, क्योंकि सारी पृथ्वी पर भयंकर अकाल था।

57. এবং সর্ব্বদেশীয় লোকে মিসর দেশে যোষেফের নিকটে শস্য ক্রয় করিতে আসিল, কেননা সর্ব্বদেশেই দুর্ভিক্ষ প্রবল হইয়াছিল।



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